सार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को उत्कल केशरी कहे जाने वाले डॉ. हरेकृष्ण महताब लिखित पुस्तक 'ओडिशा इतिहास' के हिंदी संस्करण का लोकार्पण किया। बता दें कि डॉ. महताब 1946 से 1950 तक और 1956 से 1961 तक ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने यह पुस्तक स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जेल में रहते हुए लिखी थी।

नई दिल्ली. ओडिशा की महत्वपूर्ण शख्सियत 'उत्कल केशरी' कहे जाने वाले डॉ. हरेकृष्ण महताब लिखित पुस्तक 'ओडिशा इतिहास' का हिंदी संस्करण शुक्रवार को सामने आ गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक कार्यक्रम में इसका लोकार्पण किया। बता दें कि डॉ. महताब 1946 से 1950 तक और 1956 से 1961 तक ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने यह पुस्तक स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जेल में रहते हुए लिखी थी। इस पुस्तक का उड़िया से हिंदी में अनुवाद शंकरलाल पुरोहित ने किया है। विमोचन कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और कटक के सांसद भर्तृहरि महताब भी मौजूद रहे। कार्यक्रम का आयोजन हरेकृष्ण महताब फाउंडेशन ने किया।  डॉ. हरेकृष्ण ने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। उन्होंने अहमद नगर किला जेल में बंद रहने के दौरान यह पुस्तक लिखी थी। उन्हें 1942 से 1945 के दौरान दो साल से अधिक समय तक जेल में रखा गया।

मोदी ने कहा

  • करीब डेढ़ वर्ष पहले हम सब ने ‘उत्कल केसरी’ हरेकृष्ण महताब जी की एक सौ बीसवीं जन्मजयंती मनाई थी। आज हम उनकी प्रसिद्ध किताब ‘ओडीशा इतिहास’ के हिन्दी संस्करण का लोकार्पण कर रहे हैं। ओडिशा का व्यापक और विविधताओं से भरा इतिहास देश के लोगों तक पहुंचे, ये बहुत आवश्यक है। 
  • इतिहास केवल अतीत का अध्याय ही नहीं होता, बल्कि भविष्य का आईना भी होता है। इसी विचार को सामने रखकर आज देश अमृत महोत्सव में आज़ादी के इतिहास को फिर से जीवंत कर रहा है।
  • इस किताब की भूमिका में लिखा हुआ है कि डॉ. हरेकृष्ण महताब जी वो व्यक्ति थे जिन्होंने इतिहास बनाया, इतिहास बनते हुए देखा और इतिहास लिखा भी। ऐसे महापुरुष खुद भी इतिहास के महत्वपूर्ण अध्याय होते हैं। महताब जी ने आज़ादी की लड़ाई में अपना जीवन समर्पित किया और जेल की सजा काटी थी।
  • व्यापार और उद्योगों के लिए सबसे पहली जरूरत इनफ्रास्ट्रक्चर है। आज ओडिशा में हजारों किमी के नेशनल हाइवेज़ बन रहे हैं, कोस्टल हाइवेज़ बन रहे हैं जो कि पॉर्ट्स को कनेक्ट करेंगे। सैकड़ों किमी नई रेल लाइंस पिछले 6-7 सालों में बिछाई गई हैं।
    ओडिशा के अतीत को आप खंगालें, आप देखेंगे कि उसमें हमें ओडिशा के साथ साथ पूरे भारत की ऐतिहासिक सामर्थ्य के भी दर्शन होते हैं। इतिहास में लिखित ये सामर्थ्य वर्तमान और भविष्य की संभावनाओं से जुड़ा हुआ है, भविष्य के लिए हमारा पथप्रदर्शन करता है।
    पाइक संग्राम, गंजाम आंदोलन और लारजा कोल्ह आंदोलन से लेकर सम्बलपुर संग्राम तक ओडिशा की धरती ने विदेशी हुकूमत के खिलाफ क्रांति की ज्वाला को हमेशा नई ऊर्जा दी। कितने ही सेनानियों को अंग्रेजों ने जेलों में डाला, यातानाएं दी। लेकिन आजादी का जूनून कम नहीं हुआ।