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कितनी बार शपथ लेते हैं प्रधानमंत्री? क्या बोला जाता है शपथ समारोह में, जानें सब कुछ
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कितनी बार शपथ लेते हैं प्रधानमंत्री? क्या बोला जाता है शपथ समारोह में, जानें सब कुछ
आज हम आपको बताएंगे कि हमारे देश के संविधान में शपथ ग्रहण को लेकर क्या नियम हैं? इससे जुड़े कौन से जरूरी नियम है और शपथ ग्रहण समारोह इतना महत्वपूर्ण क्यों होता है? राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यों के मुख्यमंत्री, मंत्री आखिरकार किस बात की शपथ लेते हैं?
देश के संविधान
देश के संविधान के मुताबिक सांसद, विधायक, प्रधानमंत्री व मंत्रियों को पद संभालने से पहले संविधान के प्रति श्रद्धा रखने की शपथ उठानी होती है। ऐसा न करने पर जनप्रतिनिधि किसी भी सरकारी काम में हिस्सा नहीं ले सकते हैं। आसान भाषा में कहे तो शपथ न लेने पर वो निर्वाचित जरूर माने जाएंगे पर सांसद नहीं माने जाएंगे।
देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री, पंच-सरपंच
देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री, पंच-सरपंच और सरकारी सेवा के लिए पद की गरिमा बनाए रखने, ईमानदारी व निष्पक्षता से काम करने और हर हाल में देश की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने की शपथ दिलाई जाती है। शपथ की प्रक्रिया हिंदी, अंग्रेजी समेत किसी भी भारतीय भाषा में की जा सकती है।
लोकसभा सांसद और विधायक
लोकसभा सांसद और विधायक पद की गरिमा बनाए रखने की शपथ लेते हैं। इसमें ईमानदारी व निष्पक्षता से काम करने और हर हाल में देश की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने का प्रण शामिल होता है। केंद्र और राज्य में मंत्री पद पर नियुक्त होने वाले सांसद और विधायक गोपनीयता की शपथ लेते हैं.
देश के प्रधानमंत्री अनुच्छेद 75 के मुताबिक राष्ट्रपति के सामने शपथ ग्रहण करते हैं
देश के प्रधानमंत्री अनुच्छेद 75 के मुताबिक राष्ट्रपति के सामने शपथ ग्रहण करते हैं। शपथ के लिए एक निर्दिष्ट शपथ पत्र का पालन किया जाता है, जिसे प्रधानमंत्री पढ़ते हैं और स्वीकार करते हैं। शपथ के बाद एक आधिकारिक प्रमाण पत्र भी जारी किया जाता है, जिसमें प्रधानमंत्री की शपथ लेने की तारीख और समय शामिल होती है, जिस पर प्रधानमंत्री से हस्ताक्षर भी कराए जाते हैं।
प्रधानमंत्री पद की शपथ
प्रधानमंत्री पद की शपथ कुछ इस प्रकार होती है। मैं (व्यक्ति का नाम) शपथ लेता हूं, कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा। मैं भारत की प्रभुता और अखंडता को अक्षुण्ण रखूंगा। मैं संघ के प्रधानमंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक एवं शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करूंगा। मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूंगा।