सार
Malhar Meat Hindu Mutton Controversy: मल्हार मीट के '100% हिंदू मटन' दावे ने देश में भोजन, धर्म और बाज़ार के संबंधों को लेकर नई बहस छेड़ दी है। जानिए इस विवाद के पीछे की परतें।
Malhar Meat Hindu Mutton Controversy: कहते हैं, खाना सिर्फ पेट नहीं भरता—परंपरा, पहचान और रिश्तों की स्मृति भी उसमें घुली होती है। लेकिन जब खाने को धर्म की दीवारों में बांटा जाए तो सामाजिक ताने-बाने में कुछ दरारें ज़रूर उभर आती हैं। दरअसल, कुछ इस तरह की दरारें इन दिनों मटन को लेकर चौड़ी होती दिख रही हैं।
इस विवाद को हवा उस समय मिलना शुरू हुआ जब महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नीतेश राणे ने मल्हार सर्टिफिकेशन का शुभारंभ किया। मल्हार सर्टिफिकेशन का मतलब हिंदू मटन शॉप। राणे ने इसकी शुरूआत करते हुए बताया था कि मल्हार सर्टिफिकेशन का उद्देश्य हिंदू समाज के युवाओं को भी आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए है। साथ ही इससे यह सुनिश्चित होगा कि मटन में कोई मिलावट न हो। राणे ने अपील की कि हिंदू लोग उन दुकानों से मटन न खरीदें, जहां मल्हार सर्टिफिकेशन उपलब्ध नहीं है। राणे ने अपने बयान में कहा: मल्हार सर्टिफिकेशन के माध्यम से हमें अपनी उचित मटन दुकानें मिलेंगी और दुकानदार भी 100% हिंदू समुदाय से होंगे।
क्या है मल्हार सर्टिफिकेशन?
मल्हार सर्टिफिकेशन एक नई पहल है जो हलाल सर्टिफिकेशन (Halal Certification) के समान होगी। हलाल मांस उस प्रक्रिया के तहत तैयार किया जाता है, जो इस्लामी कानूनों के अनुसार होती है। वहीं, झटका मांस (Jhatka Meat) में जानवर की गर्दन को एक झटके में काट दिया जाता है, जबकि हलाल प्रक्रिया में जानवर का खून पहले निकाला जाता है।
मल्हार सर्टिफिकेशन के साथ शुरू हुआ विवाद
मल्हार सर्टिफिकेशन वाले 100 प्रतिशत हिंदू मटन की इस टैगलाइन ने एक भावनात्मक बहस को जन्म दे दिया। बहस शुरू हो गई कि क्या अब मटन भी धार्मिक प्रमाण पत्र लेकर बिकेगा? क्या खाने को भी अब 'धार्मिक ब्रांड' की ज़रूरत है?
हालांकि, मल्हार मीट के इस दावे को कुछ लोगों ने गौरव से जोड़ा तो कईयों ने इसे धर्म का व्यावसायिक शोषण कहा। आलोचकों ने साफ कहा कि भोजन की प्लेट को धार्मिक पहचान से बांधना सामाजिक विभाजन को और गहरा करेगा।
विवाद की लपटें अब कानूनी दहलीज़ तक
कुछ सामाजिक संगठनों और उपभोक्ता मंचों ने FSSAI से इस पर जवाब मांगा है कि क्या 100% हिंदू मटन कहना उपयुक्त है? क्या यह उपभोक्ताओं को भ्रामक जानकारी देना नहीं है?
समाजशास्त्रियों का कहना है कि भोजन का सांस्कृतिक आधार मजबूत होता है लेकिन जब उसे धार्मिक मार्केटिंग का माध्यम बनाया जाता है तो वह सामाजिक विभाजन की तरफ बढ़ने लगता है।
बहरहाल, मल्हार मीट के प्रचार ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत में अब भोजन सिर्फ स्वाद या पोषण नहीं है, वह धार्मिक पहचान और बाज़ारी रणनीति का नया मोहरा बन चुका है। मौजूं सवाल यह कि इस ब्रांडिंग को समाजिक स्वीकार्यता मिलेगी।