सार

महाराष्ट्र में विधानसभा की 288 सीटों पर मतगणना का जारी है। कई सीटों के अंतिम नतीजे भी आने लगे हैं। हालांकि मतगणना में बीजेपी-शिवसेना के गठबंधन को बहुमत मिलता नजर आ रहा है, मगर दोनों पार्टियों की कुल सीटें पिछले चुनाव के मुक़ाबले कम हैं।

मुंबई। महाराष्ट्र में विधानसभा की 288 सीटों पर मतगणना का जारी है। कई सीटों के अंतिम नतीजे भी आने लगे हैं। हालांकि मतगणना में बीजेपी-शिवसेना के गठबंधन को बहुमत मिलता नजर आ रहा है, मगर दोनों पार्टियों की कुल सीटें पिछले चुनाव के मुक़ाबले कम हैं। हालांकि, शरद पवार ने शिवसेना के साथ हाथ मिलाने से इनकार कर दिया।

वहीं, विपक्ष में एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन के साथ रुझानों में अन्य दल काफी फायदे में दिख रहे हैं। रुझानों में बीजेपी सबसे बड़े दल के रूप में सामने है। चूंकि बड़ा दल बनने के बावजूद 2019 के रुझान पूरी तरह से बीजेपी के पक्ष में नहीं हैं। राज्य में जिस तरह से सीटों का रुझान आया है वो बीजेपी के लिए खतरे घंटी भी है।

बीजेपी के लिए खतरे की घंटी
बीजेपी 100 से कुछ ज्यादा सीटें ही जीतती नजर आ रही है। पिछली बार पार्टी ने अपने दम पर 122 सीटें जीती थी। जहां, बीजेपी की सीटों में कमी नजर आ रही है वहीं शिवसेना को काफी फायदा मिलता दिख रहा है। इस बीच कांग्रेस की ओर से महाराष्ट्र में कर्नाटक पैटर्न दोहराए जाने के संकेत भी आने लगे हैं। इस बीच कांग्रेस प्रवक्ता सचिन सावंत का एक ट्वीट चर्चा में है।

दरअसल, मतगणना के दौरान सचिन सावंत ने एक ट्वीट किया और लिखा, "बीजेपी को सत्ता से दूर रखना ही कांग्रेस पार्टी की प्राथमिकता है।" अब यह चर्चा होने लगी है कि विपक्ष की ओर से बीजेपी को सत्ता से दूर रखने का मतलब है कि उसके बड़े सहयोगी शिवसेना को तोड़ा जाए। या कर्नाटक की तर्ज पर सपोर्ट देकर उसकी सरकार बनवा दी जाए।

बीजेपी के सामने कर्नाटक पैटर्न का खतरा
कांग्रेस ने बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए कर्नाटक में यही रणनीति इस्तेमाल की थी। तब पार्टी ने बेहद कम विधायकों वाली एचडी कुमारस्वामी की पार्टी जनता दल (सेकुलर) को सरकार बनाने के लिए अपना समर्थन दे दिया था। माना जा रहा है कि कांग्रेस और एनसीपी शिवसेना को भी ऐसा प्रस्ताव दे सकती है। शिवसेना-बीजेपी के बीच पिछले कुछ सालों में हमेशा की खींचतान और हाल की राजनीतिक घटनाओं को देखते यह भी होने की संभावना है कि शिवसेना आदित्य ठाकरे को स्थापित करने के लिए विपक्ष के न्यौते को स्वीकार भी कर ले।

बताते चलें कि रुझानों में एनसीपी कांग्रेस और शिवसेना के विधायकों की संख्या करीब 160 तक पहुंचती नजर आ रही है। यह संख्या राज्य में सरकार बनाने के लिए पर्याप्त से ज्यादा है।

बीजेपी के पास क्या होगा विकल्प ?
चूंकि राज्य में जिस तरह के राजनीतिक विकल्प बन रहे हैं उसमें कई सिरे नजर आ रहे हैं। सबसे फायदे में अन्य दलों के साथ शिवसेना ही नजर आ रही है। शिवसेना के दोनों हाथ में लड्डू है। विपक्ष का सहयोग मिला तो वो उनके सहयोग से अपना मुख्यमंत्री (आदित्य ठाकरे) बना सकती है, जिसकी काफी चर्चा है। इसके साथ ही बीजेपी से सरकार में बराबरी की हिस्सेदारी भी मांग सकती है। या यह भी संभव है कि शिवसेना ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री के फॉर्मूले पर राजी हो।

बताते चलें कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने इस फॉर्मूले पर बहुजन समाज पार्टी के साथ सरकार बनाई थी। मगर जब बीजेपी के मुख्यमंत्री की बारी आई मायावती ने गठबंधन तोड़ दिया था।