सार
महिलाओं की जरूरत को देखते हुए हिजाब (hijab) की शुरुआत हुई। सबसे पहले मेसोपोटामिया सभ्यता के लोग इसका इस्तेमाल करते थे। माना जाता है कि शुरुआत में तेज धूप, बारिश और धूल आदि से बचने के लिए लोग इसे पहनते थे। खासतौर पर इसे सिर पर बांधा जाता था।
नई दिल्ली। कर्नाटक के स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पहनने को लेकर विवाद जारी है। हालांकि, हाईकोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि इस संबंध में जब तक कोई फैसला नहीं आ जाता स्कूल और कॉलेज में हिजाब नहीं पहना जाए। हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि छात्र शिक्षण संस्थानों में मजहबी ड्रेस ही पहनकर आने की जिद नहीं कर सकते। वहीं, हाईकोर्ट के इस आदेश को चुनौती को देते हुए शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दाखिल की गई, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल सुनने से इनकार कर दिया।
वैसे देश में हिजाब पहनने को लेकर यह विवाद नया नहीं है। मगर अभी जानते हैं कि कर्नाटक में जारी विवाद क्या है। दरअसल, कुंडापुरा कॉलेज में 28 मुस्लिम छात्राएं हिजाब पहनकर क्लास अंटेंड करने आईं, लेकिन कॉलेज प्रबंधन ने उन्हें इस ड्रेस में क्लास अटेंड करने से रोक दिया। इसके बाद छात्राएं जिद पर अड़ गईं कि वो भी बिना हिजाब क्लास अटेंड नहीं करेंगी। फिलहाल हम आपको बताते हैं कि हिजाब कब, कहां और कैसे शुरू हुआ और क्या यह मुस्लिम महिलाओं के जीवन का प्रमुख हिस्सा है।
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महिलाओं के लिए अनिवार्य नहीं था, कुछ लोगों ने धर्म से जोड़ा
सीएनएन की रिपोर्ट्स के मुताबिक, महिलाओं की जरूरत को देखते हुए हिजाब की शुरुआत हुई। सबसे पहले मेसोपोटामिया सभ्यता के लोग, ग्रीक और फारसी लोग इसका इस्तेमाल करते थे। माना जाता है कि शुरुआत में तेज धूप, बारिश और धूल आदि से बचने के लिए लोग इसे पहनते थे। खासतौर पर इसे सिर पर बांधा जाता था। वहीं, 13वीं शताब्दी के एसिरियन लेख में भी इसका उल्लेख मिलता है कि औरतों, बेटियों और विधवा महिला को हिजाब पहनना है। मगर धीरे-धीरे कुछ लोगों ने इसे धर्म से जोड़ दिया और महिलाओं के लिए अनिवार्य कर दिया।
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गरीब-वेश्याओं के लिए हिजाब पर रोक थी, पहनने पर सजा मिलती
वैसे तो हिजाब सभी महिलाओं के लिए अनिवार्य कर दिया गया, मगर गरीब और वेश्याओं के लिए यह अनिवार्य नहीं था बल्कि, उन्हें इसके इस्तेमाल की मनाही थी। अगर कोई ऐसी महिला इसे पहनती तो उसे सार्वजनिक तौर पर अपमानित किया जाता और बाद में उन्हें दंड दिया जाता।
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ईसाई और इजराइली लोग जहां थे वहां इसका चलन बढ़ा
वहीं, न्यूयार्क विश्वविद्यालय की इतिहासकार नैंसी डेयल की मानें तो हिजाब को धीरे-धीरे सम्मान के तौर पर लिया जाने लगा और यह माना गया कि सम्मानित महिलाएं ही इसका इस्तेमाल करती हैं। हिजाब उन क्षेत्रों तक अधिक पहुंचा, जहां ईसाई और इजराइली रहते थे। ये सिर को ढंक कर रखते थे। वहीं, अरब में इस्लाम के आने से पहले ही महिलाएं सिर ढंकती थीं और यह प्रचलित पहनावे में आ चुका था। चूंकि, अरब देशों में मौसम काफी गर्म होता है। तेज धूप से बचने के लिए लोग इसका इस्तेमाल कर रही थीं।
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बाद में फैशनेबल हो गया हिजाब सुंदर दिखने के लिए पहनने लगीं महिलाएं
समय जैसे-जैसे बदला हिजाब में भी तरह-तरह के बदलाव किए गए। इसे फैशनेबल बनाया जाने लगा और फिर जिन देशों में इसका चलन नहीं था, धीरे-धीरे यह वहां तक पहुंच गया। कुछ महिलाएं सुंदर और आकर्षक दिखने के लिए भी इसका करने लगीं, जबकि कुछ इसे धार्मिक तौर पर इस्तेमाल कर रही थीं।
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क्या होता है हिजाब, कब आया चलन में
दरअसल, हिजाब स्कॉर्फनुमा चौकोर कपड़ा होता है, जिसे मुस्लिम महिलाएं अपने बालों, सिर और गर्दन को ढंकने के लिए इस्तेमाल करती हैं। जिससे सार्वजनिक जगहों पर ऐसे पुरुषों से दूरी बनाकर रखें जो संबंध में नहीं हैं। हालांकि, प्राचीन मेसोपोटामिया सभ्यता में विस्तार से बताया गया है कि किन महिलाओं को घूंघट करन चाहिए और किन्हें नहीं। इस्लाम के वजूद में आने से काफी पहले यह प्रभाव में आ गया था। बुर्का अबाया, नकाब आदि शब्द कुरान से अपरिचित और अनजान हैं। कुरान में तो हिजाब शब्द कपड़ों के बराबर भी नहीं हैं।
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तमाम मुस्लिम देश जहां हिजाब पर प्रतिबंध या अनिवार्य नहीं
दरअसल, ऐसे कई मुस्लिम देश हैं, जहां हिजाब पर प्रतिबंध लगा हुआ है या उसे अनिवार्य नहीं किया गया है। इसमें कोसोवा ने 2009 से, अजरबैजान ने 2010 से, टयूनिशिया ने आंशिक तौर पर 2011 से प्रतिबंधित किया हुआ है। यहां स्कूल-कॉलेजों और सरकारी कार्यालयों में हिजाब पर प्रतिबंध लगा हुआ है। वहीं, सीरीया ने 2010 और मिस्र ने 2015 से स्कूल-कॉलेजों में नकाब तक लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके अलावा, इंडोनेशिया, मलेशिया, मोरक्को, ब्रूनी, मालदीव और सोमालिया में भी हिजाब अनिवार्य नहीं है। जबकि ईरान, अफगानिस्तान और इंडोनेशिया के सिर्फ आचेह शहर में हिजाब या बुर्का अनिवार्य है।