सार
सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों को लागू करने और किसानों की शिकायतों को देखने के लिए 4 सदस्यों की एक समिति का गठन किया। समिति में भारतीय किसान यूनियन के प्रेसिडेंट भूपेंद्र सिंह मान, शेतकारी संगठन के अनिल घनवंत, कृषि वैज्ञानिक अशोक गुलाटी और अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के प्रमोद के जोशी होंगे। जानते हैं कि इन चार लोगों का बैकग्राउंड क्या है और कृषि कानूनों पर इनकी क्या सोच है?
नई दिल्ली. कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के प्रदर्शन के बीच सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने कृषि कानूनों को लागू करने और किसानों की शिकायतों को देखने के लिए 4 सदस्यों की एक समिति का गठन किया। समिति के सदस्यों में भारतीय किसान यूनियन के प्रेसिडेंट भूपेंद्र सिंह मान, शेतकारी संगठन के अनिल घनवंत, कृषि वैज्ञानिक अशोक गुलाटी और अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के प्रमोद के जोशी होंगे। आइए जानते हैं कि इन चार लोगों का बैकग्राउंड क्या है और कृषि कानूनों पर इनकी क्या सोच है?
भूपेंद्र सिंह मान
15 सितंबर 1939 को गुजरांवाला (अब पाकिस्तान में) में पैदा हुए सरदार भूपिंदर सिंह मान को किसानों के संघर्ष में योगदान के लिए भारत के माननीय राष्ट्रपति द्वारा 1990 में राज्यसभा में नामांकित किया गया था। उन्होंने 1990-1996 तक सेवा की। उनके पिता एस अनूप सिंह इलाके के एक प्रमुख जमींदार थे।
कृषि कानूनों पर राय- इनकी समिति ने 14 दिसंबर को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को एक पत्र लिख कृषि कानूनों का समर्थन किया था।
अशोक गुलाटी
प्रसिद्ध कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी 1999 से 2001 तक प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य थे। वे भारतीय कृषि अर्थशास्त्री और कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) के पूर्व अध्यक्ष हैं। सीएसीपी खाद्य आपूर्ति और मूल्य निर्धारण नीतियों पर भारत सरकार का सलाहकार निकाय हैं। गुलाटी ने कई खाद्यान्नों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वर्तमान में वे अंतराराष्ट्रीय आर्थिक संबंधों पर भारतीय अनुसंधान परिषद (ICRIER) में कृषि के लिए इन्फोसिस के अध्यक्ष हैं। वे नीति आयोग के तहत प्रधानमंत्री द्वारा निर्धारित कृषि कार्य पर टास्क फोर्स के सदस्य और कृषि बाजार सुधार पर विशेषज्ञ समूह (2015) के अध्यक्ष भी हैं।
कृषि कानूनों पर राय- अशोक गुलाटी ने टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि कृषि कानूनों से किसानों को फायदा होगा। लेकिन सरकार ये बात किसानों को समझा नहीं सकी।
प्रणब मुखर्जी 30 मार्च 2015 को नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में अशोक गुलाटी को पद्मश्री पुरस्कार प्रदान करते हुए।
डॉक्टर प्रमोद जोशी
डॉक्टर प्रमोद के जोशी दक्षिण एशिया अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के निदेशक हैं। इससे पहले उन्होंने राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रबंधन अकादमी हैदराबाद के निदेशक का पद संभाला था। उनके अनुसंधान के क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी नीति, बाजार और संस्थागत अर्थशास्त्र शामिल हैं। वे नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज और इंडियन सोसाइटी ऑफ एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स के फेलो हैं। डॉक्टर जोशी ने ढाका, बांग्लादेश में सार्क कृषि केंद्र के गवर्निंग बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया है।
कृषि कानूनों पर राय- हमें एमएसपी से परे नई मूल्य नीति पर विचार करने की आवश्यकता है। यह किसानों, उपभोक्ताओं और सरकार के लिए एक जीत होनी चाहिए। एमएसपी को घाटे की अवधि के दौरान लागू किया गया था। अब हम इसे पार कर चुके हैं।
डॉक्टर प्रमोद जोशी ने विश्व बैंक के कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अंतरराष्ट्रीय मूल्यांकन पर इंटर गवर्मेंट पैनल के सदस्य के रूप में भी काम किया है।
अनिल घनवंत
अनिल घनवंत शेतकारी संगठन के हैं। किसान संगठन शेतकारी संगठन की शुरुआत स्वर्गीय शरद जोशी ने की थी। अनिल घनवंत ने कहा था कि सरकार किसानों के साथ विचार-विमर्श के बाद कानूनों को लागू और उनमें संशोधन कर सकती है।
कृषि कानूनों पर राय- अनिल घनवंत ने कहा था कि कृषि कानूनों को वापस लेने की जरूरत नहीं है। यह किसानों के लिए कई मौके खोलेगा।
अनिल घनवंत ने कहा था, संगठन संसद में पारित तीनों कृषि कानूनों का स्वागत करता है। ये किसानों के लिए वित्तीय स्वतंत्रता की दिशा में पहला कदम है
समिति क्या और कैसे काम करेगी?
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि चार सदस्यीय समिति दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों के मुद्दों को सुलझाने के लिए बनाई गई है। इस कमेटी का काम होगा किसानों से बातचीत करना। कमेटी कोई फैसला या आदेश नहीं देगी। बस बातचीत के बाद सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट दे देगी। अभी तक यह साफ नहीं है कि कितने दिन में कमेटी को अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को देनी है। चीफ जस्टिस एसए बोबड़े ने कहा, हम अगले आदेश तक तीन कृषि कानूनों को रोक रहे हैं।
26 नवंबर से विरोध कर रहे किसान
पंजाब और हरियाणा के सैकड़ों आंदोलनकारी किसान 26 नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले हुए हैं। केंद्र और किसान यूनियनों के बीच आठ दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला।