सार
तीन कृषि कानूनों पर अनिल जोशी ने पार्टी का विरोध किया। पार्टी लाइन से अलग चले गए। बाद में उन्होंने अकाली दल जॉइन कर लिया। शिरोमणि अकाली दल ने उन्हें यहां से अपना उम्मीदवार बनाया है। जोशी इस सीट से 2007 से 2017 तक विधायक रहे हैं।
मनोज ठाकुर, अमृतसर। पंजाब में धार्मिक शहर अमृतसर में अभी विधानसभा चुनाव की चहल-पहल नजर नहीं आ रही है। शहर शांत है। बरसात की वजह से ठंड की चुभन कुछ बढ़-सी गई है। बरसात के बाद जब धुंध छंटने पर आसमान साफ होता है तो यहां से पाकिस्तान का बॉर्डर भी साफ नजर आता है। लेकिन तीन कृषि कानूनों के कुहासे में भाजपा के पूर्व सीनियर नेता अनिल जोशी इस कदर फंसे कि सियासत के उस पार नहीं देख पाए। हालात ये हैं कि अब अपने ही जाल में फंसते नजर आ रहे हैं। भाजपा ने अपने बागी को सबक सिखाने के लिए ऐसा दांव खेला कि अनिल जोशी चाह कर भी इसकी काट नहीं खोज पा रहे हैं।
हालांकि, अमृतसर नॉर्थ सीट पर 52 प्रतिशत हिंदू वोटर्स हैं, लेकिन भाजपा ने इस बार अलग और अनूठा दांव चला है। यहां सिख चेहरे को उम्मीदवार बनाकर चौंका दिया है। भाजपा ने सुखविंदर सिंह पिंटू को चुनाव मैदान में उतारा है। सुखविंदर के बारे में कहा जाता है कि वे अनिल जोशी के बेहद खास और नजदीकी थे। वह वार्ड नंबर 13 से कांउसलर होने के साथ भाजपा जिला जनरल सचिव भी हैं। सुखविंदर पिंटू हलका नॉर्थ से लगातार तीन बार जीत दर्ज कर चुके हैं।
यूं फंसे अनिल जोशी
तीन कृषि कानूनों पर अनिल जोशी ने पार्टी का विरोध किया। पार्टी लाइन से अलग चले गए। बाद में उन्होंने अकाली दल जॉइन कर लिया। शिरोमणि अकाली दल ने उन्हें यहां से अपना उम्मीदवार बनाया है। जोशी इस सीट से 2007 से 2017 तक विधायक रहे हैं। जोशी की सोच है कि उनके समर्थक तो साथ रहेंगे ही, अकाली दल का भी साथ मिल जाएगा। इस तरह से वह सीट से आसान जीत मान कर चले रहे थे। लेकिन वह तब फंसते नजर आए, जब भाजपा ने पिंटू को यहां से अपना उम्मीदवार बना दिया। पिंटू को भाजपा के समर्थकों के साथ सिख समुदाय का भी खासा समर्थन है। इधर, आम आदमी पार्टी ने यहां से पूर्व आईजी कुंवर विजय प्रताप सिंह तो कांग्रेस ने विधायक सुनील दत्ती को टिकट दिया है। अब तीन हिंदू उम्मीदवार होने से इस समुदाय के वोटर्स भी बंट सकते हैं। जो अनिल जोशी के लिए फिलहाल परेशानी की वजह बन सकते हैं।
कड़ा मुकाबला होगा... लगाए जा रहे कयास
अमृतसर के स्थानीय पत्रकार सुखदेव सिंह ने बताया कि इस सीट पर अब अकाली दल, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर होनी तय है। भाजपा ने यहां से सिक्ख चेहरा लाकर हिंदू और सिख वोटर्स में सेंध लगाने की कोशिश की है। मौजूदा कांग्रेसी विधायक सुनील दत्ती भी यहां कद्दावर नेता हैं। अकाली दल से अनिल जोशी का भी हलके में विकास कार्य करवाने और लोगों के बीच रहने की वजह से काफी रुतबा है। आम आदमी पार्टी के पूर्व आईजी कुंवर विजय प्रताप सिंह भी यहां जाना-पहचाना चेहरा हैं। अमृतसर में बतौर पुलिस अफसर रहकर उन्होंने लोगों की मुश्किलें हल की और अपराध में भी काफी हद तक रोक लगाई थी, जिस कारण अमृतसर शहर के लोगों का उनके प्रति काफी लगाव है। इसलिए मतदाताओं में नाम और पकड़ के लिहाज से कोई भी उम्मीदवार कम नहीं है।
सियासी समीकरण में यूं मात खा गए जोशी
तीन कृषि कानूनों का विरोध जब अपने चरम पर था तो जोशी को लगा कि इससे उनकी राजनीति प्रभावी हो सकती है। वह जल्दबाजी में थे। यूं भी इस सीट पर ग्रामीण मतदाताओं की संख्या भी काफी असरदार है। जोशी का किसान विरोध कर रहे थे। इस इस विरोध को बर्दाश्त नहीं कर पाए। लेकिन यहां वह एक चूक कर गए, वह यह थी कि भांप नहीं पाए कि भाजपा कृषि कानूनों पर इस तरह से वापसी भी कर सकती है। पंजाब विधानसभा चुनाव में जिस तरह से भाजपा ने पकड़ बनाई, इसका आकलन करने में जोशी चूक गए। परिणाम, अब उनके सामने हैं। जिस तरह से भाजपा ने उनकी घेराबंदी की है, इससे ना सिर्फ इस सीट पर मुकाबला रोचक हो गया, बल्कि हर किसी की नजर इस बात पर टिकी है अनिल जोशी का प्रदर्शन अकाली दल में आने के बाद कैसा रहता है?
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