सार
दिल्ली सरकार द्वारा जारी किए गए मानसिक रूप से कमजोर 59 महिलाओं के आईक्यू अंक और तस्वीर पर हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है। कोर्ट ने यह जवाब दायर की गई एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान मांगा है।
नई दिल्ली. दिल्ली हाईकोर्ट ने शहर के आशा किरण गृह में रह रहीं मानसिक रूप से कमजोर 59 महिलाओं के आईक्यू अंक और तस्वीर जारी करने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर बुधवार को आप सरकार से जवाब मांगा। मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने अखबारों में प्रकाशित विज्ञापन में महिलाओं केआईक्यू के अंकों को दर्शाने के मकसद पर भी सवाल उठाए हैं।
विज्ञापन का उद्देश्य परिवारों से मिलाना था
दिल्ली सरकार के अतिरिक्त स्थायी अधिवक्ता संजय घोष ने अदालत को बताया कि इस विज्ञापन का मकसद महिलाओं को उनके परिवारों से मिलाने का था। इस पर अदालत ने पूछा, “उनका परिवार महिलाओं को आईक्यू के आधार पर कैसे पहचानेगा। तस्वीरें जारी करने कारणों को हम समझते हैं, लेकिन आईक्यू अंक क्यों जारी किए गए?”
महिलाओं का अपमान
पीठ ने केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी कर एनजीओ ‘प्रहरी सहयोग एसोसिएशन’ की याचिका पर जवाब दायर करने का निर्देश दिया। एनजीओ ने कहा कि महिलाओं की तस्वीरें और आईक्यू अंक जारी करना “भेदभाव” के दायरे में आता है। अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल के जरिए दायर इस याचिका में यह भी कहा गया है कि विज्ञापन दिव्यांग व्यक्ति अधिकार कानून के प्रावधानों और दिव्यांग व्यक्ति अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की संधि का उल्लंघन करता है जिनमें ऐसे व्यक्तियों की पहचान उजागर करने की मनाही है। बंसल ने अदालत से कहा कि सरकार का फैसला 59 महिलाओं की निजता एवं गरिमा का उल्लंघन है।
(यह खबर समाचार एजेंसी भाषा की है, एशियानेट हिंदी टीम ने सिर्फ हेडलाइन में बदलाव किया है।)