सार
रिजर्व बैंक ने अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान देश की जीडीपी बढ़त के अनुमान को 6.1 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर दिया है।आरबीआई ने नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। रिजर्व बैंक ने कहा कि आर्थिक गतिविधियां और कमजोर पड़ी हैं और उत्पादन की खाई नकारात्मक बनी हुई है।
नई दिल्ली. देश में जारी मंदी के बीच भारतीय रिजर्व बैंक ने भी अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान देश की जीडीपी बढ़त के अनुमान को 6.1 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर दिया है। इसके पहले रिजर्व बैंक ने अक्टूबर महीने में नीतिगत समीक्षा में यह अनुमान जाहिर किया था कि वित्त वर्ष 2019-20 में जीडीपी बढ़त 6.1 फीसदी हो सकती है।
6 साल के निचले स्तर पर पहुंची जीडीपी
इसके पहले कई रेटिंग एजेंसियों ने भारत के जीडीपी ग्रोथ अनुमान को घटा दिया था। अब रिजर्व बैंक ने कहा है कि जोखिम पर संतुलन बनने के बावजूद जीडीपी ग्रोथ अनुमान से कम रह सकती है। गौरतलब है कि इस वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 6 साल के निचले स्तर 4.5 फीसदी तक पहुंच गई थी। जिसके बाद रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समीक्षा की मंगलवार से बैठक चल रही थी। गुरुवार को बैठक खत्म होने के बाद आरबीआई ने नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। रिजर्व बैंक ने कहा कि आर्थिक गतिविधियां और कमजोर पड़ी हैं और उत्पादन की खाई नकारात्मक बनी हुई है। हालांकि केंद्र सरकार द्वारा किए गए कई पहल और रिजर्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीति में नरमी से निवेश गतिविधियों में कुछ सुधार जरूर हुआ है, लेकिन अभी इस पर नजर रखनी होगी।
ढाई फीसदी की हुई कटौती
भारतीय रिजर्व बैंक ने पिछले 10 महीने में जीडीपी ग्रोथ अनुमान में 2.4 फीसदी की कटौती की है। इस साल फरवरी में रिजर्व बैंक ने यह अनुमान लगाया था कि वित्त वर्ष 2019-20 में भारतीय अर्थव्यवस्था की ग्रोथ रेट 7.4 फीसदी की होगी। अप्रैल 2019 में रिजर्व बैंक ने इस अनुमान को घटाकर 7.2 फीसदी कर दिया। इसके बाद फिर जून की अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में रिजर्व बैंक ने कहा कि इस वित्त वर्ष में जीडीपी ग्रोथ 7 फीसदी रह सकती है। इसके बाद अगस्त 2019 में रिजर्व बैंक ने इस अनुमान को घटाकर 6.9 फीसदी और अक्टूबर में घटाकर 6.1 फीसदी कर दिया। अब इस अनुमान को घटाकर 5 फीसदी कर दिया गया है।
क्या है जीडीपी
किसी देश की सीमा में एक निर्धारित समय के भीतर तैयार सभी वस्तुओं और सेवाओं के कुल मौद्रिक या बाजार मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी कहते हैं। यह किसी देश के घरेलू उत्पादन का व्यापक मापन होता है और इससे किसी देश की अर्थव्यवस्था की सेहत पता चलती है। इसकी गणना आमतौर पर सालाना होती है, लेकिन भारत में इसे हर तीन महीने यानी तिमाही भी आंका जाता है। कुछ साल पहले इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग और कंप्यूटर जैसी अलग-अलग सेवाओं यानी सर्विस सेक्टर को भी जोड़ दिया गया।
जीडीपी की घटती दरें, चिंता का सबब
वित्त वर्ष 2018-19 में देश की सकल घरेलू उत्पाद ग्रोथ रेट 6.8 फीसदी थी। चालू वित्त वर्ष (2019-20) की दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ का आंकड़ा 4.5 फीसदी पहुंच गया है। यह करीब 6 साल में किसी एक तिमाही की सबसे बड़ी गिरावट है। सरकार साल 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर यानी करीब 350 लाख करोड़ रुपये इकोनॉमी के लक्ष्य पर जोर दे रही है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार को जीडीपी ग्रोथ की रफ्तार भी तेज करने के लिए काम करना होगा, लेकिन अभी अर्थव्यवस्था की जो रफ्तार है उसके हिसाब से यह दूर की कौड़ी लगती है, इसी वजह से जीडीपी को लेकर सवाल-जवाब तेज हो गए हैं।