सार
फरवरी 2020 में सबसे बड़ी 58 एयरलाइंस (Airlines) पर रिसर्च (Research) किया गया, जिसमें सामने आया था कि एविएशन इंडस्ट्री (Aviation Industry) कार्बन एमिशन (carbon emissions ) कम करने की दिशा में बहुत ही कम काम कर रही है। हालांकि, कई देशों ने अब ग्रीन फ्यूल या इलेक्ट्रिक विमानों की तकनीक पर काम शुरू कर दिया है।
नई दिल्ली। कोविड (Covid 19) की दूसरी लहर का प्रभाव कम होने के बाद दुनियाभर में एविएशन इंडस्ट्री (Aviation Industry) एक बार फिर बढ़ रही है। भारत में ही 2022 में दो नई एयरलाइंस (Airlines) शुरू होने की संभावना है। इस बीच पर्यावरण को लेकर फिर बहस शुरू हो गई है। दरअसल, दुनियाभर में हवाई यात्राओं से कार्बन उत्सर्जन में जमकर वृद्धि हुई है। फरवरी 2020 में सबसे बड़ी 58 एयरलाइंस पर रिसर्च किया गया, जिसमें सामने आया था कि एविएशन इंडस्ट्री कार्बन एमिशन कम करने की दिशा में बहुत ही कम काम कर रही है। ग्लास्गो में COP-26 जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन में भी इंडस्ट्री ने सिर्फ अपनी योजना पर बात की, लेकिन नतीजा कुछ नहीं हुआ। हालांकि, कुछ देशों ने जरूर कार्बन फुटप्रिंट कम करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। जानें, देश एविएशन इंडस्ट्री को लेकर क्या नया कर रहे हैं...
स्वीडन : स्वीडिश एविएशन इंडस्ट्री ने 2030 तक फॉसिल फ्यूल मुक्त डोमेस्टिक उड़ानों का रोडमैप तैयार किया है। इसके तहत स्वीडन से उड़ने वाली सभी उड़ानों के लिए 2045 तक फॉसिल फ्री होना तय किया है। इसके लिए जेट फ्यूल को सस्टेनेबल फ्यूल या इलेक्ट्रिक और हाइड्रोजन जैसे विकल्प देखे गए हैं।
यूरोपीय यूनियन : फ्यूल के लिए मौजूदा टैक्स छूट को खत्म करने और टिकाऊ ईंधन को अपनाने के प्रयासों को तेज करने की योजना बना रहा है।
ब्रिटेन : 2050 तक नेट-जीरो एविएशन के लिए अपनी पॉलिसी को अंतिम रूप दे रहा है। इसके लिए यूके रिसर्च एंड इनोवेशन के रूप में जाना जाने वाला एक सार्वजनिक निकाय हाइब्रिड इलेक्ट्रिक डोमेस्टिक एयरक्राफ्ट सहित नई एयरक्राफ्ट टेक्नोलॉजी के विकास की कोशिश कर रहा है।
ऑस्ट्रेलिया : इस देश का इमर्जिंग एविएशन टेक्नोलॉजी प्रोग्राम अन्य लक्ष्यों के साथ कार्बन उत्सर्जन को कम करने की कोशिश में है, लेकिन उसका फोकस फिक्स्ड विंग एयरक्राफ्ट के बजाय कैरियर एयरक्राफ्ट या ड्रोन और शहरी हवाई वाहनों पर अधिक है।
अमेरिका : यूनाइटेड एयरलाइंस ने 2 दिसंबर 2021 को एविएशन के इतिहास में पहली 100 प्रतिशत सस्टेनेबल फ्यूल का इस्तेमाल किया। यह यात्रियों से भरे विमान में किया गया। यूनाइटेड एयरलाइंस एक बड़े डोमेस्टिक और इंटरनेशनल रूट नेटवर्क का संचालन करता है।
इससे पहले अमेरिका में ही 2020 में दुनिया के सबसे बड़े इलेक्ट्रिक प्लेन ने पहली बार सफल उड़ान भरी। अमेरिका की एक स्टार्टअप कंपनी ने इस प्लेन को बनाया है। इस प्लेन में 9 पैसेंजर बैठ सकते हैं।
चीन : 2015 में दुनिया का पहला इलेक्ट्रिक प्लेन तैयार किया था। ट्रायल भी हो चुका है। इस छोटे प्लेन का इस्तेमाल आपदा और बचाव कार्यों में किया जा सकता है।
फ्यूचर एयरक्राफ्ट की टेक्नोलॉजी पर तेजी से हो रहा काम
पिछले 5 साल में फ्यूचर एयरक्राफ्ट (Future Aircraft) को लेकर कई नई टेक्नोलॉजी आई हैं। इसके तहत इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड हाइड्रोजन या बैटरी ऑपरेटेड एयरक्राफ्ट बनाए जा रहे हैं। इस तरह के एयरक्राफ्ट एयरबस, रोल्स रॉयस और जीरो एविया बना रही हैं। इसके अलावा कम कार्बन तीव्रता वाले सस्टेनेबल फ्यूट पर भी जोर है। यह तकनीक कार्बन उत्सर्जन कम कर सकती है। हालांकि, सिर्फ बैटरी और हाइड्रोजन इलेक्ट्रिक विकल्प ही नाइट्रोजन के ऑक्साइड (NOX), कालिख के कण, ऑक्सीकृत सल्फर फॉर्म्स और जल वाष्प जैसे गैर-CO2 जलवायु प्रभावों को काफी कम करते हैं। इलेक्ट्रिक एयरक्राफ्ट को जीरो एमिशन करने के लिए उन्हें रिन्यूएबल एनजी द्वारा ऑपरेट किया जाना बेहतर विकल्प बताया जा रहा है। इससे इलेक्ट्रिक और हाइड्रोजन एयरक्राफ्ट्स में पारंपरिक विमानों की तुलना में कम ईंधन और रखरखाव लागत आएगी।
कार्बन एमिशन के लिए सुपर रिच सबसे ज्यादा जिम्मेदार
2020 की ऑक्सफैम और स्टॉकहोम पर्यावरण इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में दुनियाभर के 50% ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन 10 प्रतिशत सबसे अमीर लोग कर रहे हैं। यही नहीं, एक प्रतिशत सुपर रिच (Super rich) 15 प्रतिशत उत्सर्जन कर रहे हैं।
ज्यादातर सरकारें इसलिए नहीं करतीं प्रयास
इंटरनेशनल एविएशन इंडस्ट्री से होने वाले प्रदूषण को किसी भी देश के उत्सर्जन के तौर पर नहीं गिना जाता है। इससे सरकारें भी कार्रवाई नहीं करतीं। इस पर एक देश के स्तर पर कुछ पाना भी मुश्किल है। हालांकि, कुछ सरकारें एविएशन इंडस्ट्री में बदलाव की दिशा में बढ़ रही हैं।
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