सार
अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ 19 पुनर्विचार याचिकाएं लगाई गई थीं, जिसे सीजेआई की अध्यक्षता में बनी 5 जजों की बेंच ने खारिज कर दिया। करीब 50 मिनट तक बंद चैंबर में सुनवाई हुई, जिसके बाद कहा गया कि सभी याचिकाएं खारिज की जाती हैं।
नई दिल्ली. अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ 19 पुनर्विचार याचिकाएं लगाई गई थीं, जिसे सीजेआई की अध्यक्षता में बनी 5 जजों की बेंच ने खारिज कर दिया। करीब 50 मिनट तक बंद चैंबर में सुनवाई हुई, जिसके बाद कहा गया कि सभी याचिकाएं खारिज की जाती हैं।
5 वजहों से खारिज की गईं याचिकाएं
1- सीजेआई की अध्यक्षता में पांच सदस्यों की बेंच ने पुनर्विचार याचिका देखा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पुनर्विचार याचिका में कोई ऐसा नया सवाल नहीं मिला, जिसका जवाब 9 नवंबर के फैसले में नहीं दिया गया था। कोर्ट को कोई नई बात नहीं मिली।
2- कोर्ट ने माना कि 9 नवंबर को 1045 पन्नों के फैसले में जो बात लिखी गई थी, उससे अलग याचिका में कोई नई बात नहीं थी।
3- पक्षकारों की तरफ से दाखिल 10 याचिकाओं में मेरिट न होने की वजह से खारिज कर दी गईं।
4- नए लोगों या संगठनों की तरफ से दाखिल 9 याचिकाओं को स्वीकार ही नहीं किया है। कोर्ट ने तो उसे सुनने से ही मना कर दिया।
5- 5 जजों ने विचार के बाद यह पाया है कि याचिकाएं खुली अदालत में सुनवाई के लायक नहीं हैं।
अब क्या रास्ता बचता है?
सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने सभी 19 याचिकाएं खारिज कर दी हैं। ऐसे में मुस्लिम पक्षकारों के पास सिर्फ एक रास्ता बचता है वह है क्यूरेटिव पिटीशन। क्यूरेटिव पिटीशन तब दाखिल किया जाता है जब किसी मुजरिम की राष्ट्रपति के पास भेजी गई दया याचिका और सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी जाती है। क्यूरेटिव पिटीशन अंतिम मौका होता है जिसके जरिए फैसले को बदलने की गुहार लगाई जा सकती है। इसमें फैसला आने के बाद आगे के सभी रास्ते बंद हो जाते हैं।
40 लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में लगाई थी याचिका
40 बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से 9 नवंबर के अयोध्या फैसले पर दोबारा विचार की मांग की थी। याचिका में फैसले को एकतरफा बताया गया था। वकील प्रशांत भूषण के जरिए याचिका दायर करने वालों में इरफान हबीब, हर्ष मंदर, शबनम हाशमी, नंदिनी सुंदर, फराह नकवी, जयति घोष, जॉन दयाल थे।
हिंदू महासभा ने भी दायर की थी याचिका
अयोध्या पर हिंदू महासभा ने भी पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। याचिका में कहा गया कि हिंदू दावा मजबूत होने के चलते रामलला को जगह मिली। इसके बदले मुसलमानों को 5 एकड़ जमीन देने की जरूरत नहीं थी। इसे निरस्त करें।