सार

हापुड़ के सदरपुर गांव में सांप के काटने का खौफ, अंधविश्वास और तांत्रिकों के भरोसे सुरक्षा तलाशते लोग। एंटीवेनम के बावजूद सरकारी प्रयासों की कमी। जानें क्यों पलायन को मजबूर हुए ग्रामीण, बढ़ता जा रहा है खौफ।

मेरठ। UP के हापुड़ जिले के एक कोने में सदरपुर गांव में एक अजीब-सी खामोशी पसरी हुई है। यह पूरा गांव बेचैन करने वाली शांति में लिपटा हुआ है। यहां के अधिकांश घर खाली पड़े हैं। इन घरों में इस समय सिर्फ उन परिवारों की निशानियां बची हैं, जो कहीं और शरण ले चुके हैं। कुछ ही लोग बचे हैं - ज़्यादातर पुरुष, जो अब नीम के पेड़ की फैली हुई शाखाओं के नीचे ऊंची खाटों पर सोते हैं और एक परिचित रेंगती हुई मौत से बचने के लिए बारी-बारी से पूरी रात पहरा देते हैं।

आखिर कैसे शुरू हुआ ये खौफनाक पलायन का दौर

यह बेचैनी पिछले महीने तब शुरू हुई जब 35 वर्षीय महिला और उसके 9 और 11 साल के दो बच्चों को सोते समय सांप ने काट लिया। उन तीनों को नजदीकी झोलाछाप डॉक्टर के पास भागना घातक साबित हुआ और सुबह होते-होते तीनों की मौत हो गई। अगले कुछ दिनों में सांप के काटने के कई और मामले सामने आए, लेकिन अधिकारियों ने तुरंत एंटीवेनम का इस्तेमाल कर जान बचाई। हालांकि, गांव के लोगों में डर पहले से ही घर कर चुका था। स्थानीय निवासी अर्जुन देव के अनुसार यहां सांपों का आतंक साफ देखा जा सकता है।

महिलाएं बच्चों को लेकर गांव से कर गईं पलायन

कई घर खाली पड़े हैं और ग्रामीण, खास तौर पर महिलाएं और बच्चे सुरक्षा की तलाश में कहीं और चले गए हैं। एहतियात के तौर पर जो लोग गांव में रह गए हैं, उन्हें खुले में ऊंची खाटों पर एक साथ सोना पड़ता है। यह पलायन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में व्यापक और बार-बार होने वाली त्रासदी को दर्शाता है, जहां अक्सर अंधविश्वास ही जीवन जीने का आधार बना हुआ है।

जहर निकालने के लिए युवक को दो दिन गंगा में लटकाए रखा

बुलंदशहर के जहांगीराबाद कस्बे में 22 वर्षीय मोहित कुमार को अप्रैल में एक सांप ने डस लिया, जिससे उसकी खुद की किस्मत खराब हो गई। उनके परिवार ने मेडिकल उपचार कराने के बजाय एक तांत्रिक की मदद ली। तांत्रिक ने सलाह दी कि मोहित को गंगा नदी में लटका दिया जाए और वहां पर अनुष्ठान किया जाएगा, तभी उसकी जान बच पाएगी। परिवार ने तांत्रिक पर भरोसा जताते हुए मोहित कुमार को दो दिनों तक गंगा नदी में पानी के ऊपर लटकाया, मोहित तो नहीं बचा, लेकिन उसके दाह-संस्कार के साथ ही तांत्रिक का अनुष्ठान खत्म हो गया।

सांप कांटने पर दो बच्चों को गोबर में दफना दिया था जिंदा

इसी तरह 2021 में शाहजहांपुर में दो बच्चों को सांप द्वारा काटे जाने के बाद उनके परिवार द्वारा गाय के गोबर में जिंदा दफना दिया गया था। परिवार का ये कदम उन दोनों बच्चों के लिए घातक साबित हुआ, लेकिन उन्हें भरोसा था कि गाेबर में उन्हें दबाने से बच्चे रहस्यमय शक्ति से ठीक हो जाएंगे। चमत्कार की उम्मीद में सुरक्षा के लिए बनाए गए ये उपाय घातक साबित हुए।

विश्व में सर्पदंश से होने वाली मौतों में आधी सिर्फ भारत में

जानकारी होने के बाद हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता को समझते हुए राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC) ने हाल ही में सर्पदंश के विष के रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPSE) शुरू की है। इस पहल का उद्देश्य एक भयावह आंकड़े को प्रदर्शित करना है। जिसके अनुसार हमारे देश में अनुमानित 3-4 मिलियन वार्षिक सर्पदंशों में से लगभग 58,000 घातक होते हैं - जो वैश्विक सर्पदंश से होने वाली मौतों का लगभग आधा है।

बिग फोर सांप होते हैं सबसे खतरनाक

एनएपीएसई के मार्गदर्शन दस्तावेज के अनुसार विभिन्न देशों में सर्पदंश के शिकार केवल एक छोटे से हिस्से के लोग ही क्लीनिकों और अस्पतालों में रिपोर्ट करते हैं तथा सर्पदंश के वास्तविक मामलों की रिपोर्ट बहुत कम की जाती है। सरदार वल्लभभाई पटेल विश्वविद्यालय में पशु चिकित्सा के प्रोफेसर डॉ. अमित वर्मा ने इस मुद्दे पर कहा कि भारत में 300 से अधिक सांप प्रजातियां हैं, जिनमें से अधिकांश विषैली नहीं हैं। लेकिन 'बिग फोर' - कोबरा, रसेल वाइपर, कॉमन क्रेट और सॉ-स्केल्ड वाइपर सबसे अधिक जानलेवा होते हैं। जबकि कुछ अन्य विषैले सर्प होते हैं, लेकिन उनके काटने से कभी-कभी मृत्यु नहीं होती।

झोलाछाप चिकित्सकों का उपचार ही बन जाता है मरीजों के लिए जहर

हालांकि चिकित्सा तथ्य और गांव की लोककथाओं के बीच की खाई इतनी चौड़ी है कि कई लोग इसे पार नहीं कर पाते। डा. अमित वर्मा के अनुसार गांव वाले मानते हैं कि हर सांप जहरीला होता है और वे ऐसे अनधिकृत चिकित्सकों के पास भागते हैं, जो 'बिग फोर' सांपों के काटने का इलाज करने में सक्षम नहीं होते। फिर भी इलाज करते हैं, जिससे अक्सर उनका ये इलाज जहर बन जाता है, जहां जीवन रक्षक विज्ञान पर नीम हकीमों, काले जादू और अनुष्ठानों में विश्वास हावी हो जाता है।

सर्पदंश को दैवीय प्रकोप मानतें है सपेरे

बिजनौर में सपेरे अर्जुन नाथ ने श्रद्धा और जोखिम के बीच टकराव का दावा करता है। उसके अनुसार सांप दैवीय हैं और उनके काटने का धार्मिक महत्व है। हम औषधीय जड़ी-बूटियों से लेकर नागमणि तक कई तरीकों का इस्तेमाल करते हैं - बॉलीवुड फिल्मों में नागमणि - जो काटने के घाव से जहर चूसते हैं। पूरी आस्था के साथ उसने एक अनुष्ठान का वर्णन किया, जिसमें नागमणि, जिसे कोबरा के फन पर पाया जाता है, घाव पर रगड़ा जाता है और फिर उबलते दूध में डाला जाता है। उसने दावा किया कि यदि दूध का रंग नीला हो जाए तो इसका मतलब है कि विष शरीर से निकल चुका है।

ग्रामीणों को विषैले सांपों की नहीं होती पहचान

वन्यजीव व्यापार निगरानी नेटवर्क 'ट्रैफिक' से जुड़े रहे वन्यजीव विशेषज्ञ अबरार अहमद के लिए लोककथाओं से यह लगाव भय और आस्था दोनों के बारे में बहुत कुछ कहता है। उन्होंने बताया कि भय इन चिकित्सकों में आस्था बढ़ाता है। ग्रामीणों में बुनियादी ज्ञान की कमी है, जैसे कि विषैले सांपों को पहचानना और त्वरित प्रतिक्रिया दल (QRT) को सूचना नहीं दी जाती। अक्सर, पीड़ित स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंचने में महत्वपूर्ण समय खो देते हैं, 80% मौतें मदद पहुंचने से पहले ही हो जाती हैं। अधिकारियों को सांप के काटने से होने वाली मौतों पर अंकुश लगाने के लिए सुविधाओं को मजबूत करना चाहिए।

किस वजह से तांत्रिकों और झोलाछाप चिकित्सकों के झांसे में फंस रहे ग्रामीण

हापुड़ में मुख्य पशु चिकित्सक डॉ. रंजन सिंह आर्थिक और सांस्कृतिक बाधाओं को देखते हैं, जो लोगों को उचित उपचार से दूर रखती हैं। पैसों की कमी और पुरानी परम्पराओं के कारण, परिवार तांत्रिकों या चिकित्सकों की ओर रुख करते हैं। फिर भी केवल उचित चिकित्सा उपचार ही सर्पदंश का इलाज किया जा सकता है। स्थिति को और भी जटिल बना रहा है ग्रामीण स्वास्थ्य केन्द्रों में एंटीवेनम की अनियमित उपलब्धता, जिसका ग्रामीण दबी जुबान में रोना रो रहे हैं, जबकि स्वास्थ्य अधिकारी किसी भी कमी से इनकार कर रहे हैं। यह असंगतता ग्रामीण स्वास्थ्य पहलों पर निगेटिव प्रभाव डालती है तथा अनेक लोगों को अपनी ही मान्यताओं पर निर्भर रहना पड़ता है।

क्या कोई कानूनी बंधन है?

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में हाल ही में किए गए संशोधनों ने कोबरा और रसेल वाइपर को अनुसूची I प्रजातियों के रूप में पुनः वर्गीकृत किया है, जिससे उनका पकड़ा जाना अवैध हो गया है और एंटीवेनम उत्पादन पर असर पड़ा है। इन प्रजातियों के बिना पॉलीवेलेंट एंटीवेनम बनाना - वह एंटीडोट जो कई प्रकार के विषैले सांपों के काटने का इलाज कर सकता है - एक चुनौती बन जाता है, जो पहले से ही गंभीर स्थिति को और भी बदतर बना सकता है।

 

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