सार
Pegasus Spyware Case की निष्पक्ष जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 27 अक्टूबर को एक एक्सपर्ट कमेटी बनाने का आदेश जारी किया है। बता दें कि इस मामले में 15 याचिकाएं(petitions) डाली गई हैं।
नई दिल्ली. संसद के मानसून सत्र(monsoon session) के दौरान सामने आए Pegasus Spyware Case में 27 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक अहम आदेश जारी किया है। SC ने जांच के लिए एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया है। यह कमेटी सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता में काम करेगी। कमेटी को तेजी से जांच करने को कहा गया है। 8 हफ्ते बाद फिर इस मामले में सुनवाई की जाएगी। इस तीन सदस्यीय कमेटी में पूर्व IPS अफसर आलोक जोशी और इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ स्टैंडर्डाइजेशन सब-कमेटी के चेयरमैन डॉ. संदीप ओबेरॉय भी शामिल किए गए हैं। अदालत ने 3 टेक्निकल टेक्निकल कमेटी भी गठित की हैं। इसमें साइबर सिक्योरिटी और डिजिटल फोरेंसिंक के प्रोफेसर डॉ. नवीन कुमार चौधरी, इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डॉ. प्रभाकरन पी और कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अश्विन अनिल गुमस्ते को शामिल किया गया है
बता दें इस मामले की निष्पक्ष जांच को लेकर सीनियर जर्नलिस्ट एन राम, सांसद जॉन ब्रिटास और यशवंत सिन्हा सहित 15 लोगों ने याचिकाएं (petitions) दाखिल कर रखी हैं। केंद्र सरकार ने इस मामले में निष्पक्ष टेक्निकल एक्सपर्ट कमेटी बनाने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन याचिकाकर्ताओं ने इसका विरोध किया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी उसे खारिज कर दिया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही संकेत दिए थे कि वो अपनी तरफ से कमेटी का गठन कर सकता है। 23 सितंबर को चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा था कि वे एक कमेटी का गठन करना चाहते हैं, लेकिन कुछ विशेषज्ञों ने निजी कारणों से कमेटी में शामिल होने से मना कर दिया था। इसके चलते आदेश जारी होने में देरी हो रही है।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा
इस मुद्दे पर केंद्र द्वारा कोई विशेष खंडन नहीं किया गया है। इस प्रकार हमारे पास याचिकाकर्ता की दलीलों को प्रथम दृष्टया स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है और हम एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त करते हैं, जिसका कार्य सर्वोच्च न्यायालय द्वारा देखा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम सूचना के युग में रहते हैं। हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि प्रौद्योगिकी महत्वपूर्ण है, लेकिन यह न केवल पत्रकारों के लिए बल्कि सभी नागरिकों के लिए निजता के अधिकार की रक्षा करना महत्वपूर्ण है।सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि शुरू में जब याचिकाएं दायर की गईं तो अदालत अखबारों की रिपोर्टों के आधार पर दायर याचिकाओं से संतुष्ट नहीं थी, हालांकि, सीधे पीड़ित लोगों द्वारा कई अन्य याचिकाएं दायर की गईं।
सरकार ने दिया था यह तर्क
याचिकाकर्ता पक्ष की तरफ से सीनियर वकीलों कपिल सिब्बल, श्याम दीवान, दिनेश द्विवेदी, राकेश द्विवेदी, मीनाक्षी अरोड़ा और कोलिन गोंजाल्विस ने तर्क दिया था कि सरकार इस मामले में तथ्य छुपाना चाहती है, इसलिए वो कमेटी बनाने का प्रस्ताव रख रही है। हालांकि सरकार ने जवाब दिया था कि वो सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा के चलते सॉफ्टवेयर इस्तेमाल पर सार्वजनिक चर्चा नहीं चाहती।
यह है पेगासस जासूसी केस
19 जुलाई 2021 को, एक भारतीय समाचार पोर्टल सहित 17 अंतर्राष्ट्रीय मीडिया संगठनों के एक ग्रुप ने पेगासस प्रोजेक्ट नाम के दुनिया भर के फोन नंबरों की लीक हुई सूची के बारे में एक रिपोर्ट पब्लिश की थी। लीक की गई सूची में ये नंबर कथित तौर पर इजरायल के एनएसओ ग्रुप द्वारा बेचे गए पेगासस स्पाइवेयर द्वारा हैक किए गए थे। हैक किए जाने वाले फोन की 'टारगेट लिस्ट' हैं। लक्ष्य सूची में 136 प्रमुख राजनेताओं, न्यायाधीशों, पत्रकारों, व्यापारियों, अधिकार कार्यकर्ताओं आदि की संख्या शामिल है। एनएसओ ग्रुप, जो ‘पेगासस स्पाइवेयर‘ का मालिक है, पर व्हाट्सएप और फेसबुक द्वारा 2019 में यूएस कैलिफोर्निया कोर्ट के समक्ष दूरस्थ निगरानी करने के लिए अपने प्लेटफॉर्म का शोषण करने के लिए मुकदमा दायर किया गया था। एनएसओ ने बताया था कि उसके उत्पाद केवल सरकारों और राज्य एजेंसियों को बेचे गए थे। हालांकि, कैलिफोर्निया कोर्ट ने व्हाट्सएप के पक्ष में फैसला सुनाया और एनएसओ के दावे को खारिज कर दिया था।
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