सार
कोरोना महामारी में दाह संस्कार को लेकर आईआईटी रोपड़ ने इलेक्ट्रिक क्रिमेशन सिस्टम तैयार किया है। इसकी खासियत है कि लकड़ी का इस्तेमाल होता है लेकिन धुंआ नहीं निकलता है। इसमें ऊर्जा की बर्बादी भी कम होती है। इसे आसानी से कहीं भी ले जाया जा सकता है।
नई दिल्ली. कोरोना महामारी में दाह संस्कार को लेकर आईआईटी रोपड़ ने इलेक्ट्रिक क्रिमेशन सिस्टम तैयार किया है। इसकी खासियत है कि लकड़ी का इस्तेमाल होता है लेकिन धुंआ नहीं निकलता है। इसमें ऊर्जा की बर्बादी भी कम होती है। इसे आसानी से कहीं भी ले जाया जा सकता है।
स्टोव की तकनीक का इस्तेमाल हुआ है
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसमें स्टोव पर आधारिक तकनीक का इस्तेमाल हुआ है। जलने पर पीली लपटें आती है और हवा में मिलने पर धुंआ रहित हो जाती हैं। यानी ये ईको-फ्रेंडली है।
12 घंटे में दाह संस्कार हो जाएगा
आईआईटी के प्रोफेसर डॉक्टर हरप्रीत सिंह ने कहा, ये 1044 डिग्री सेल्सियस तक गर्म होता है। ये कार्ट के आकार का है, जिसमें पहिये लगे हुए हैं। इसे आसानी से कहीं भी ले जाया जा सकता है। दाह संस्कार का काम 12 घंटे में पूरा हो जाता है। इसका कूलिंग समय 48 घंटे हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसमें कम लड़की का इस्तेमाल होता है। इसमें गर्मी बढ़ानेकम लकड़ी की खपत के लिए दोनों किनारों पर स्टेनलेस स्टील इन्सुलेशन होता है।
टेक ट्रेडिशनल मॉडल का इस्तेमाल
आईआईटी के प्रोफेसर ने कहा कि उन्होंने दाह संस्कार के लिए टेक ट्रेडिशनल मॉडल अपनाया है क्योंकि लकड़ी की चिता पर दाह संस्कार की मान्यता है। आमतौर पर अंतिम संस्कार में 2500 रुपए की लागत आती है। कई बार परिजनों ज्यादा लकड़ियों की वजह से शव को अधजला छोड़ देते हैं ऐसे में ये तकनीक बहुत कारगर साबित होगी।
आधे से भी कम लकड़ी में अंतिम संस्कार
चीमा बॉयलर्स लिमिटेड के एमडी हरजिंदर सिंह चीमा ने कहा कि वर्तमान महामारी की स्थिति को ध्यान में रखते हुए इस सिस्टम को अपनाया जा सकता है, जिससे कोरोना में मरने वालों को सम्मानजनक दाह संस्कार मिल सकेगा। इसमें खर्च भी बहुत कम है। उन्होंने कहा कि चूंकि यह पोर्टेबल है, इसलिए इसे संबंधित अधिकारियों की अनुमति से किसी भी जगह ले जाया जा सकता है।