सार
राजस्थान के दौसा जिले के एक गांव में घोड़ी ने लोगों की सालों की दुश्मनी दूर कर दी। जहां लोग एक-दूसरे के घर आते जाते और विवाह नहीं करते थे, अब सब होने लगा। घोड़ी की वजह से 7 फेरे लेने के बाद भी दुल्हन मायके में अकेली रही, लेकिन दूल्हे के साथ नहीं गई।
दौसा. राजस्थान भले ही आज हर क्षेत्र में आगे क्यों न बढ़ चुका हो। लेकिन आज भी यहां के ग्रामीण क्षेत्र में कई पुरानी परंपराएं और नियम चले आ रहे हैं। यहां के दौसा जिले में पिछले करीब 350 साल से गगवाना और अनंतपुरा गांव में आपस रिश्ते नहीं होते थे। गगवाना गांव के रहने वाले परशुराम जिन्हें घोड़ी वाले बाबा के नाम से जाना जाता था उनकी अनंतपुरा गांव में सगाई हुई। शादी के सभी कार्यक्रम हो गए, लेकिन विदाई होने से पहले परशुराम ने अपने ससुर से तनी खुलाई यानि बाड़े में बंधी घोड़ी देने की डिमांड की तो ससुर ने मना कर दिया।
7 फेरे होने के बाद भी दू्ल्हे के साथ नहीं रही दुल्हन
ऐसे में दूल्हा बिना दुल्हन लिए ही अपने घर पर आ गया और इसके बाद दोनों गांव में आपस में कोई भी रिश्ता नहीं हुआ। हालांकि बताया जाता है कि यह शादी टूटने के करीब 7 साल बाद रास्ते में दुल्हन को परशुराम मिल गए। और दुल्हन ने परशुराम को कहा कि मेरे पिताजी मुझे किसी दूसरे गांव के रहने वाले शख्स के साथ भेज रहे हैं। लेकिन मैंने सात फेरे तो आपके साथ लिए हैं। फिर वह दुल्हन उस दूसरे गांव के रहने वाले शख्स के साथ भी नहीं गई और जिंदगी भर अपने पीहर ही रही।
अब एक घोड़ी ने 350 साल पुरानी परंपरा निभाई
अब महेंद्र मीणा की शादी होने के बाद 350 साल पुरानी एक दूसरे गांव में रिश्ते नहीं होने वाली परंपरा टूट चुकी है। क्योंकि महेंद्र को शादी में उसके ससुराल के लोगों ने घोड़ी दे दी है। जिससे सालों पुरानी रस्म को भी निभा दिया। ऐसे में अब दोनों गांवों के बीच रिश्ते हो सकेंगे।