सार
पीएम मोदी ने मंगलवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री बालासाहेब विखे पाटिल की आत्मकथा का वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए विमोचन किया। पीएम ने ‘प्रवर ग्रामीण शिक्षा सोसायटी’ का नाम बदलकर 'लोकनेते डॉ. बालासाहेब विखे पाटिल प्रवर रूरल एजुकेशन सोसाइटी' कर दिया है।
नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने मंगलवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री बालासाहेब विखे पाटिल (Balasaheb Vikhe Patil) की आत्मकथा का वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए विमोचन किया। साथ ही पीएमने ‘प्रवर ग्रामीण शिक्षा सोसायटी’ का नाम बदलकर 'लोकनेते डॉ बालासाहेब विखे पाटिल प्रवर रूरल एजुकेशन सोसाइटी' कर दिया।
कौन हैं बालासाहेब विखे पाटिल...
10 अप्रैल, 1932 को जन्मे पाटिल ने कई कार्यकालों तक लोकसभा के सदस्य के रूप में कार्य किया। वे 14 वीं लोकसभा के सदस्य भी थे। साल 2016 में 84 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने कहा- पाटिल की आत्मकथा का नाम 'देह वीचवा करणी' (अपना जीवन किसी नेक काम के लिए समर्पित करना) है और यह उपयुक्त शीर्षक है। उन्होंने अपना पूरा जीवन कृषि और सहकारिता सहित विभिन्न क्षेत्रों में अपने अनोखे कार्य के जरिए समाज के लाभ के लिए समर्पित कर दिया।
क्या है प्रवर ग्रामीण शिक्षा सोसायटी?
‘प्रवर ग्रामीण शिक्षा सोसायटी’ की स्थापना 1964 में अहमदनगर जिले के लोनी में की गई थी। इसका मकसद ग्रामीण जनता को विश्व स्तरीय शिक्षा प्रदान करना और बालिकाओं को सशक्त बनाना था। यह संस्था छात्रों के शैक्षिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक विकास के मुख्य मिशन के साथ काम कर रहा है।
कांग्रेस से भाजपा में आए थे बालासाहेब
बालासाहेब पहले कांग्रेस के सदस्य थे, लेकिन बाद में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए। उन्होंने एक सांसद के रूप में महाराष्ट्र के कोपरगाँव और अहमदनगर (दक्षिण) निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। इसके अलावा, उन्होंने 1 जुलाई, 2002 से 24 मई, 2003 तक केंद्रीय भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यम मंत्री के रूप में अपनी सेवाओं दीं। इससे पहले, वह 1999 से 2002 के बीच केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री थे।
विट्ठलराव विखे पाटिल के बेटे थे बालासाहेब
बालासाहेब, विट्ठलराव विखे पाटिल के बेटे थे, जिन्हें महाराष्ट्र के लोनी में एशिया की पहली सहकारी चीनी फैक्ट्री शुरू करने का श्रेय दिया जाता है। उनके काम और समाज में योगदान के लिए, उन्हें 2010 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।