सार
Ram Navami 2025: भारत के इस गांव में रामनवमी पर नहीं दिखेगा महावीरी पताका, लेकिन रामभक्ति में कोई कमी नहीं। जानिए क्यों निभाई जाती है ये अनोखी परंपरा
Ram Navami 2025: भारत में रामनवमी का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, जहां गांव-शहर भगवा पताकाओं और महावीरी झंडों से सजते हैं। पर बिहार के शेखपुरा जिले के पथलाफार गांव की परंपरा जरा हट के है। यहां रामनवमी के दिन महावीरी पताका नहीं लगाया जाता। पीढ़ियों से गांव के लोग इस परंपरा को निभा रहे हैं। इसके पीछे की वजह आपको चौंका देगी। आइए उसके बारे में जानते हैं।
पुरानी घटना: जब पताका लगाने से आई अनहोनी
गांव के बुजुर्गों के अनुसार, कई पीढ़ी पहले रामनवमी के अवसर पर गांव में महावीरी पताका लगाई गई थी। अगले ही दिन गांव में कई लोगों की तबीयत बिगड़ गई; कुछ की गर्दन टेढ़ी हो गई, तो कई बीमार पड़ गए। इसे देवी प्रकोप माना गया और उसी दिन गांव से सारी पताकाएं हटा दी गईं। चमत्कारिक रूप से, जिन लोगों की तबीयत खराब हुई थी, वे धीरे-धीरे ठीक होने लगे। तब से लेकर आज तक किसी ने इस परंपरा को तोड़ने की हिम्मत नहीं की।
दरगाह का सम्मान: ग्रामीणों ने इस संत के सम्मान का माना उल्लंघन
गांव के पश्चिम में करीब डेढ़ किलोमीटर दूर सूफी संत इसहाक मगरबी की दरगाह स्थित है, जिसका मुख्य द्वार पथलाफार गांव की ओर खुलता है। कहा जाता है कि जब गांव में एक बार रामनवमी पर पताका लगाई गई थी, उसी के बाद अनहोनी हुई। ग्रामीणों ने इसे संत के सम्मान का उल्लंघन माना और तय किया कि अब से रामनवमी के दिन कोई भी महावीरी पताका गांव में नहीं लगेगी। तब से यह एक स्थायी परंपरा बन गई है, जिसे आज तक निभाया जा रहा है।
पूजा-पाठ में नहीं है कोई कमी
ऐसा भी नहीं है कि गांव में महावीरी पताका नहीं लगाने का असर ग्रामीणों की रामनवमी की आस्था पर पड़ा हो। हर घर में भगवान राम की विधिपूर्वक पूजा के अलावा व्रत रखा जाता है, रामचरितमानस पाठ, संध्या आरती होती है। पूरा गांव राम भक्ति में डूबा रहता है। अषाढ़ी पूजा के समय गांव के देवी स्थान पर एक झंडा जरूर लगाया जाता है, लेकिन रामनवमी पर महावीरी पताका नहीं लगाने की परंपरा अब भी जारी है।