सार

बीते दिनों राज्य की बीजेपी सरकार ने धर्मांतरण रोकने के लिए कानून बनाने का ऐलान किया। अब इस कानून को अमलीजामा पहनाने के लिए राज्य सरकार विधानसभा में विधेयक लाने जा रही है। 

बेंगलुरू। यूपी, मध्य प्रदेश, असम और हिमाचल के बाद अब कर्नाटक में धर्मांतरण कानून को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो चुकी है। कर्नाटक सरकार, विधानसभा सत्र में धर्मांतरण विरोधी विधेयक (Karnataka Anti-Conversion Bill) पेश करने वाली है। इसका मसौदा तैयार हो चुका है। कर्नाटक में धर्मांतरण विरोधी कानून बनने के बाद यहां धर्म परिवर्तन कराने पर तीन से दस साल तक की सजा का प्राविधान हो जाएगा। साथ ही आरोपी पर एक लाख रुपये जुर्माना भी लगाया जा सकेगा। मुख्यमंत्री बसवराव बोम्मई (CM Basavraj Bommai) ने हाल ही में बताया कि राज्य में धर्म परिवर्तन कानून को लेकर सरकार पर काफी दबाव है। राज्य के अलग-अलग मठों के संतों ने राज्य सरकार से धर्म परिवर्तन पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून लाने की अपील की है। 

क्यों कानून की जरूरत बताई जा रही है?

दरअसल, कर्नाटक में धर्मांतरण को लेकर हमेशा विवाद होता रहा है। यहां हिंदूवादी संगठन हमेशा से चर्च व ईसाई मिशनरीज पर धर्मांतरण का आरोप लगाते रहे हैं। राज्य में इसको लेकर कई जगह हिंसा की भी खबरें आ चुकी हैं। बीते दिनों राज्य की बीजेपी सरकार ने धर्मांतरण रोकने के लिए कानून बनाने का ऐलान किया। अब इस कानून को अमलीजामा पहनाने के लिए राज्य सरकार विधानसभा में विधेयक लाने जा रही है। 

क्या है इस कानून का मसौदा?

धर्मांतरण करना है तो एक महीना की देनी होगी नोटिस

धर्मांतरण विधेयक बिल जो कर्नाटक विधानसभा में पेश किया जाना है, उसके ड्राफ्ट में कहा गया है कि धर्म परिवर्तन करने वालों को इसके लिए जिला मजिस्ट्रेट या अन्य किसी अधिकारी, जो अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट से नीचे की रैंक का अधिकारी न हो, को एक महीने पहले नोटिस देना होगा।

विवाद धर्मांतरण के लिए किया तो अमान्य

प्रस्तावित धर्मांतरण कानून अगर लागू हो जाएगा तो गैर-कानूनी धर्मांतरण के उद्देश्य से विवाह या विवाह के लिए गैर-कानूनी धर्मांतरण को अमान्य समझा जाएगा।

पीड़ित रिश्तेदार भी करा सकेगा FIR दर्ज

प्रस्तावित कानून के तहत कोई भी पीड़ित व्यक्ति, उसके माता-पिता, भाई, बहन, या कोई अन्य व्यक्ति जिनका ब्लड रिलेशन हो, वह अवैध धर्मांतरण की FIR दर्ज कर सकता है, जो धारा-3 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है।

कठोर सजा का प्राविधान

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और नाबालिगों के धर्मांतरण कराने पर कठोर सजा तय की गई है। प्रस्तावित कानून में कहा गया है कि नाबालिग, महिला या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति का गैर-कानूनी धर्मांतरण कराने वाले को तीन से दस साल के कारावास की सजा हो सकती है। साथ ही कम से कम 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है।

पीड़ित पक्ष को मुआवजा का भी प्राविधान

अगर राज्य में धर्मांतरण कानून प्रभावी हो जाता है तो पीड़ित को जुर्माने के अलावा पांच लाख रुपये तक का मुआवजा देने का प्राविधान है। अवैध धर्मांतरण के एकमात्र उद्देश्य के लिए किए गए विवाह के मामले में, विवाह को पारिवारिक न्यायालय द्वारा अमान्य घोषित कर दिया जाएगा। यदि कोई पारिवारिक न्यायालय नहीं हैं, तो ऐसे मामलों की सुनवाई करने का अधिकार क्षेत्र वाला न्यायालय भी ऐसे विवाहों को अमान्य घोषित कर सकता है। प्रस्तावित अधिनियम के प्रावधानों को गैर-जमानती कैटेगरी में रखा गया है।

धर्मांतरण कराने वाले संगठनों पर भी होगा केस

अगर कहीं अवैध धर्मांतरण की जाएगी तो सूचना मिलने के बाद जिला मजिस्ट्रेट को पुलिस के जरिए प्रस्तावित धर्मांतरण के वास्तविक इरादे, उद्देश्य और कारण के संबंध में जांच कराई जा सकेगी। अगर कोई भी संस्था या संगठन जो उल्लंघन करता है, उसे भी सज़ा का प्राविधान है। 

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