सार

इतने लंबे समय तक कोरोना संक्रमण का मामला शायद ही आपने सुना हो। इस मामले में शोधकर्ताओं ने जिस तरह इस व्यक्ति की जान बचाई, वो कहानी जानने योग्य है।

 

ब्रिटेन के डॉक्टर्स ने शुक्रवार को ऐसी घोषणा कि जिसने चिकित्सा जगत को हैरत में डाल दिया है। दरअसल, डॉक्टर्स ने यहां एक ऐसे कोविड मरीज को ठीक किया है, जो पिछले 411 दिन यानी एक साल से भी ज्यादा वक्त से कोरोना से संक्रमित था। ये एक अलग तरह का कोरोना था जो लॉन्ग कोविड से भी ज्यादा वक्त तक रहता है। डॉक्टर्स ने बताया कि कैसे जब सबकुछ बेअसर हो गया था तब कुछ पुरानी चीजें ही काम आईं।

ये लॉन्ग कोविड से भी ज्यादा खतरनाक था

शोधकर्ताओं ने एएफपी को बताया कि इस मरीज के जेनेटिक कोड का विश्लेषण कर उसके लिए सटीक ट्रीटमेंट निकाला गया, जिससे उसे काफी फायदा हुआ। वह ऐसे कोविड से संक्रमित था जो लंबे समय तक चलने वाले कोविड या लौटकर वापस आने वाले कोविड से कई गुना ज्यादा एक्टिव था। दुनिया में बेहद कमजोर इम्यूनिटी वाले कुछ लोग इसका शिकार बने जिनमें महीनों तक संक्रमण देखा गया। एनएचएस फाउंडेशन ट्रस्ट में संक्रामक बीमारियों के विशेषज्ञ डॉक्टर ल्यूक ने कहा कि ऐसे मरीजों के शरीर में संक्रमण हमेशा घूमता रहता है और संक्रमित होने के कई महीनों या सालों तक भी इनकी टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव ही आती है। ऐसे आधे मरीजों को इस कोविड की वजह से काफी ज्यादा खतरा होता है क्योंकि पहले ही उनक फेफड़ों को काफी नुकसान पहुंचा होता है।

साल भर से पीछा नहीं छोड़ रहा था कोरोना

अब इस मामले को लेकर Clinical infectious disease के जर्नल में एनएचएस फाउंडेशन ट्रस्ट की रिपोर्ट छापी गई है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि ऐसे दीर्घकालीन कोविड संक्रमण से कैसे निपटा गया। इसमें ब्रिटेन के 59 वर्ष के मरीज का जिक्र किया गया, जिसे लगातार 13 महीने से कोविड था और आखिरकार उसे बीमारी से बचा लिया गया। किडनी ट्रांसप्लांट होने की वजह से मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ गई थी, जिसके बाद उसे दिसंबर 2020 में कोविड ने अपनी चपेट में ले लिया, जो इस जनवरी 2022 तक उसे रहा। यह जानने के लिए कि उसे कोविड बार-बार हुआ है या एक ही संक्रमण लगातार बना हुआ है, डॉक्टर्स ने नेनोपोर सीक्वेंसिंग टेक्नोलॉजी (nanopore sequencing technology) की मदद से उसका जेनेटिक विश्लेषण किया। यह टेक्नोलॉजी 24 घंटे में नतीजे दे देती है। सामने जो नतीजे आए वो हैरान करने वाले थे।

फिर इस तरह किया गया इलाज

रिपोर्ट्स में पता चला कि संक्रमित व्यक्ति के शरीर में बी-1 वेरिएंट था जो 2020 की शुरुआत में हावी था, लेकिन इसकी जगह दूसरे वेरिएंट दुनिया में फैल चुके थे। इसी वजह से दुनियाभर में नए वेरिएंट के हिसाब से ट्रीटमेंट दिया जा रहा था। हालांकि, इस विश्लेषण के आधार पर डॉक्टर्स ने उसे पुरानी दवाईयां देना शुरू किया क्योंकि नई दवाईयां केवल नए वेरिएंट्स पर प्रभावी थीं। ऐसे में पुराने ट्रीटमेंट की बदौलत इस शख्स की जान बचाई जा सकी।

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