सार
राजस्थान के जयपुर जिले की राजमाता के संपत्ति मामले में 11 साल से चल रहे कानूनी सुनवाई का जिले के जन्मदिन के पहले फैसला आ गया है। जिसके बाद उनके पोता पोती ने राहत की सांस ली है। परिवार के अन्य लोगों ने इसके खिलाफ लगाई थी याचिका।
जयपुर (jaipur). 11 साल से जयपुर की अदालतों में चल रहे पूर्व राजमाता गायत्री देवी की जायदाद को लेकर खबर आई हैं। दरअसल जयपुर की अतिरिक्त जिला न्यायलय क्रम संख्या दो, महानगर प्रथम कोर्ट ने राजमाताद की जायदाद को लेकर उनके पोते और पोती को राहत दी हैं। पोते देवराज और लालित्या को इस फैसले के बाद कुछ राहत जरुर मिली है। यह सब कुछ ग्यारह साल से चल रहा थाा और एक बार इसका अब अंत हुआ है। जयपुर के जन्मदिन के मौके पर ठीक एक दिन पहले यह फैसला सुकुन देने वाला है। हांलाकि इस बारे में अभी तक राजपरिवार के किसी सदस्य का बयान सामने नहीं आया हैं
अरबों रुपयों की सम्पत्ति को लेकर चल रहा विवाद
दरअसल राजपरिवार के ही कुछ सदस्यों ने राजमाता की जायदाद को लेकर कोर्ट में गुहार लगाई थी कि वसीयत के मामले में पूरी तरह से फैसला आने तक वसीयत में बताई गई सम्पत्ति के बारे में उनके पोतों देवराज और लालित्या को रोक दिया जाए। पूर्व राजपरिवार के सदस्यों पृथवीराज, विजित सिंह, उर्वशी देवी की ओर से वसीयत को पूरी तरह से अवैध करने के लिए प्रार्थना पत्र कोर्ट में दिया गया था। ग्यारह वर्ष पहले यह दावा किया गया था लेकिन इस दावे पर अब कोर्ट ने दोनो पोतों को राहत दी है।
गोद लिए पुत्र को सम्पत्ति में अधिकार मिलना गलत
इस मामले में पूर्व राजपरिवार के सदस्यों विजित सिंह, पृथ्वी सिंह और अन्य ने देवराज और लालित्या के परिवार को लेकर दावे किए हैं। उनका कहना है कि जगत सिंह के बच्चों देवराज और लालित्या को सम्पत्ति अधिकार राजमाता ने सौंप दिए थे। परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा दावा किया गया है कि जगत सिंह, राजमाता की संतान नहीं थे, उन्हें बहादुर सिंह से गोद लिया गया था। ये भी कहा गया है कि एक बार दत्तक जाने के बाद वो हमेशा दत्तक ही रहता है वापस उस परिवार में नहीं आता। इन सभी मसलों को लेकर एक पक्ष कोर्ट गया और इस तमाम प्रक्रिया को रोकने और वसीयत को अवैध घोषित करने की एप्लीकेशन 2009 में दी। इस पर अब कोर्ट ने स्थिति साफ की है। गायत्री देवी का देहांत 29 जुलाई 2009 को हुआ था।