सार

क्या आप जानते हैं धरती पर सबसे बुजुर्ग पेड़ कहां है। यह किस चीज का है और इसकी उम्र इस समय कितनी है। इस पेड़ को ग्रेट ग्रैंडफादर ट्री भी कहते हैं। 

नई दिल्ली। इस बारे में बहुत कम लोगों ने सोचा होगा। शायद हमारा ध्यान ही नहीं गया हो, जब तक कि इस खबर पर नजर नहीं गई कि पेड़ भी  बुजुर्ग होते होंगे। धरती पर कोई बुजुर्ग पेड़ भी होगा। यह किस चीज का होगा, कहां होगा और इसकी उम्र क्या होगी। वह देखने में कैसा लगता होगा। ऐसे कई सवाल मन में आने लगे होंगे।  

दरअसल, पेड़ों का हमारे जीवन में कितना महत्व है यह बताने की जरूरत नहीं है। अगर ये हमें ऑक्सीजन नहीं देते, हमारे जीवन का आधार नहीं होते, तो इंसान धरती पर शायद एक पेड़ भी नहीं रहने देता। मगर इसे पेड़ों के लिए अच्छा कहें या इंसानों के लिए ये हमारे जीवन का सबसे बहुमूल्य और उपयोगी तंत्र है। 

 

 

पेड़ों के बारे में तो आपने बहुत सुना और जाना होगा। बचपन से पढ़ते आ रहे होंगे, मगर आज हम बात करेंगे इस धरती पर मौजूद सबसे बुजुर्ग, जी हां, सबसे पुराने पेड़ के बारे में। यह कहां है, किस चीज का है और कितना पुराना है, ये सभी जानकारी आपको हम इस आर्टिकल  में बताएंगे। तो चलिए जानते हैं ग्रेट ग्रैंडफादर ट्री के बारे में। 

दक्षिण चिली में मौजूद है यह सबसे पुराना ग्रेट ग्रैंडफादर ट्री 
येल एनवायर्नमेंट 360 नाम के वेरिफाइड ट्विटर हैंडल से बीते 30 मई को कुछ तस्वीरें पोस्ट करके यह बताया गया कि ये दुनिया का सबसे पुराना पेड़ है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि दक्षिण चिली के एलर्स कोस्तेरो नेशनल पार्क में मौजूद यह पेड़ धरती का सबसे बुजुर्ग पेड़ है और इसकी उम्र पाच हजार 484 साल है। यह पेड़ एक साइप्रस ट्री है और इसे हिंदी में सनोवर ट्री भी कहते हैं। 

 

 

कंप्यूटर मॉडल की आधुनिक तकनीक से इस पेड़ की जानकारी जुटाई गई 
फ्रांस की राजधानी पेरिस में क्लाइमेट एंड एनवायर्नमेंटल साइंसेज लेबोरेटरी के इकोलॉजिस्ट जोनाथन बारिकविच की मानें तो यह ग्रेट ग्रैंडफादर ट्री एक विलुप्त होती प्रजाति का पेड़ है। वैज्ञानिकों ने इसकी उम्र और तमाम जानकारियां आधुनिक तकनीक के जरिए पता की हैं। उन्होंने कहा कि जिस कंप्यूटर तकनीक से इसके विकास की 80 प्रतिशत जानकारी पता लगी है, उसके मुताबिक पेड़ की उम्र पांच हजार 484 वर्ष है। सिर्फ 20 प्रतिशत ऐसी संभावना हो सकती है कि इसकी उम्र इससे कम हो। इस ग्रेट ग्रैंडफादर ट्री के तने का व्यास चार मीटर का है। ऐसे में वैज्ञानिकों को इसके रिंग्स यानी वलय, जिसे अंदरूनी छल्ले भी कहते हैं, की गणना करने में परेशानी हुई। 

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