सार

प्रवासी भारतीय दिवस पर पीएम मोदी ने गिरमिटिया मजदूरों का डिजिटल डेटाबेस बनाने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि इनके जीवन, संघर्ष और उपलब्धियों को डॉक्यूमेंट्री और फिल्मों के जरिए दुनिया के सामने लाया जाए।

भुवनेश्वर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने दुनिया भर में नाम कमाने के लिए प्रवासी भारतीयों की तारीफ की। पीएम ने गिरमिटिया लोगों को भी याद किया। कहा कि इनके बारे में जानकारी जुटाने और उन्हें डिजिटल फॉर्मेट में स्टोर करने की जरूरत है।

नरेंद्र मोदी ने कहा, "कुछ सदी पहले गुजरात से कुछ परिवार ओमान जाकर बस गए थे। 250 साल की उनकी यात्रा काफी प्रेरणा देती है। यहां इससे जुड़ी प्रदर्शनी लगाई गई है। इसमें इस समाज से जुड़े हजारों दस्तावेजों को डिजिटल रूप में दिखाया गया है। समाज के बुजुर्ग लोगों ने अपने अनुभव शेयर किए हैं। मुझे खुशी है कि इनमें से कई परिवार आज यहां मौजूद हैं।"

गिरमिटिया साथियों का डेटा बेस बनाया जाए

पीएम ने कहा, "इसी तरह के प्रयास हमें अलग-अलग देशों में गए भारतीय समाज के साथ करने चाहिए। जैसे एक उदाहरण हमारे गिरमिटिया भाई बहन हैं। क्यों न हमारे गिरमिटिया साथियों का एक डेटा बेस बनाया जाए कि वे भारत के किस-किस गांव से, किस शहर से गए। इसकी पहचान हो। वे कहां-कहां जाकर बसे, उन जगहों को भी चिह्नित किया जाए। उनकी जीवनशैली कैसी रही। उन्होंने कैसे चुनौतियों को संभावनाओं में बदला। इसे सामने लाने के लिए फिल्म बन सकती है, डॉक्यूमेंट्री बन सकती है। गिरमिटिया विरासत पर स्टडी हो। नियमित अंतराल पर वर्ल्ड गिरमिटिया कॉन्फ्रेंस कराई जा सकती है। मैं अपनी टीम से कहूंगा कि इसकी संभावनाएं तलाशें।"

कौन हैं गिरमिटिया?

भारत पर जब अंग्रेजों का राज था तब अंग्रेज बहुत से भारतीयों को गुयाना, ट्रिनिडाड टोबैको, मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम और अन्य देशों में ले गए थे। इनसे मजदूरी कराई गई। वे जहां गए वहीं बस गए। कभी लौटकर भारत नहीं आए। ये गए तो मजदूर के रूप में थे, लेकिन अपनी मेहनत और प्रतिभा के बल पर वहां के समाज में प्रमुख स्थान बनाया। गिरमिटिया समाज के कई लोग सत्ता के शिखर तक भी पहुंचे हैं।

गुयाना के राष्ट्रपति मोहम्मद अरफान अली के पूर्वज गिरमिटिया मजदूर थे। अंग्रेज 1830 के दशक में भारत से मजदूरों को 5 साल के अनुबंध पर अमेरिका, अफ्रीका और यूरोप के देशों में ले गए थे। ये मजदूर अनुबंध खत्म होने के बाद भारत आ सकते थे, लेकिन उनके पास कभी इतने पैसे नहीं हुए कि भारत लौट सके। अंग्रेज भारत से लाए गए मजदूरों को गिरमिटिया कहते थे। इसी वजह से उन्हें गिरमिटिया मजदूर कहा जाने लगा। इन मजदूरों को गन्ना, केला और अन्य फसलों को उगाने के लिए खेतों में काम करना पड़ा। इनका उत्पीड़न किया गया। 1917 में गिरमिटिया व्यवस्था खत्म हुई थी।

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