सार

सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों द्वारा की जाने वाली मुफ्त घोषणाओं पर रोक लगाने संबंधी याचिका पर सुनवाई की। सीजेआई ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों के बेंच के पास भेज दिया है। इस मामले में अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी।
 

नई दिल्ली। चुनाव के समय राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त सामान और सेवाएं देने की घोषणाएं की जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे मुफ्त की रेवड़ियां बताते हुए देश की अर्थव्यवस्था के लिए घातक बताया है। शुक्रवार को मुफ्त घोषणाओं (freebies) पर रोक लगाने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना (NV Ramana) ने इस मामले को तीन जजों की बेंच को भेज दिया। 

सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच राजनीतिक दलों द्वारा किए की जाने वाली मुफ्त की घोषणाओं पर रोक लगाई जाए या कोई और उपाय अपनाया जाए, इसपर विचार करेगी। यह फैसला सीजेआई के नेतृत्व वाले बेंच ने किया। बेंच में जज सूर्यकांत और हिमा कोहली भी शामिल थे। बेंच ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि चुनावी लोकतंत्र में सच्ची शक्ति मतदाताओं के पास होती है। मतदाता पार्टियों और उम्मीदवारों द्वारा किए जा रहे वादों पर अपना फैसला लेते हैं। इस मामले में अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी। 

हर एंगल से कर रहे विचार
सीजेआई ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल, चुनाव आयोग और अन्य दलों ने कहा है कि करदाताओं से मिले पैसे का इस्तेमाल पार्टियां अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए कर रही हैं। मुफ्त की घोषणाओं से ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है जहां राज्य जरूरी सुविधा भी नहीं दे पाए। हम हर एंगल से स्थिति पर विचार कर रहे हैं। अंतिम फैसला मतदाताओं को करना है। 

यह फैसला सीजेआई एनवी रमना ने अपने कार्यकाल के अंतिम दिन सुनाया। उन्होंने कहा कि इस मामले में कई मुद्दों पर विचार किया जाना है। इससे पहले बुधवार को सीजेआई ने कहा था कि इस मुद्दे पर बहस होनी चाहिए। यह एक गंभीर मामला है। केंद्र सरकार को इस संबंध में विचार के लिए सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए।

यह भी पढ़ें- गुलाम नबी आजाद का कांग्रेस से इस्तीफा-पार्टी को 'सनकी' चला रहे, राहुल पर फोड़ा कांग्रेस की बर्बाद का ठीकरा

सर्वसम्मति से फैसला करें राजनीतिक दल
कोर्ट ने कहा था कि जब तक राजनीतिक दलों के बीच सर्वसम्मति से यह निर्णय नहीं हो जाता है कि मुफ्तखोरी अर्थव्यवस्था को नष्ट करने वाली है और इसे रोकना होगा तब तक कुछ नहीं हो सकता। मुफ्त की घोषणाओं पर कई राजनीतिक दलों ने तर्क दिया है कि ये मुफ्त नहीं हैं, बल्कि जनता के लिए कल्याणकारी उपाय हैं। इस पर CJI ने कहा था कि कोर्ट को इस बात पर विचार करना होगा कि मुफ्त उपहार को कैसे परिभाषित किया जाए और कल्याणकारी उपायों के बीच किस तरह अंतर किया जाए।

यह भी पढ़ें- महिलाओं के टैलेंट और हुनर को भरपूर मौका देने 'वर्क फ्रॉम होम' में बड़ा बदलाव संभव, PM मोदी ने दी हिंट

गौरतलब है कि दिल्ली भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर राजनीतिक दलों द्वारा चुनावों के दौरान मुफ्त उपहार देने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। उन्होंने अपनी याचिका में कोर्ट से गुहार लगाई है कि वह चुनाव आयोग को ऐसी पार्टियों के चुनाव चिन्हों जब्त करने और उनका पंजीकरण रद्द करने का आदेश दें।