सार
Mokshada Ekadashi Vrat Katha: अगहन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहते हैं। ग्रंथों के अनुसार, इसी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था, चूंकि गीता से मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसलिए इस एकादशी का नाम मोक्षदा है।
Mokshada Ekadashi Ki Katha: हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। एक महीने में 2 एकादशी होती है, इस तरह एक साल में कुल 24 एकादशी का संयोग बनता है। हर अकादशी का अलग नाम, महत्व, पूजा विधि और कथा होती है। अगहन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहते हैं। इस बार ये एकादशी 22 दिसंबर, शुक्रवार को है। इस व्रत की कथा भी काफी रोचक है। आगे जानिए मोक्षदा एकादशी की कथा…
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा
धर्म ग्रंथों के अनुसार, किसी समय गोकुल नगर में वैखानस नाम का राजा था। वह अपनी प्रजा को संतान मानकर पालन करता था। एक बार रात में राजा को सपना आया कि उनके पिता नरक में यातना भोग रहे हैं। सपने में पिता की ये स्थिति देख उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ।
अगली सुबह राजा वैखानस ने विद्वानों से इस सपने का अर्थ पूछा तो उन्होंने कहा कि- यहाँ पास ही पर्वत ऋषि का आश्रम है। वे परम तपस्वी हैं। वे ही आपकी इस समस्या का समाधान कर सकते हैं। विद्वानों की बात सुनकर राजा पर्वत ऋषि के पास गए और उन्हें अपनी समस्या बताई।
पर्वत ऋषि ने कुछ देर आंखें बंद की और कहा कि- ‘पूर्व जन्म में तुम्हारे पिता की 2 पत्नियां थीं, उनमें से एक से वे अधिक प्रेम करते थे और दूसरी की उपेक्षा करते थे। इसी कारण तुम्हारे पिता को नर्क में जाना पड़ा। तब राजा वैखानस ने पिता की मुक्ति का उपाय पूछा।
पर्वत मुनि ने कहा कि ‘आप मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करें और इसका फल अपने पिता को देने का संकल्प दें तो इससे आपके पिता को मोक्ष प्राप्त होगा। राजा ने अपने परिवार सहित इस एकादशी का व्रत किया, जिससे उनके पिता को नरक से मुक्ति मिल गई।
धर्म ग्रंथों के अनुसार, जो भी व्यक्ति मोक्षदा एकादशी का व्रत करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और मृत्यु के बाद उसकी आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन गीता जयंती का पर्व भी मनाया जाता है। इसलिए इस व्रत में गीता का पाठ भी जरूर करना चाहिए।
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