सार
आपातकाल को आज 45 साल पूरे हो गए। 25 जून, 1975 को देशभर में इंदिरा गांधी ने आधी रात को ही आपातकाल की घोषणा कर दी थी। इसे भारतीय राजनीति के इतिहास का काला अध्याय भी माना जाता है। ये आपातकाल 21 मार्च, 1977 तक लगी रही।
नई दिल्ली. आपातकाल को आज 45 साल पूरे हो गए। 25 जून, 1975 को देशभर में इंदिरा गांधी ने आधी रात को ही आपातकाल की घोषणा कर दी थी। इसे भारतीय राजनीति के इतिहास का काला अध्याय भी माना जाता है। ये आपातकाल 21 मार्च, 1977 तक लगी रही। उस दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन देश में आपातकाल की घोषणा की थी।
भारत के इतिहास का विवादास्पद काल
स्वतंत्र भारत के इतिहास में इस दौर को सबसे विवादास्पद काल माना जाता था। इस दौरान चुनाव तक स्थगित हो गए थे। 25 जून की आधी रात को ही आपातकाल की घोषणा की अगली सुबह यानी 26 जून को समूचे देश ने रेडियो पर इंदिरा गांधी की आवाज में आपातकाल की घोषणा के बारे में सुना। आपातकाल के पीछे कई वजहें बताई जाती है, जिसमें सबसे अहम है 12 जून 1975 को इलाहबाद हाईकोर्ट की ओर से इंदिरा गांधी के खिलाफ दिया गया फैसला था।
हाइकोर्ट का फैसला बना आपातकाल की वजह
इतिहास के पन्नों में बताया जाता है कि आपातकाल की नींव 12 जून, 1975 को ही रख दी गई थी। इस दिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को रायबरेली के चुनाव अभियान में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने का दोषी पाया था और उनके चुनाव को खारिज कर दिया था। इतना ही नहीं, इंदिरा पर 6 साल तक चुनाव लड़ने पर और किसी भी तरह के पद संभालने पर कोर्ट द्वारा भी रोक लगा दी गई थी।
राजनारायण ने कोर्ट में दाखिल कराया था मामला
राज नारायण ने 1971 में रायबरेली में इंदिरा गांधी के हाथों हारने के बाद मामला दाखिल कराया था और जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा ने ये फैसला सुनाया था। हालांकि, 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश बरकरार रखा, लेकिन इंदिरा को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बने रहने की इजाजत दी। एक दिन बाद जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा के इस्तीफा देने तक देश भर में रोज प्रदर्शन करने का आह्वाहन किया। देश भर में हड़तालें चल रही थीं। जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई सहित कुछ नेताओं के नेतृत्व में व्यापक विरोध प्रदर्शन किया जा रहा था।
वहीं, इंदिरा गांधी आसानी से अपना सिंहासन छोड़ने के मूड में नहीं थीं। संजय गांधी कतई नहीं चाहते थे कि उनकी मां के हाथ से सत्ता जाए। उधर विपक्ष सरकार पर लगातार दबाव बना रहा था। नतीजा ये हुआ कि इंदिरा ने 25 जून की रात देश में आपातकाल लागू करने का फैसला लिया। आधी रात इंदिरा ने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद से आपाताकाल के फैसले पर दस्तखत करवा लिया।
पूरे देश में इंदिरा के खिलाफ छिड़ गया था आंदोलन
आपातकाल के दौरान जय प्रकाश नारायण की अगुवाई में पूरा विपक्ष एकजुट हो गया था। पूरे देश में इंदिरा के खिलाफ आंदोलन छिड़ गया था। सरकारी मशीनरी विपक्ष के आंदोलन को कुचलने में लग गई थी। अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मुलायम सिंह यादव समेत विपक्ष के तमाम नेता जेल में ठूंस दिए गए थे। संजय गांधी की मनमानियां सीमा पार कर गई थीं। उनके इशारे पर न जाने कितने पुरुषों की जबरन नसबंदी करवा दी गई थी।
छिन गए थे लोगों के अधिकार तक
रिपोर्ट्स में बताया जाता है कि सरकार ने पूरे देश को एक बडे़ जेलखाने में बदलकर रख दिया था। आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था। दिन दहाड़े लोकतंत्र की हत्या कर दी गई थी। इमरजेंसी में जीने तक का हक छीन लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने भी 2011 में अपनी गलती मानी थी। सुप्रीम कोर्ट ने 2 जनवरी, 2011 को यह स्वीकार किया कि देश में आपातकाल के दौरान इस कोर्ट से भी नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ था।
जनता ने लिया था बदला
जेपी की लड़ाई निर्णायक मुकाम तक पहुंच गई थी और इंदिरा को सिंहासन छोड़ना पड़ा। मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी का गठन हुआ। 1977 में फिर आम चुनाव हुए और इस चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह से हार गई। इंदिरा खुद रायबरेली से चुनाव हार गईं और कांग्रेस 153 सीटों पर सिमट गई। 23 मार्च, 1977 को 81 साल की उम्र में मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। ये आजादी के 30 साल बाद बनी पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी।