सार

पश्चिम बंगाल में चुनाव खत्म होने के बाद एक बार फिर से राजनीतिक पारा चढ़ गया है। सीबीआई ने नारद स्टिंग ऑपरेशन से जुड़े केस में ममता के दो मंत्रियों फरहाद हकीम और सुब्रत मुखर्जी को गिरफ्तार कर लिया है। टीएमसी के दो विधायकों मदन मिश्रा और पूर्व मेयर शोभन चटर्जी की भी गिरफ्तारी हुई है। ऐसे में जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर पश्चिम बंगाल की राजनीति में भूचाल लाने वाला नारद स्टिंग ऑपरेशन क्या है?

नई दिल्ली. पश्चिम बंगाल में चुनाव खत्म होने के बाद एक बार फिर से राजनीतिक पारा चढ़ गया है। सीबीआई ने नारद स्टिंग ऑपरेशन से जुड़े केस में ममता के दो मंत्रियों फरहाद हकीम और सुब्रत मुखर्जी को गिरफ्तार कर लिया है। टीएमसी के दो विधायकों मदन मिश्रा और पूर्व मेयर शोभन चटर्जी की भी गिरफ्तारी हुई है। ऐसे में जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर पश्चिम बंगाल की राजनीति में भूचाल लाने वाला नारद स्टिंग ऑपरेशन क्या है?

नारद स्टिंग ऑपरेशन का बैकग्राउंड
मैथ्यू सैमुअल तहलका पत्रिका के पूर्व मैनेजिंग एडिटर थे। इस पत्रिका ने साल 2014 के आसपास एक स्टिंग ऑपरेशन प्लान किया। तब पश्चिम बंगाल में सारदा ग्रुप का फाइनेंशियल स्कैम सामने आया था। सैमुअल ने यहीं पर स्टिंग करने का फैसला किया। उन्हें लगा कि घोटाला काफी बड़ा है और इसमें और भी बहुत कुछ सामने आ सकता है।  

कैसे हुई स्टिंग ऑपरेशन की शुरुआत?
द टेलीग्राफ को दिए एक इंटरव्यू में मैथ्यू सैमुअल ने कहा कि वह इजरायली मोसाद जासूस माइक हरारी से प्रेरित थे। सैमुअल ने बताया कि स्टिंग ऑपरेशन के लिए एक टैक्सी ड्राइवर से मुलाकात की, जिसने उन्हें एक ऐसे व्यक्ति से मिलवाया, जिसे  टाइगर के नाम से जाना जाता था। सैमुअल का दावा है कि टाइगर ने शुरुआत में उन्हें कोलकाता नगर निगम के तत्कालीन डिप्टी मेयर इकबाल अहमद और आईपीएस अधिकारी एसएमएच मिर्जा से मिलवाया था। तब वे सुल्तान अहमद (2017 में उनकी मृत्यु हो गई, इकबाल के भाई), सुब्रत मुखर्जी, फिरहाद हकीम और अपरूपा पोद्दार से परिचित थे। मिर्जा ने उन्हें मदन मित्रा से भी मिलवाया। ऐसे ही एक के बाद एक कई बैठके हुईं।  

स्टिंग में 52 घंटे की रिकॉर्डिंग की गई थी
2014 के आसपास सैमुअल और उनके सहयोगी एंजेल अब्राहम ने 52 घंटों के फुटेज बनाया, जिसमें काकोली घोष दस्तीदार, प्रसून बनर्जी और सुल्तान अहमद और राज्य के मंत्री मदन मित्रा, सुब्रत जैसे कई प्रमुख राजनेता थे। वीडियो में अभिषेक बनर्जी के करीबी सहयोगी करण शर्मा के साथ सांसद अभिषेक बनर्जी के तत्कालीन पीए सुजय भाद्र उर्फ ​​शांतू नाम का एक और व्यक्ति भी देखा गया।  

स्टिंग ऑपरेशन में क्या निकला?
स्टिंग ऑपरेशन के जरिए वीडियो में दावा किया गया था कि टीएमसी के मंत्री, सांसद और विधायक डमी कंपनी के नुमाइंदों से कैश ले रहे हैं। कैश के बदले डमी कंपनी को लाभ पहुंचाने का सौदा हुआ था। 2016 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों से महीनों पहले एक निजी वेबसाइट पर वीडियो पब्लिश किए गए थे। जून 2017 तक सीबीआई, ईडी ने मामले की जांच की। तृणमूल कांग्रेस ने आरोपों को खारिज किया था और कहा था कि पैसे चंदे के रूप में लिए गए थे। 

स्टिंग का नाम नारद कैसे पड़ा?
स्टिंग ऑपरेशन के 2 साल बाद साल 2016 में टेप के एडिट पार्ट को जारी किया गया। इसे वेबसाइट naradanews.com के जरिए जनता के लिए जारी किया गया था। इसी लिए इसका नाम नारद पड़ा। 

सैमुअल ने शुरू में दावा किया था कि तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद केडी सिंह पूरे ऑपरेशन से अनजान थे, लेकिन बाद में उन्होंने अपने दावों को वापस ले लिया और कहा कि सिंह पूरे ऑपरेशन को जानते थे और इसके लिए पैसे भी दिए। उन्होंने दावा किया कि ऑपरेशन का बजट शुरू में 2,500,000 रुपए था। लेकिन बाद में बढ़कर 8,000,000 रुपए हो गया था। हालांकि सिंह ने स्टिंग में अपनी संलिप्तता से इनकार किया था।

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