सार
मई 2016 में भाजपा सरकार द्वारा जेआर आर्यन नामक एक सेवानिवृत्त दिल्ली उच्च न्यायिक सेवा के अधिकारी की एक जांच समिति का गठन किया गया था। इसे 6 महीने की अवधि के भीतर रिपोर्ट जमा करने का काम सौंपा गया था। जून 2017 में समिति ने सिफारिश की कि 123 संपत्तियों पर अंतिम निर्णय दिल्ली वक्फ आयुक्त द्वारा लिया जाना चाहिए।
नई दिल्ली। तमिलनाडु वक्फ बोर्ड ने 7 हिंदू बहुल गांवों और तिरुचिरापल्ली में एक मंदिर के स्वामित्व का दावा किया है। इन दावों के बीच एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए सरकार में लुटियंस दिल्ली में 123 सरकारी संपत्तियों को वक्फ बोर्ड को सौंप दी गई थी। 2014 के आम चुनावों में पहले वक्फ बोर्ड को कैबिनेट के निर्णय के बाद संपत्तियों को सौंप दिया गया था। यह संपत्तियां कनॉट प्लेस, अशोक रोड, मथुरा रोड और कई अन्य वीवीआईपी जगहों पर स्थित हैं।
चैनल का दावा-एक गुप्त फोन कॉल के बाद शुरू हुई कार्रवाई
टाइम्स नाउ ने बताया कि दिल्ली वक्फ बोर्ड के पक्ष में 123 सरकारी संपत्तियों की पहचान करके उसे सौंपने के लिए एक फोन कॉल आया था। चैनल ने उस नोट को भी साझा किया है जो 5 मार्च 2014 को आदेश दिया गया था। संपत्तियों को सौंपने के लिए जो कागजात चैनल ने साझा किए हैं उस पर तत्कालीन अतिरिक्त सचिव जेपी प्रकाश के सिग्नेचर हैं। नोट में यह लिखा था कि भूमि और विकास कार्यालय (एलएनडीओ) और दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के नियंत्रण में दिल्ली में 123 संपत्तियों की अधिसूचना दिल्ली वक्फ बोर्ड को वापस करने की इजाजत देता है। मिनट्स के औपचारिक रिलीज होने तक मंत्रालय को सूचित कर दिया गया है।
वक्फ बोर्ड ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर किया था दावा
टाइम्स नाउ के अनुसार, दिल्ली वक्फ बोर्ड ने 27 फरवरी 2014 को भारत सरकार को एक पत्र भेजकर दिल्ली क्षेत्र में अपनी 123 संपत्तियों पर दावा करते हुए उसे वापस करने की मांग की थी। वक्फ बोर्ड का पत्र मिलने के बाद कैबिनेट ने संपत्तियों को वापस करने का प्रस्ताव पास कर दिया। इसके बाद एक गुप्त नोट जारी कर संपत्तियों को वापस करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई।
न्यूज चैनल ने दावा किया कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने माना कि 123 संपत्तियां दिल्ली वक्फ बोर्ड की थीं। बोर्ड से एक नोट प्राप्त करने के बाद उन पर अपना दावा वापस लेने का फैसला किया। बताया जा रहा है कि यह संपत्तियां ब्रिटिश सरकार से विरासत में मिली थीं और उनकी स्थिति 5 मार्च, 2014 तक अपरिवर्तित रही।
एनडीए सरकार ने 2015 में मामले का संज्ञान लिया
2014 में एनडीए सरकार बनने के बाद फरवरी 2015 में इस प्रकरण में जांच करने का आदेश हुआ। एनडीए सरकार ने अपने पूर्ववर्ती सरकार के आदेश की जांच शुरू करा दी। विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने यूपीए सरकार के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हिंदू संगठन ने तब तर्क दिया था कि बेशकीमती संपत्तियों को रिलीज नहीं किया जा सकता है। भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 48 के तहत चिंहित की जा सकती है।
चुनाव अधिसूचना के एक दिन पहले सौंपी गई संपत्ति
कोर्ट में यह बताया गया कि वक्फ बोर्ड को चुनाव अधिसूचना जारी होने के एक दिन पहले 123 संपत्तियों को सौंपा गया था। कथित तौर पर, 123 संपत्तियों में से 61 का स्वामित्व एलएनडीओ के पास था जबकि शेष 62 संपत्तियों का स्वामित्व डीडीए के पास था।
दिल्ली वक्फ बोर्ड ने अपने फैसले का बचाव किया
यूपीए द्वारा स्वामित्व के हस्तांतरण के बाद दिल्ली वक्फ बोर्ड के नोडल अधिकारी आलम फारूकी ने कहा कि 123 संपत्तियां मस्जिदों, दरगाहों और कब्रिस्तानों पर बनी हैं। उन्होंने दावा किया कि यूपीए के फैसले को उलटने से राजस्व सृजन और मुस्लिम समुदाय के विकास में बाधा उत्पन्न होगी। फारूकी ने कहा कि वक्फ संपत्तियों से होने वाले राजस्व का उपयोग समुदाय के कल्याण के लिए किया जाता है। केवल कुछ मुट्ठी भर खाली जमीन है और इनमें से अधिकांश पर कब्जा कर लिया गया है। स्वामित्व अधिकारों से हमें अतिक्रमण हटाने में मदद मिलेगी।
जांच समिति मामले का समाधान करने में विफल
मई 2016 में भाजपा सरकार द्वारा जेआर आर्यन नामक एक सेवानिवृत्त दिल्ली उच्च न्यायिक सेवा के अधिकारी की एक जांच समिति का गठन किया गया था। इसे 6 महीने की अवधि के भीतर रिपोर्ट जमा करने का काम सौंपा गया था। जून 2017 में समिति ने सिफारिश की कि 123 संपत्तियों पर अंतिम निर्णय दिल्ली वक्फ आयुक्त द्वारा लिया जाना चाहिए। एक अधिकारी ने बताया कि जेआर आर्यन कमेटी डी-नोटिफिकेशन के मूल मुद्दे की जांच करने में विफल रही है कि क्या संपत्ति वास्तव में वक्फ की थी। समिति ने सुझाव दिया कि डीडीए और एलएनडीए समाधान के लिए आयुक्त के साथ मामले को उठाएं। दिल्ली वक्फ बोर्ड के आयुक्त को नियुक्त करने की शक्ति दिल्ली सरकार के पास है। हालांकि, यह कहा जा रहा है कि अगर केंद्र सरकार की कमेटी ने सही से जांच की होती और पैनल ने निर्णय ले लिया होता तो संपत्तियों को वक्फ बोर्ड से वापस लिया जा सकता था।