सार

पैंगोंग त्सो पर शिवाजी महाराज की प्रतिमा स्थापित होने के बाद विवाद छिड़ा है। पूर्व सैन्य अधिकारियों और नेटिज़न्स ने सवाल उठाए हैं कि क्या डोगरा जनरल जोरावर सिंह, जिन्होंने लद्दाख पर विजय प्राप्त की, को नज़रअंदाज़ किया गया?

Shivaji Statue at Pangong Tso controversy: पूर्वी लद्दाख क्षेत्र का पैंगोंग त्सो एक बार फिर सुर्खियों में है। भारतीय सेना ने पूर्वी लद्दाख में 14,300 फीट की ऊंचाई पर पैंगोंग त्सो के तट पर छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा स्थापित की है। मराठा योद्धा छत्रपति शिवाजी की 30 फीट ऊंची प्रतिमा की स्थापना के बाद विवाद शुरू हो गया है। इस मुद्दे को लेकर कई पूर्व सैन्य जनरलों ने भी आपत्ति जतायी है। पूर्व सैन्य अधिकारियों का तर्क है कि डोगरा जनरल जोरावर सिंह को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए था जिन्होंने लद्दाख पर विजय प्राप्त किया था।

प्रतिमा अनावरण के बाद छिड़ी बहस

दरअसल, पूर्वी लद्दाख का क्षेत्र जहां छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा स्थापित की गई है, वह चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के करीब है। XIV कोर के फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हितेश भल्ला ने प्रतिमा का अनावरण किया। ले.जन. भल्ला, मराठा लाइट इन्फैंट्री के कर्नल भी हैं। उद्घाटन का वीडियो भी पोस्ट किया गया है। उद्घाटन समारोह में लेफ्टिनेंट जनरल भल्ला ने आधुनिक समय के सैन्य अभियानों में शिवाजी महाराज के वीरता, रणनीति और न्याय के आदर्शों की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला।

जानिए कौन हैं जनरल जोरावर सिंह डोगरा?

हालांकि, उद्घाटन के बाद डोगरा जनरल जोरावर सिंह को नजरअंदाज करने को लेकर बहस छिड़ गई है। नेटिज़न्स ने पैंगोंग झील में मराठा योद्धा की मूर्ति की स्थापना के बारे में सवाल उठाए। अधिकतर पोस्ट में यह मांग की गई है कि डोगरा जनरल जोरावर सिंह की मूर्ति स्थापित किया जाना चाहिए था क्योंकि उन्होंने ही लद्दाख पर विजय प्राप्त की थी और 1800 के दशक में तिब्बत में लड़ाई लड़ी थी।

कर्नल (रिटायर्ड) राजेंद्र भादुड़ी ने लिखा: पैंगोंग त्सो में शिवाजी के खिलाफ कुछ नहीं, बस इतना है कि वह अपनी कर्मभूमि से बहुत दूर हैं। जनरल जोरावर सिंह कलुरिया की एक प्रतिमा उचित होती जिन्होंने पश्चिमी तिब्बत के 500 मील से अधिक क्षेत्र पर विजय प्राप्त की थी।

स्थानीय इतिहास और नायकों को कमतर आंकने का आरोप

X यूजर मनु खजुरिया ने कहा: शिवाजी महाराज के प्रति अत्यधिक सम्मान है लेकिन यह रायगढ़ किले में डोगरा जनरल जोरावर सिंह कलुरिया की मूर्ति लगाने जैसा है। जनरल जोरावर सिंह, कर्नल मेहता बस्ती राम ने महाराजा गुलाब सिंह के कुशल नेतृत्व में लद्दाख पर विजय प्राप्त की और पश्चिमी तिब्बत में चीन-तिब्बती सेनाओं के साथ युद्ध किया। पर्वतीय युद्ध के उस्ताद, यहीं पर डोगरा सेना ने अपना खून बहाया। मुझे नहीं पता कि स्थानीय इतिहास और नायकों को इस तरह से कमतर क्यों आंका जाता है।

हिस्ट्री ऑफ राजपूताना ने एक्स पर लिखा: पैंगोंग एक रणनीतिक स्थान है, इसे उस स्थान पर ऐतिहासिक महत्व रखने वाले व्यक्ति द्वारा सुशोभित किया जाना चाहिए था। जनरल जोरावर सिंह तिब्बत में गए और सैकड़ों वर्षों के बाद मानसरोवर को आजाद कराया, लद्दाख उन्हीं की वजह से भारत का हिस्सा है। हम किसे बेवकूफ बना रहे हैं?

एक अन्य ने लिखा: पैंगोंग त्सो वह जगह है, जिसके पास 1962 के हीरो मेजर शैतान सिंह ने चीनियों से लड़ते हुए अपनी जान दे दी थी। यह वही जगह है, जहाँ से ज़ोरावर सिंह ने चीनी तिब्बत पर आक्रमण करने के लिए मार्च किया था।

शिवाजी के समर्थक एक यूजर रोहित वत्स ने भी एक्स पर पोस्ट किया:चूँकि मैं छत्रपति शिवाजी महाराज का सम्मान करता हूं और उनका जश्न मनाता हूं इसलिए मुझे यकीन नहीं है कि यह उनकी प्रतिमा लगाने के लिए सही जगह है। इस जगह के इतिहास को देखते हुए, जनरल जोरावर सिंह की प्रतिमा यहां लगाना सबसे उपयुक्त है। यह उनकी निर्भीकता, सामरिक और रणनीतिक कौशल की वजह से है कि लद्दाख आज भारत का हिस्सा है।

सरकार का क्या है बयान?

भारत-चीन के बीच 2020 में सैन्य स्टैंडऑफ के दौरान भी पैंगोंग त्सो क्षेत्र टकराव की मुख्य बिंदुओं में एक था। सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि पैंगोंग त्सो में छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा स्थापना सैनिकों के मनोबल को बढ़ाने वाली और भारत की ऐतिहासिक और समकालीन सैन्य ताकत का प्रमाण है। कुछ समय पहले भी एक विवाद उठा था जिसमें पैंगोंग त्सो की एक तस्वीर भारतीय सेना प्रमुख के लाउंज में रखी गई थी। वहां से भी 1971 में पाकिस्तान के आत्मसमर्पण की प्रतिष्ठित फोटो को बदल दिया था।

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