सार
राहुल गांधी के इस्तीफे के 77 दिन बाद कांग्रेस की वर्किंग कमेटी की बैठक में शनिवार को सोनिया गांधी को पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष चुना गया। लंबी माथापच्ची और 12 घंटे चली बैठक के बाद भी पार्टी में अध्यक्ष पद का फैसला नहीं हो सका, इस वजह से एक बार फिर गांधी परिवार को पार्टी की कमान सौंपी गई।
नई दिल्ली. राहुल गांधी के इस्तीफे के 77 दिन बाद कांग्रेस की वर्किंग कमेटी की बैठक में शनिवार को सोनिया गांधी को पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष चुना गया। लंबी माथापच्ची और 12 घंटे चली बैठक के बाद भी पार्टी में अध्यक्ष पद का फैसला नहीं हो सका, इस वजह से एक बार फिर गांधी परिवार को पार्टी की कमान सौंपी गई। सोनिया गांधी 20 महीने बाद फिर से इस पद पर लौंटी हैं। हालांकि, सोनिया को अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे ये पांच बड़ी वजह हैं...
पहली- राहुल इस्तीफे पर अड़े, पार्टी उन्हें मनाने के पक्ष में थी
राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद 25 मई को इस्तीफे की पेशकश की थी। लेकिन कांग्रेस पार्टी इसके पक्ष में नहीं थी। पार्टी के नेताओं ने सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी को राहुल को मनाने के लिए कहा था। इतना ही नहीं पार्टी के कई वरिष्ठ नेता और कांग्रेस शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों ने राहुल को मनाने की कोशिश की लेकिन वे नहीं माने। उन्होंने 4 जुलाई को चार पेज का लेटर ट्वीट कर साफ कर दिया था कि उन्होंने हार की जिम्मेदारी स्वीकारते हुए इस्तीफा दिया है। उन्होंने लिखा था कि पार्टी के अन्य नेताओं की जवाबदेही भी तय होनी चाहिए।
दूसरी- गैर-गांधी सदस्य को अध्यक्ष बनाने के पक्ष में थे राहुल गांधी
राहुल के इस्तीफे पर अड़े रहने के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने प्रियंका गांधी को नया अध्यक्ष बनाने की पेशकश की। इस सुझाव को कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने समर्थन भी दिया, लेकिन राहुल गांधी इसके पक्ष में नहीं थे। वे पहले भी पार्टी की बैठकों में साफ कर चुके थे कि इस बार अध्यक्ष गैर-गांधी होना चाहिए।
तीसरी- किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पाई
राहुल के इस्तीफे की पेशकश के बाद पूर्व गृह मंत्री सुशील शिंदे, मल्लिकार्जुन खड़गे, सचिन पायलट जैसे नेताओं को पार्टी की कमान सौंपने की चर्चा चली। हाल ही में मुकुल वासनिक को भी अध्यक्ष बनाए जाने की भी बात हुई। लेकिन अब तक किसी नेता के नाम पर सहमति नहीं बनी।
चौथी- गांधी परिवार का ही हो अध्यक्ष
पार्टी के ज्यादातर नेता राहुल गांधी को दोबारा अध्यक्ष बनाने के पक्ष में थे। वरिष्ठ नेताओं का मानना था कि राहुल गांधी के अध्यक्ष रहते पार्टी अगले चुनावों में बेहतर कर सकती है। वरिष्ठ नेताओं का मानना था कि गांधी परिवार से बाहर के किसी सदस्य को अगर अध्यक्ष बनाया जाता है, तो पार्टी में फूट की स्थिति पैदा हो सकती है। ऐसे में पार्टी के लिए और मुश्किल हालात पैदा होंगे।
पांचवीं- पहले भी सोनिया ने मुश्किल वक्त में पार्टी को संकट से निकाला
सोनिया गांधी 1998 में पहली बार अध्यक्ष बनी थीं। उस वक्त अस्थिर सरकारों का दौर था और कांग्रेस अपने अस्तित्व को तलाश रही थी। वे पार्टा को खड़ा करने की कोशिश में जुट गईं। सोनिया के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने 6 साल बाद वापसी की। पार्टी के नेतृत्व में 2004 में यूपीए की सरकार बनी। हालांकि, भाजपा ने विदेशी होने के चलते सोनिया का विरोध किया। इसी वजह से उन्होंने प्रधानमंत्री ना बनने का फैसला किया। इसके बाद मनमोहन सिंह को संसदीय दल का नेता चुना गया। वे 2014 तक प्रधानमंत्री रहे। सोनिया गांधी ने 2017 में अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद राहुल गांधी को पार्टी की कमान दी गई थी।