सार
महामारी के दौरान 6 महीने से 23 महीने के आयु वर्ग के लगभग 58 मिलियन बच्चे खाने-पीने की बेहतर आदतों को विकसित नहीं कर पाए हैं।
जयपुर. महामारी ने पूरे ईको सिस्टम और उसके कार्यों को बुरी तरह हिलाकर रख दिया है। इस दौरान लोगों को सभी मोर्चों पर पोषण संकट का सामना करना पड़ा। इसी संकट पर विचार-विमर्श के लिए सक्षम संचार ने एक वेबिनार का आयोजन किया, जिसका थीम रखा गया- ‘फाइटिंग न्यूट्रिशन क्राइसिस इन इंडिया ड्यूरिंग पेंडेमिक स्पेशली फॉर वीमैन एंड चिल्ड्रन’।
डॉ. डी के मंगल, सलाहकार, एसडी गुप्ता स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ, आईआईएचएमआर विश्वविद्यालय, डॉ सुधीर भंडारी, प्रिंसिपल एसएमएस, मेडिकल कॉलेज, संगीता बेनीवाल, अध्यक्ष राजस्थान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग और प्रशांत अग्रवाल, अध्यक्ष, नारायण सेवा संस्थान जैसे विशेषज्ञों ने इस वेबिनार में अपने विचार शेयर किए। इस दौरान विशेषज्ञों ने शिशु और मां के पोषण से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर महत्वपूर्ण जानकारी दी और एक ऐसे बेहतर माहौल की वकालत की, जिसमें स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हो। इसके साथ ही लिंग समानता पर आधारित नीतियां बनाने पर जोर दिया गया और पोषण के लिए विकसित और विकासशील देशों में अलग-अलग नीतियां तैयार करने की आवश्यकता बताई गई।
वेबिनार में विचार व्यक्त करते हुए नारायण सेवा संस्थान के अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल ने कहा, हाल के दौर में यूनिसेफ ने स्कूली बच्चों और किशोरों के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से पोषण सेवाओं की शुरुआत करने संबंधी पहल का समर्थन किया। वर्ष 2020 में, भारत में लगभग 2.5 करोड़ स्कूली बच्चे और किशोर एनीमिया रोकथाम कार्यक्रमों से लाभान्वित हुए हैं। इसी क्रम में भारत से कुपोषण को मिटाने की दिशा में जरूरी कदम उठाए जाने की जरूरत है। इनमें किशोरियों के लिए पोषणयुक्त बेहतर आहार उपलब्ध कराना और कम उम्र की बालिकाओं के लिए पोषण योजनाओं का विस्तार करना जैसे कदम शामिल हैं। उन्होंने कहा, राज्य में कल्याणकारी योजनाओं को चलाने और स्कूल से कॉलेज तक पोषण शिक्षा प्रदान करने में पंचायतें प्रमुख भूमिका निभाती हैं।
संगीता बेनीवाल, अध्यक्ष, राजस्थान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने कहा, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अत्यंत निर्धन लोगां को पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने पर हमेशा ध्यान केंद्रित करने की कोशिश की है, मौजूदा पोषण-केंद्रित कल्याणकारी कार्यक्रमों जैसे इंदिरा रसोई अभियान के लिए अधिक धन उपलब्ध कराने पर उनका जोर नहीं रहा है। हम सभी को सबसे अधिक प्रभावित लोगों तक पहुंचने और सभी प्रमुख हितधारकों, विशेष रूप से गरीब और निर्धन वर्गों की भलाई सुनिश्चित करने के लिए जागरूकता फैलाने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। गर्भावस्था के दौरान सभी महिलाओं के लिए एक स्वस्थ जीवन शैली अपनाना महत्वपूर्ण है, ताकि स्वस्थ महिलाएं एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे स
महिलाओं और बच्चों पर महामारी के प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए आईआईएचएमआर विश्वविद्यालय में डॉ. एसडी गुप्ता स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के सलाहकार डॉ. डी.के. मंगल ने कहा, देश आज महामारी के असर के साथ-साथ कुपोषण की समस्या से भी जूझ रहा है। महामारी के कारण आईसीडीएस और मध्याह्न भोजन कार्यक्रम जैसे नियमित पोषण कार्यक्रमों में बाधा उत्पन्न हुई है। इससे लाखों बच्चों और महिलाओं के पोषण स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। निरंतर महामारी के कारण हम अपने देश में पोषण संबंधी प्रयासों को और कारगर नहीं बना पाए हैं। महामारी के दौरान भोजन और पोषक तत्वों की कमी के कारण महिलाओं और बच्चों के जीवन पर बुरा असर पड़ा है। महामारी की तीसरी लहर के आसन्न खतरे से स्थिति और खराब होने की आशंका है। गर्भावस्था से पहले और इस स्थिति के दौरान और स्तनपान के दिनों में भी मां के लिए पर्याप्त पोषण उपलब्ध कराने और बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच को कारगर बनाने से महिलाओं और बच्चों की पोषण स्थिति में सुधार हो सकता है। पर्याप्त संख्या में लोगों तक इन सुविधाओं को पहुंचाने से हम पोषण संबंधी सतत विकास लक्ष्यों को हासिल कर सकेंगे।
डॉ. सुधीर भंडारी, प्रिंसिपल एसएमएस कॉलेज ने कहा, ‘‘भारत को शुरुआत में कोविड-19 के दौरान शारीरिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। समय के साथ हमने महसूस किया कि पोषण ने कई लोगों के जीवन को प्रभावित किया है, जहां 2022 तक 9.3 मिलियन बच्चे प्रभावित होंगे, जिनमें से 20-25 प्रतिशत अल्प विकास के कारण पीड़ित हो सकते हैं। कम पोषण का अनुभव करने वाले बच्चों में महामारी संबंधी जटिलताओं से पीड़ित होने की आशंका अधिक होती है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘कुपोषण के कारण कोविड-19 के दौरान निमोनिया और विभिन्न बीमारियों सहित अन्य संक्रामक रोगों के कारण लोगों में अधिक बीमारी और मृत्यु दर हो सकती है। कोविड-19 की पहली और दूसरी लहर वाले देशों में, मोटापा और गैर-संचारी रोगों के कारण वायरस के अधिक गंभीर परिणाम देखे गए हैं। ऐसे में पोषण की स्थिति को सुधारने और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए स्वास्थ्य संबंधी रणनीतियाँ बनाना आवश्यक है। महामारी ने मां और छोटे बच्चों की पोषण स्थिति को बुरी तरह प्रभावित किया है। आज जरूरत इस बात की है कि हम खाद्य सुरक्षा और आबादी को खाद्य आपूर्ति श्रृंखला के कामकाज को मजबूत करें। साथ ही, हमें तीव्र कुपोषण के मामलों की तरफ भी ध्यान देना चाहिए और सूक्ष्म पोषक तत्वों को उपलब्ध कराने का प्रयास करना चाहिए।’’
डॉ. भंडारी ने आगे कहा, ‘‘महामारी के दौरान 6 महीने से 23 महीने के आयु वर्ग के लगभग 58 मिलियन बच्चे खाने-पीने की बेहतर आदतों को विकसित नहीं कर पाए हैं। हमें इस बात को भी समझना होगा कि स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवाओं तक आसान पहुंच नहीं होने के कारण महिलाओं और बच्चों में पोषक तत्वों की कमी को दूर करना मुश्किल होता जा रहा है।’’