लॉर्ड माउंटबेटन: भारत के आखिरी वायसराय की रहस्यमय हत्या आज भी पहेली
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कौन थे लार्ड माउंटबेटन?
लार्ड लुईस माउंटबेटन, आजाद भारत के पहले गवर्नर जनरल थे। भारत के आखिरी वायसराय माउंटबेटन की देखरेख में ही भारत आजाद हुआ और भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ था। दरअसल, माउंटबेटन, ब्रिटिश रॉयल फैमिली से थे। वह क्वीन विक्टोरिया के परपोते थे और ब्रिटेन की महारानी क्वीन एलिजाबेथ II के चचेरे भाई थे।
पहले विश्वयुद्ध के दौरान पिता ने परिवार का नाम बदला
दरअसल, लार्ड लुईस माउंटबेटन के पिता ने फर्स्ट वर्ल्ड वार के दौरान अपने परिवार की टाइटल यानी नाम बैटनबर्ग से बदलकर माउंटबेटन कर दिया था। इसलिए लार्ड लुईस बैटनबर्ग का भी नाम लार्ड लुईस माउंटबेटन हो गया था। माउंटबेटन की फर्स्ट वर्ल्ड वार और सेकेंड वर्ल्ड वार के दौरान अहम भूमिका थी। 1945 में जापान को सरेंडर करने के लिए माउंटबेटन ने भी पहल की थी।
आजाद भारत का पहला गवर्नर जनरल
कूटनीतिक मोर्च पर सफल रहे लार्ड माउंटबेटन को ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने 1947 में भारत का वायसराय बनाकर भेजा। यह वह दौर था जब अंग्रेज भारत छोड़कर जाने लगे थे। ऐसे में उनको माउंटबेटन जैसा ही व्यक्ति चाहिए था। आखिरी वायसराय के रूप में भारत में पहुंचे माउंटबेटन ने भारत की अंतरिम सरकार को सत्ता हस्तांतरण और इसके बंटवारे का खाका तैयार किया। माउंटबेटन की देखरेख में ही भारत का बंटवारा-भारत व पाकिस्तान के रूप में हुआ था। आजादी के बाद माउंटबेटन को आजाद भारत का पहला गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया। जून 1948 तक वह भारत के गवर्नर जनरल रहे। इसके बाद सी.राजगोपालाचारी देश के गवर्नर जनरल बने। 1953 में लार्ड माउंटबेटन ब्रिटिश नौसेना में वापस चले गए। 1916 में माउंटबेटन ने ब्रिटेन की रॉयल नेवी से करियर शुरू था और 1965 में रिटायर हो गए।
माउंटबेटन की हत्या
27 अगस्त 1979 का दिन इतिहास में एक काले दिन के रूप में दर्ज हुआ था। यह वह दिन था जब ब्रिटिश शाही परिवार के सदस्य और देश के आखिरी वायसराय लॉर्ड लुईस माउंटबेटन की हत्या कर दी गई। माउंटबेटन जिस 'शैडो वी' जहाज पर सवार थे, उस नाव को ही बम से उड़ा दिया गया। 'माउंटबेटनः देयर लाइव्स एंड लव्स' के लेखक एंड्र्यू लोनी ने बीबीसी को बताया था कि पचास पाउंड जेलिग्नाइट फट गया था। इससे लकड़ी, मेटल, कुशन, लाइफजैकेट, जूते और सबकुछ हवा में उड़ गया था। चंद सेकंड में ही वहां सन्नाटा छा गया। वो मनहूस सुबह 1979 में 27 अगस्त को सोमवार का दिन था। माउंटबेटन अपने जिस शैडो जहाज में सवार थे, उसमें उनके साथ उनकी बेटी पैट्रिशिया, उनके पति लॉर्ड जॉन ब्रेबॉर्न, उनके 14 साल के जुड़वा बेटे- टिमोथी और निकोलस और लॉर्ड ब्रेबॉर्न की मां डोरेन ब्रेबॉर्न भी थीं। उस जहाज पर काम करने वाला 15 साल का पॉल मैक्सवेल भी था। माउंटबेटन, निकोलस और मैक्सवेल की तुरंत मौत हो गई। अगले दिन डोरेन ब्रेबॉर्न की भी मौत हो गई। अन्य लोग बच गए थे।
कौन था इस हत्याकांड के पीछे?
लार्ड लुईस माउंटबेटन की हत्या के पीछे आयरिश रिपब्लिकन आर्मी (IRA) का हाथ बताया गया। आयरिश आर्मी उस समय ब्रिटिश सेना को उत्तरी आयरलैंड से खदेड़ने के लिए संघर्षरत थी। आयरिश सेना को इसलिए इस हत्या का जिम्मेदार बताया गया क्योंकि 1978 में उन पर स्नाइपर्स से हमला हुआ था लेकिन वह बाल-बाल बच गए। हालांकि, हमला के बाद भी उनकी सुरक्षा नहीं बढ़ाई गई। सबसे अहम यह कि हत्या के कुछ दिन पहले ही उनकी सुरक्षा हटा दी गई थी।
क्या सीआईए और ब्रिटिश इंटेलीजेंस की भूमिका?
माउंटबेटन की हत्या पर से पर्दा कई दशक बाद भी नहीं उठ सका है। उनकी हत्या के बाद कई सवालों के जवाब आज भी नहीं मिल सके। जैसे हमला होने के बाद ब्रिटिश रॉयल फैमिली के मेंबर की सुरक्षा नहीं बढ़ाई गई। उनकी सुरक्षा क्यों हटा दी गई थी। इस हत्याकांड में ब्रिटिश इंटेलीजेंस और अमेरिकी खुफिया सर्विसेस सीआईए की भूमिका का संदेह हुआ था लेकिन किसी भी आरोप या रहस्य का राजफाश नहीं हो सका। दरअसल, मार्च 1979 में आयरिश नेशनल लिब्रेशन आर्मी ने उत्तरी आयरलैंड के शैडो सेक्रेटरी ऐरी नीव की हत्या कर दी थी। तब भी चेतावनी दी थी कि शाही परिवार के किसी सदस्य की हत्या की साजिश रची जा रही है। इसके बाद माउंटबेटन को उस साल उत्तरी आयरलैंड न जाने की सलाह दी गई थी, जिसे उन्होंने नजरअंदाज कर दिया था। माउंटबेटन के जहाज 'शैडो वी' की अक्सर सुरक्षा जांच की जाती थी और निगरानी रखी जाती थी। हालांकि, उनकी मौत से कुछ दिन पहले ही सुरक्षा हटा ली गई थी। बीबीसी हिस्ट्री पर छपे एक लेख के मुताबिक, पैट्रिक हॉलैंड नाम के आयरिश कैदी ने दावा किया था कि उसे जेल में मैकमोहन नाम के कैदी ने बताया था कि माउंटबेटन की हत्या ब्रिटिश इंटेलिजेंस ने करवाई थी। हॉलैंड माउंटबेटन हत्याकांड पर एक किताब लिखने की तैयारी कर रहा था लेकिन एक दिन वो मृत पाया गया। ऐसा भी माना जाता है कि माउंटबेटन की हत्या के पीछे अमेरिकी एजेंसी सीआईए का हाथ था।
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