सार

vaishakh sankashti chaturthi vrat katha: इस बार 27 अप्रैल, शनिवार को वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि है। इस दिन विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया जाता है। इस व्रत का खास महत्व है।

 

Sankashti Chaturthi Vrat 2024: धर्म ग्रंथों के अनुसार, वैसाख मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया जाता है। इस दिन भगवान श्रीगणेश और चंद्रमा की पूजा का विधान है। इस बार ये तिथि 27 अप्रैल, शनिवार को है। इस व्रत से जुड़ी एक कथा भी प्रचलित है। इस कथा को सुने बिना व्रत-पूजा का संपूर्ण फल नहीं मिलता। आगे जानिए विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा…

ये है विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा
किसी समय एक राज्य में धर्मकेतु नाम का एक ज्ञानी ब्राह्मण रहता था, उनकी दो पत्नी थीं एक का नाम सुशीला था और दूसरी का चंचला। सुशीला धार्मिक स्वभाव की थी जबकि चंचला का धर्म के प्रति कोई लगाव नहीं था। व्रत करने के कारण सुशीला बहुत कमजोर हो गई थी, जबकि चंचला की सेहत काफी अच्छी थी।
कुछ दिनों बाद सुशीला ने एक पुत्री को और चंचला ने पुत्र को जन्म दिया। ये देख चंचला ने सुशीला से कहा कि ‘इतने व्रत-उपवास करने के बाद भी तुम्हें पुत्री प्राप्त हुई जबकि मैंने तो कुछ पूजा-पाठ भी नहीं कि, इसके बाद भी मुझे पुत्र मिला है। चंचला की ये बातें सुशीला के हृदय में चुभने लगीं।
इसके बाद जब विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत आया तो सुशीला ने पूरे मनोभाव से ये व्रत किया। सुशीला की भक्ति देखकर गणेशजी ने उसे एक पुत्र होने का वरदान भी दिया। शीघ्र ही ये वरदान पूरा भी हो गया, लेकिन दुर्भाग्यवश धर्मकेतु की मृत्यु हो गई। इसके बाद चंचला अलग घर में रहने लगी।
सुशीला पति के घर में रहकर ही पुत्र और पुत्री का पालन करने लगी। सुशीला का पुत्र बहुत ही ज्ञानी था, जिससे उनके घर में काफी धन हो गया। ये देख चंचला उनसे ईर्श्या करने लगी और मौका मिलते ही उसने सुशीला की कन्या को कुएं में धकेल दिया। यहां श्रीगणेश ने उसकी रक्षा की।
चंचला ने जब ये देखा कि स्वयं श्रीगणेश सुशीला के परिवार की रक्षा कर रहे हैं तो उसे अपने किए पर पछतावा होने लगा और उसने सुशीला से माफी मांग ली। सुशीला के कहने पर चंचला ने भी विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया। जिससे उस पर गणेशजी की कृपा हो गई।


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