सार
यह हैं गुजरात के पूर्व विधायक रत्ना बापा ठुंमरे। बेशक ये 100 साल के होने जा रहे हैं, लेकिन इनका जोश और जज्जा आज भी कम नहीं हुआ। ये 17 अप्रैल को कलेक्टर कार्यालय पहुंचे थे। इन्होंने अपनी पेंशन के 51 हजार रुपए कोरोना से लड़ाई के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा कराए हैं। इसकी खबर जब मोदी को लगी, तो उन्होंने खुद कॉल करके बापा ठुंमरे का हालचाल जाना।
राजकोट, गुजरात. कोरोना के खिलाफ जारी लड़ाई में हर कोई अपने-अपने स्तर से सहयोग कर रहा है। यही वजह है देश इस लड़ाई में कोरोना पर भारी पड़ रहा है। मिलिए..ऐसे ही एक कोरोना वॉरियर से। यह हैं गुजरात के पूर्व विधायक रत्ना बापा ठुंमरे। बेशक ये 100 साल के होने जा रहे हैं, लेकिन इनका जोश और जज्जा आज भी कम नहीं हुआ। ये 17 अप्रैल को कलेक्टर कार्यालय पहुंचे थे। इन्होंने अपनी पेंशन के 51 हजार रुपए कोरोना से लड़ाई के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा कराए हैं। उन्होंने अपना चेक जूनागढ़ के एडिशनल कलेक्टर को सौंपा। इस मौके पर उन्होंने कहा कि वे बूढ़े होने से कोरोना के खिलाफ लड़ाई में काम तो नहीं आ सकते, बस यही रकम दे सकते हैं। ठुंमरे कलेक्टर आफिस बिना किसी की मदद के खुद सीढ़ियां चढ़कर पहुंचे। दरअसल, उस वक्त लिफ्ट बंद थी। ठुंमरे का जोश देखकर अफसर भी दंग रह गए।
मोदी ने पूछ हाल-चाल..
मोदी ने खुद कॉल करके बापा ठुंमरे का हालचाल जाना। पीएम ने बापा को फोन लगाकर उनसे पूछा कि क्या वो उन्हें याद करते हैं? इस पर बापा ने अच्छा जवाब दिया। कहा-आपको याद करते हैं। इस समय आप महामारी के खिलाफ लड़ रहे हैं। देश की सेवा कर रहे हैं। मोदी ने सबसे पहले बापा की तबीयत पूछी। इस पर बापा ने कहा कि उनकी तबीयत तो ठीक है, लेकिन सुनाई कम पड़ने लगा है। बापा से बात करके मोदी भावुक नजर आए। बापा ने मोदी से कहा कि वे देश का भला करें। बापा ने मुस्कराते हुए कहा कि वे तो कुछ नहीं कर पाए।
बापा को मोदी की मुलाकात अच्छे से याद थी। जब एक बार मोदीजी बापा के घर गए थे। हालांकि बापा को मोदी की आवाज साफ नहीं सुनाई पड़ रही थी, इसलिए उन्होंने अपना फोन बेटे धनजी को दे दिया। धनजी ने बताया कि बापा उन्हें याद करते हैं। एक बार मोदी बापा के घर गए थे। तब दोनों के बीच करीब 3 घंटे बातचीत हुई थी। धनजी ने मोदी को बताया कि उनके बच्चे अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। एक बेटा जर्मनी में है।
कभी वेतन और पेंशन नहीं ली
बापा मेंदरडा-माड़ियाहाटी से 1975 से 80 तक विधायक रहे हैं। उन्होंने कभी अपना वेतन और पेंशन नहीं ली। सारा पैसा दान करते रहे। वे आज भी सरकार बस में यात्रा करते हैं। जब भारत में अनाज का संकट पैदा हुआ था, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने लोगों से हफ्ते में एक दिन एक समय का भोजन छोड़ने का आह्वान किया था। तब से बापा हर सोमवार एक समय भोजन करते हैं।