सार

 टीएमसी नेता और सांसद दिनेश त्रिवेदी ने शुक्रवार को राज्यसभा से सांसद पद से इस्तीफा दे दिया है। बताया जा रहा है कि दिनेश बहुत पहले से ही टीएमसी के चक्रव्यूह से निकलना चाहते थे लेकिन ऑप्शन ना होने की वजह से वो साइलेंट थे। कयास लगाया जा रहा है वे भाजपा में शामिल हो सकते हैं। हम आपको 5 वो बड़ी वजह बता रहे हैं, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस्तीफे का पन्ना आज भले टेबल पर रखा गया हो लेकिन इसको लिखने की शुरुआत 6-7 साल पहले से ही शुरू हो गया था। 

नई दिल्ली. टीएमसी नेता और सांसद दिनेश त्रिवेदी ने शुक्रवार को राज्यसभा से सांसद पद से इस्तीफा दे दिया है। बताया जा रहा है कि दिनेश बहुत पहले से ही टीएमसी के चक्रव्यूह से निकलना चाहते थे लेकिन ऑप्शन ना होने की वजह से वो साइलेंट थे। कयास लगाया जा रहा है वे भाजपा में शामिल हो सकते हैं। हम आपको 5 वो बड़ी वजह बता रहे हैं, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस्तीफे का पन्ना आज भले टेबल पर रखा गया हो लेकिन इसको लिखने की शुरुआत 6-7 साल पहले से ही शुरू हो गया था। 

पहली वजहः बात 2011 की है। यूपीए कार्यकाल में दिनेश त्रिवेदी को रेल मंत्री बनाया गया था। ममता दीदी ने ही इनका नाम रिकमेंड किया था, लेकिन त्रिवेदी की ट्रेन ज्यादा दिन तक ट्रैक पर ना चल सकी। हुआ कुछ यूं कि तत्कालीन रेल मंत्री ने रेल किराया बढ़ाने का प्रपोजल दिया था, जिसको सुनकर ममता नाराज हो गईं थी। किराये को लेकर दोनों में बहुत ज्यादा अनबन बढ़ गई। विरोध का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि रातोंरात इनको इस्तीफा देना पड़ा और ममता ने मुकुल रॉय को नया रेल मंत्री बनाया। कहा जाता है कि दिनेश और ममता में बहुत दिनों तक बातचीत बंद थी। टीएमसी का जो भी कार्यक्रम होता था, उससे दिनेश दूरी बनाकर रखते थे। यह सिलसिला सालों तक चला। बाद में ममता ने ही उनको अप्रोच किया था।

दूसरी बड़ी वजह : अंदर खाने में पार्टी कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी है। 2016 के बाद दिनेश त्रिवेदी ने ममता के सामने एक प्रपोजल रखा। उन्होंने कहा- हमें चुनाव में एक अच्छा मेंडेट मिला है। जनता ने पूरा भरोसा हमपर दिखाया है लेकिन पार्टी में कुछ ऐसे लोग हैं, जिसकी वजह से इमेज खराब हो रही है। हमें एक ऐसा कंट्रोलिंग सिस्टम बनाना चाहिए, जिससे पार्टी के लोकल कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी पर लगाम लगाया जा सके। कई बार इस संबंध में बातचीत हुई। टॉप लीडर के सामने भी उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी पर नजर रखने की बात उठाई लेकिन उनको हर बार नजरअंदाज कर दिया गया।  

तीसरी वजह:  2012 में शारदा चिटफंड का मुद्दा जोरशोर से उठा। इसमें TMC के कई बड़े नेताओं का नाम आने लगा। चिटफंड के मालिक की एक लाल डायरी उस समय सुर्खियों में थी। कहा जा रहा है कि इस डायरी में बहुत सारे वीवीआईपीज का नाम था। कई बड़े और नामी चेहरों का नाम बार-बार इस घोटाले में आ रहा था। चर्चा यह भी उठा कि 2011 में हुए पं. बंगाल चुनाव में चिटफंड का बहुत सारा पैसा लगा था। दिनेश त्रिवेदी इन सब घटनाक्रम से चिंतित थे। वो नहीं चाहते थे कि ऐसे घोटालों में पार्टी का नाम बीच में आए। उन्होंने ममता बनर्जी से इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की। इसके बाद पूरी पार्टी एक तरफ और दिनेश एक तरफ हो गए थे। ममता का कहना था कि ऐसे समय में आपको पार्टी का साथ देना चाहिए, अलग से मुद्दे या इश्यू नहीं उठाना चाहिए। दूरियों की एक बड़ी वजह इसे भी माना जाता है। कहा जाता है कि उस समय कांग्रेस ने इनको अप्रोच किया था, लेकिन ये नहीं गए।

 चौथी बड़ी वजहः दिनेश त्रिवेदी ने 2019 दरखपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। उनके अगेस्ट में बीजेपी उम्मीदवार अर्जुन सिंह को जीत मिली। इस हार के बाद दिनेश पूरी तरह से टूट चुके थे। कहा जाता है कि टीएमसी की ग्रुप पॉलिटिक्स की वजह से इनको इतनी बड़ी हार मिली। दिनेश का मानना था दरखपुर में टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी की यंग लॉबी और टीएमसी की ओल्ड लॉबी में विवाद चल रहा था, जिसकी वजह से ठीक तरह से कैंपेन नहीं हुआ। इतना ही नहीं, कई बार कहने के बावजूद ममता बनर्जी भी इनके क्षेत्र में कैंपेन करने नहीं आईं। वहीं दूसरी तरफ अर्जुन सिंह टीएमसी के कार्यकर्ता थे, जिन्होंने बीजेपी ज्वाइन कर लिया था। अर्जुन सिंह लोकल बाहुबली थे और 2019 से पहले दिनेश के लिए यही चुनाव मैनेज करते थे। लेकिन लॉबी विवाद ने इनको चुनाव हरवा दिया। 

पांचवी बड़ी वजहः दिनेश त्रिवेदी टीएमसी के कद्दावर नेता माने जाते थे। कहा जाता है कि ममता बनर्जी कोई भी बड़ा काम, कोई भी बड़ा फैसला बिना इनकी सलाह के नहीं करती थीं। ममता के बाद पार्टी में इनकी गिनती होती थी। लेकिन जब से ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी पार्टी में एक्टिव हुए, तब से दिनेश त्रिवेदी को साइड कर दिया गया। अभिषेक ऊपर बैठकर छड़ी चलाने लगे। पार्टी में घुटन बढ़ने की एक सबसे बड़ी वजह इसको भी माना जाता है।