सार

आज (13 अगस्त, शुक्रवार) नागपंचमी (Nagpanchami) है। इस दिन नागदेवता को प्रसन्न करने के लिए पूजा, मंत्र जाप व उपाय आदि किए जाते हैं। मान्यता है कि इस दिन ऐसा करने से ग्रहों से संबंधित अशुभ फलों में तथा काल सर्प दोष (Kaal Sarp Dosh) के अशुभ फल में भी कमी आती है।

उज्जैन. धर्म ग्रंथों में नागों को प्रसन्न करने के लिए अनेक मंत्रों, स्तुतियों व स्त्रोतों के बारे में बताया गया है। विधि-विधान से इनका जाप करने पर कई परेशानियों से बचा जा सकता है। नागपंचमी (Nagpanchami 2021) पर इन मंत्रों का जाप करने का विशेष फल मिलता है। इनमें से कुछ मंत्र इस प्रकार हैं… 

सर्प सूक्त (Sarp Sukt)
ब्रह्मलोके च ये सर्पा शेषनाग पुरोगमाः। नमोऽस्तु तेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीता: मम सर्वदा ॥
विष्णु लोके च ये सर्पाः वासुकिः प्रमुखादयः। नमोऽस्तु तेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा ॥
काद्रवेयाश्च ये सर्पाः मातृभक्ति परायणाः। नमोऽस्तु तेभ्य: सर्पेभ्यः सुप्रीता: मम सर्वदा ॥
इन्द्रलोके च ये सर्पाः तक्षको प्रमुखादयः। नमोऽस्तु तेभ्य: सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा ॥
सत्यलोके च ये सर्पाः वासुकिना च रक्षिताः। नमोऽस्तु तेभ्यः सर्पेभ्य सुप्रीता: मम सर्वदा ॥
मलये चैव ये सर्पाः कर्कोट: प्रमुखादयः। नमोऽस्तु तेभ्यः सर्पेभ्यःसुप्रीता: मम सर्वदा ॥
समुद्रतीरे ये सर्पाः ये सर्पाः जलवासिनः| नमोऽस्तु तेभ्यः सर्पेभ्यःसुप्रीता: मम सर्वदा ॥
रसातले च ये सर्पा अनन्तादि महाबलाः। नमोऽस्तु तेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा || 
सर्पसत्रे तु ये सर्पा आस्तिकेन च रक्षिताः। नमोऽस्तु तेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा ॥
धर्मलोके च ये सर्पा:वैतरण्यां समाश्रिताः। नमोऽस्तु तेभ्यःसर्पेभ्यःसुप्रीता: मम सर्वदा ॥
पर्वताणां च ये सर्पा दरीसन्धिषु संस्थिताः। नमोऽस्तु तेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा ॥
खाण्डवस्य तथा दाहे स्वर्ग ये च समाश्रिताः। नमोऽस्तु तेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा ॥
पृथिव्यां चैव ये सर्पा ये च साकेतवासिनः। नमोऽस्तु तेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताःमम सर्वदा ॥
सर्वग्रामेपु ये सर्पाः वसन्ति सर्वे स्वच्छन्दाः। नमोऽस्तु तेभ्यः सर्पेभ्यःसुप्रीता: मम सर्वदा ॥
ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पाः प्रचरन्ति च। नमोऽस्तु तेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा ॥

अर्थात्- ब्रह्म लोक के उन सर्पों, जिनमें शेषनाग प्रमुख हैं; विष्णु लोक के उन सर्पो, जिनमें वासुकि नाग प्रमुख हैं: कद्रू के वे नाग पुत्र जो मातृ भक्त हैं; इन्द्र लोक के उन सांपों, जिनमें तक्षक प्रमुख हैं; सत्य लोक के उन सर्पों, जिनकी वासुकि नाग द्वारा रक्षा की जाती है; मलयाचल के उन सांपों, जिनमें कर्कोटक प्रमुख हैं; समुद्र के तट पर तथा जल में रहने वालों, रसातल के उन बलवान सर्पों, जिनमें अनन्त प्रमुख हैं; आस्तीक के द्वारा जनमेजय के नागयज्ञ से बचाये गये नाग-सर्पो; वैतरणी नदी में रहने वाले धर्म लोक के सर्पो: पर्वतों की दरारों में रहने वाले सर्पो; खाण्डव वन की आग में जल कर मरने से स्वर्ग लोक में गये सर्पों: पृथ्वी पर और साकेत में रहने वाले सर्पों तथा गाँवों और जंगलों में स्वतंत्रता पूर्वक रहने और विचरण करने वाले सभी सर्पों को नमस्कार है। ये सभी नाग-सर्प सदा हम पर प्रसन्न रहें॥

नवनाग स्त्रोत (Navnag stotra)
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शंखपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा॥
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात: काले विशेषत:।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्॥
अर्थात्- अनन्त, वासुकि, शेषनाग, पद्मनाभ, कम्बल, शंखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक और कालिया ये महान आत्मा वाले नौ नागों के नाम हैं। जो लोग नित्य ही सायंकाल और विशेष रूप से प्रातःकाल इन नामों का उच्चारण करते हैं, उन्हें सर्प और विष से कोई भय नहीं रहता तथा उनकी सब जगह विजय होती है, अर्थात् सफलता मिलती है।

अन्य मंत्र
सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।
ये च हेलिमरीचिस्था ये न्तरे दिवि संस्थिता:।।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।'
अर्थात् - संपूर्ण आकाश, पृथ्वी, स्वर्ग, सरोवर-तालाबों, नल-कूप, सूर्य किरणें आदि जहां-जहां भी नाग देवता विराजमान है। वे सभी हमारे दुखों को दूर करके हमें सुख-शांतिपूर्वक जीवन दें। उन सभी को हमारी ओर से बारंबार प्रणाम हो।

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