सार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव 2024 में एनडीए के लिए 400 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। आम चुनाव देशभर के 543 सीटों पर होते हैं।
लेखक- प्रेम शुक्ल, राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा। लोकसभा चुनाव के प्रथम चरण के लिए प्रत्याशियों के नामांकन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब से 'अबकी बार 400 पार' का नारा दिया है। तब से हर विपक्षी एक ही सवाल पूछ रहा है कि NDA लोकसभा चुनाव में 400 का आंकड़ा कैसे पार करेगा? भाजपा के लिए नरेंद्र मोदी ने 370 सीटों का लक्ष्य निर्धारित किया है।
जब 1951 में BJP के पूर्ववर्ती संगठन भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई थी तब संस्थापक अध्यक्ष डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जम्मू एवं कश्मीर के संदर्भ में भारत के संविधान में शामिल अस्थाई अनुच्छेद 370 को हटाने का संकल्प लिया था। यह संकल्प 5 अगस्त 2019 को नरेंद्र मोदी की सरकार ने पूरा किया। इसलिए पीएम ने यह संकल्प तमाम भाजपा कार्यकर्ताओं को दिलाया है कि हर बूथ पर 370 मतों को भाजपा के समर्थन में बढ़ाकर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को श्रद्धांजलि स्वरूप भाजपा अकेले के बूते 370 सीट प्राप्त करेगी। जब 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने 272+ का नारा दिया था तब भी विपक्ष के तमाम दल और उनके समर्थक इकोसिस्टम ने यही प्रश्न पूछा था कि भाजपा जिसका अस्तित्व ना तो दक्षिण में है और ना ही पूर्वोत्तर भारत में वह 272 सीटों का लक्ष्य अकेले के बूते कैसे प्राप्त करेगी ? जब चुनाव परिणाम आए तब सारे विश्लेषक और विरोधी दल हतप्रभ रह गए,भाजपा को अकेले 282 सीटें जीतने में सफलता हासिल हुई थी।
यही हाल 2019 के चुनाव का भी था। चुनाव के कुछ माह पहले पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए थे। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम सभी राज्यों में भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा था। तेलंगाना और मिजोरम में भाजपा का कोई विशेष अस्तित्व नहीं था, किंतु राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा सत्तारूढ़ थी। इन तीनों राज्यों में कांग्रेस को सफलता मिली थी। इस सफलता से उत्साहित होकर कांग्रेस के नेता और उनके बगल बच्चा दल तो एकीकृत हुए ही थे। साथ ही साथ उनका इकोसिस्टम भी प्रचंड उत्साहित था। उन सबका मानना था कि अधिकांश भाजपा प्रभाव वाले राज्यों में भाजपा सफलता के शिखर पर है, ऐसे में जिन तीन राज्यों में भाजपा को विधानसभा चुनाव में पराजय का सामना करना पड़ा है वहां भाजपा की लोकसभा सीटों में गिरावट अवश्यंभावी है। उसी के साथ सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में 1994 के बाद से लगातार एक-दूसरे के कट्टर राजनीतिक शत्रु बन चुके समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में समझौता हो गया था। सपा-बसपा के समझौते के चलते 1993 में उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा स्पष्ट बहुमत पाने में चूक गई थी। तब नारा लगा था 'मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम'। सारे चुनावी विश्लेषक कह रहे थे की बुआ-बबुआ का गठबंधन भाजपा के विजय रथ को उत्तर प्रदेश में ही रोक देगा। उस स्थिति में भी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने नारा लगाया 'अबकी बार 300 पार'। तब तमाम ओपिनियन पोल और राजनीतिक विश्लेषक भाजपा के इस लक्ष्य को असंभव करार दे रहे थे। लेकिन जब चुनाव परिणाम आए और भाजपा को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 303 सीटों का जनादेश प्राप्त हुआ तो सारे राजनीतिक पंडित अवाक रह गए ।
भाजपा के समर्थन में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आज जो लहर खड़ी हुई है वह रातों-रात नहीं उत्पन्न हुई है। उसके पीछे वर्षों की साधना और परिश्रम है। जब 2014 में नरेंद्र मोदी ने पहली बार भाजपा के लिए पूर्ण बहुमत का जनादेश मांगा था तब केवल 7 राज्यों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार थी और भाजपा सिर्फ 5 राज्यों में सत्तारूढ़ थी। ये राज्य थे गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और गोवा। तब उत्तर प्रदेश में भाजपा के केवल 10 सांसद और 42 विधायक हुआ करते थे। सो भाजपा बहु प्रादेशिक दल होने के चलते पूरे देश में अधिक कुछ कर पाएगी यह मानना राजनीतिक पंडितों के स्वप्न में नहीं था। आज जब नरेंद्र मोदी 'अबकी बार 400 पार' का नारा लगा रहे हैं तब राजग 17 राज्यों में सत्तारूढ़ है और अपने दम पर भाजपा की सरकार 12 राज्यों में है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, मध्य प्रदेश,राजस्थान, छत्तीसगढ़ ,गुजरात, गोवा, असम, त्रिपुरा, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में भाजपा की सरकार है। महाराष्ट्र, बिहार, मेघालय, नागालैंड और सिक्किम में राजग की सरकार है।
जिस समय नरेंद्र मोदी को पहली बार भाजपा ने प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के तौर पर पेश किया था तब देश के केवल 25 फीसदी क्षेत्रफल में राजग की सरकारें मौजूद थीं। अब 58% क्षेत्र और 57% आबादी पर भाजपा का शासन है। 2014 में भाजपा के विधायकों की संख्या 1000 से कम थी अब पूरे देश में भाजपा के 1485 विधायक हैं। राजग के विधायकों की कुल संख्या 1894 है। दूसरे राष्ट्रीय दल कांग्रेस से तुलना करें तो 1993 में जिस कांग्रेस के पास पूरे देश में 1501 विधायक हुआ करते थे आज उस कांग्रेस के पास केवल 644 विधायक शेष बचे हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों में केवल 136 भाजपा सांसदों को 50 प्रतिशत या उससे अधिक वोट मिले थे। 2019 में भाजपा ने ऐसी 224 सीटें जीती जिसमें उसे 50% से ज्यादा वोट प्राप्त हुए।
बीते कुछ चुनाव पर नजर घुमाएं। 2009 में भाजपा को केवल 1 लोकसभा सीट पर 3 लाख से अधिक मतों के अंतर से जीत मिली थी। 2019 में ऐसी सीटों की संख्या 105 तक पहुंच गई जहां भाजपा को 3 लाख या उससे अधिक वोटों से जीत मिली थी। 2019 में ऐसी 224 सीटें थी जिस पर भाजपा को 50 प्रतिशत से अधिक वोट मिले। इसके अतिरिक्त लगभग 35 सीटें ऐसी थीं जिस पर दूसरे और तीसरे स्थान पर रहने वाले उम्मीदवारों को प्राप्त मतों के योग से भी अधिक वोट भाजपा के प्रत्याशी को मिले। 2019 के लोक सभा चुनाव में 2014 की तुलना में भाजपा की 21 सीटें बढ़ कर 303 हो गई। वोट शेयर में लगभग 8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई। इस गति से भाजपा को 370 सीटों का लक्ष्य हासिल करना क्या असंभव है? 2014 के लोक सभा चुनाव के बाद से देश में 53 विधान सभा चुनाव संपन्न हुए हैं जिनमें से 30 चुनावों में भाजपा को जीत का परचम लहराने में सफलता मिली है।
2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से देश में 372 विधानसभा सीटों पर उप-चुनाव हुए। राजग को सर्वाधिक 175 सीटें जीतने में सफलता हासिल हुई। 2014 के बाद से विधानसभा उपचुनावों में अकेले दम पर भाजपा की जीत का प्रतिशत 40 से अधिक रहा है। दूसरे राष्ट्रीय दल से तुलना करें तो कांग्रेस के हिस्से केवल 11% सीटें आई हैं। 2014 और 2019, दोनों चुनावों में भाजपा ने गुजरात में सभी 26 सीटों पर 50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर हासिल किया। दिल्ली, हरियाणा में भी भाजपा का वोट शेयर हर सीट पर 50 प्रतिशत से अधिक रहा है। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां 2014 के चुनाव में 50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर के साथ भाजपा ने केवल 17 सीटें जीतीं, जबकि 2019 में भाजपा ने ऐसी 40 सीटें जीतीं जिसमें भाजपा के प्रत्याशियों को 50 फीसदी से ज्यादा वोट प्राप्त हुए।
त्रिपुरा और मणिपुर में भाजपा ने शून्य से सत्ता का सफर तय किया। वर्तमान में दोनों जगहों पर अपने दम पर भाजपा को बहुमत प्राप्त है। पश्चिम बंगाल में भाजपा ने 3 विधानसभा सीटों से 77 सीटों का सफर तय किया है। 5 साल पहले जिस राज्य में भाजपा के विधायकों का विधानसभा में स्वर गूंजना भी कठिन था, आज वह बंगाल की मुख्य विपक्षी दल है। जब बंगाल में भाजपा के 3 विधायक थे तब वहां 18 लोकसभा सीटों पर उसे सफलता मिली। अब 77 विधायकों वाली भाजपा की संभावित सफलता का अंदेशा आसानी से लगाया जा सकता है। तेलंगाना में जब भाजपा का केवल 1 विधायक था तब उसे 4 सीटों पर लोकसभा चुनाव जीतने में सफलता हासिल हुई थी। इस बार तेलंगाना में भाजपा के 8 विधायक निर्वाचित हुए हैं क्या वहां भाजपा की लोकसभा सीटों बहुगुणित नहीं होगी? केरल और तमिलनाडु के स्थानीय निकाय चुनाव में भाजपा का शानदार प्रदर्शन रहा है। दोनों राज्यों में भाजपा की सफलता संभावित है।
गुजरात में भाजपा लागातार सातवीं बार जीती है। गुजरात विधान सभा चुनाव इतिहास में 182 में से सबसे अधिक 156 सीटें भाजपा ने जीतीं। मतलब 85% से अधिक सीटों पर जीत। कांग्रेस विधायक भाजपा में शामिल हो रहे हैं। कांग्रेस के विधायक बच जाए, यही बड़ी सफलता होगी।
मध्य प्रदेश में लगातार पांचवीं बार भाजपा ने सरकार संस्थापित की। भाजपा को 230 में से 163 सीटें जीतने में सफलता मिली। स्पष्ट बहुमत न पाने की स्थिति में भी जब लोकसभा चुनाव हुए तब 29 में से 28 लोकसभा सीट जीतने में भाजपा सफल हुई थी। अब क्या कांग्रेस छिंदवाड़ा की सीट भी बचा पाएगी?
हर राज्य से कांग्रेस का सफाया होता जा रहा है। वर्तमान में कांग्रेस की केवल कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में सरकार है । हिमाचल प्रदेश के भी कांग्रेस के 6 विधायक भाजपा में शामिल हो चुके हैं। किसी भी दिन कांग्रेस हिमाचल प्रदेश की सरकार भी गंवा बैठेगी । भारत, कांग्रेस मुक्त होने की स्थिति में है। BJP के नेतृत्व में NDA 400 पार के लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होता दिखाई दे रहा है ।