सार

आईएएमएआई (IAMAI) ने कई महत्वपूर्ण विषयों पर पैनल डिस्कशन कराया। पब विजन (PubVision21)  विभिन्न सेशन्स में देश के विभिन्न क्षेत्रों के दिग्गजों ने अपनी राय रखी। 

नई दिल्ली। डिटिजल क्रांति ने सूचनाओं के पहुंच को आसान तो किया ही है साथ ही अपने साथ कई विसंगतियों को भी लेकर आया है। आलम यह कि पहले हम, पहले हम के चक्कर में गलत सूचनाओं की बाढ़ भी आ चुकी है। गलत सूचनाओं का प्रसार कर तमाम संस्थाएं या कंपनियां व लोग अपना हित भी साधने में सफल हो रहे हैं तो संवेदनशील या सही सूचना की तलाश में रहने वाला पाठक व दर्शक कमोवेश खुद को ठगा हुआ भी महसूस कर रहा। 

शुक्रवार को इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन आफ इंडिया ने डिजिटल मीडिया की अच्छाईयों और इसकी कमियों को लेकर कई सेशन्स का आयोजन किया। आईएएमएआई द्वारा आयोजित पबविजनः द बिजनेस आफ डिजिटल पब्लिशिंग कार्यक्रम के सेशन में गलत सूचना को लेकर पैनल डिस्कशन हुआ। ‘गलत सूचना’ विषयक इस पैनल डिस्कशन में पैनलिस्ट इंटरनेशनल फैक्ट चेकिंग नेटवर्क के निदेशक बाबर ओरसेक, इंडियास्पेंड के संस्थापक गोविंदराज एथिराज और एशियानेट न्यूज मीडिया के चेयरमैन राजेश कालरा ने गलत सूचनाओं के दौर में विश्वास स्थापित करने की चुनौतियों पर अपना विजन शेयर किया। इस अवसर पर बात की।

पैनल में शामिल एशियानेट न्यूज मीडिया के चेयरमैन राजेश कालरा ने कहा कि सूचना क्रांति का यह दौर बून और कर्स दोनों साबित हो रहा है। अभी कुछ दिन पहले का ही उदाहरण लें, कोका कोला और रोनाल्डो का प्रकरण सारी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। यह मिसइंफार्मेशन का एक सबसे ज्वलंत उदाहरण है। सारी दुनिया में यह प्रसारित किया गया कि रोनाल्डो ने कोका कोला का बोतल हटाया और कंपनी का शेयर नीचे गिर गया जिसका करोड़ों में नुकसान उसे झेलना पड़ा, जबकि सच्चाई कुछ और थी। पूरे यूएस में इन दिनों शेयर मार्केट लुढ़का हुआ है। कोका कोला का शेयर काफी दिनों से नीचे आ रहा था। लेकिन यह किसी ने चेक नहीं किया। बल्कि सबने एक माइंडसेट पर काम करते हुए रोनाल्डो के कोक का बोतल हटाने की घटना को ही प्राययारिटी देकर लोगों को भ्रमित किया।

दरअसल, पत्रकारिता के बदले स्वरूप ने कई तरह की विसंगतियों को पैदा किया है। हम किसी न्यूज को कवर करते हुए उसको उसी तरह पेश करने की बजाय उस मुद्दे की रिपोर्टिंग ओपिनियन राइटर के रूप में करने लगे हैं। अपने फायदे के लिए किस आंकड़े को कैसे प्रस्तुत करना है यह करते हैं। कोविड को ही ले लें। कभी अपनी बात साबित करने के लिए परसेंट में आंकड़ें लिखते तो कभी पूरा डेटा देते। हालांकि, रीडर इसको समझने लगा है और वह इस मिसइंफार्मेशन से आप या आपके संस्था पर यकीन करने की स्थितियों से बाहर निकल जाता है। कम से कम प्रिंट के दौर में यह स्थितियां नहीं थीं। तब कई लेवल पर चेक होकर अगले दिन अखबार में खबरें आती थी। लेकिन डिजिटल प्लेटफार्म ने हमारे फैक्ट्स से समझौता कराया है। हालांकि, फैक्टचेक भी हम अपनी सुविधानुसार ही करते हैं। जबकि होना यह चाहिए कि हम पब्लिश की कोई खबर करें जो पूरी तरह से जांची-परखी हो।

एक फैक्टचेकर के लिए सबसे असमंजस की स्थिति तब होती है जब उसे अपनी ही खबरों को बाद में फैक्टचेक करना पड़ता। हम विश्वास को स्थापित कर सकते हैं लेकिन इसके लिए डिजिटल प्लेटफार्म को सही सूचनाएं ही प्रसारित करने के लिए अपने स्रोतों की पड़ताल करनी होगी। थोड़ा ठहर कर तथ्यों की जानकारी हासिल करनी होगी। लेकिन हम विश्वास खोते जा रहे हैं क्योंकि समुदाय तेजी से व्हाट्सएप फॉरवर्ड पर निर्भर हो रहा है। और इससे फेक न्यूज फैल सकती है।