सार
फिलहाल इन सब को लेकर सतीश चंद्र मिश्रा की तरफ से अभी कोई अधिकारिक बयान नहीं आया है। लेकिन चर्चा यह भी है कि कभी भी उनके खिलाफ बसपा में कार्रवाई हो सकती है। यूपी की राजनीति में सतीश चंद्र मिश्रा का बड़ा कद है। और इस बात से भी मूह नहीं फेरा जा सकता कि बसपा के लिए वो किनते उपयोगी रहे हैं। देखने वाली बात यह होगी कि अब सतीश चंद्र मिश्रा आने वाले समय में क्या बड़ा कदम उठाते हैं।
लखनऊ: यूपी में राजनीति किसी न किसी बड़े चेहरे की वजह से चर्चा में बनी रहती है। इस बार बसपा के महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा की का नाम लगातार चर्चा में बना हुआ है। बीते कुछ दिनों से सतीश चंद्र मिश्रा का बसपा छोड़ कर जाने का मैसेज सोशल मीड़िया पर चल रहा है। दरअसल बसपा द्वारा जारी की गई 40 स्टार प्रचारकों की सूची में सतीश चंद्र मिश्रा का न होने की वजह से लोगों ने कयास लगाना शुरू कर दिया। और इसी के बाद तरह-तरह के मैसेज सामने आने लगे।
फिलहाल इन सब को लेकर सतीश चंद्र मिश्रा की तरफ से अभी कोई अधिकारिक बयान नहीं आया है। लेकिन चर्चा यह भी है कि कभी भी उनके खिलाफ बसपा में कार्रवाई हो सकती है। यूपी की राजनीति में सतीश चंद्र मिश्रा का बड़ा कद है। और इस बात से भी मूह नहीं फेरा जा सकता कि बसपा के लिए वो किनते उपयोगी रहे हैं। देखने वाली बात यह होगी कि अब सतीश चंद्र मिश्रा आने वाले समय में क्या बड़ा कदम उठाते हैं।
तबीयत खराब होने की वजह से सक्रिय नहीं
सतीश चंद्र मिश्रा इन दिनों मीडिया से बातचीत नहीं कर रहे हैं। हालांकि, उनसे जुड़े करीबी बताते हैं कि वह तबीयत खराब होने की वजह से पार्टी में सक्रिय नहीं है। वह छुट्टी मनाने परिवार के साथ 10 दिनों तक बाहर जाने वाले हैं। इसके बाद वह आगे सभी से मुलाकात करेंगे। करीबियों ने तो यहां तक दावा किया कि वह बसपा में हैं। बसपा में ही रहेंगे।
सतीश चंद्र मिश्रा का सफर
2022 के चुनाव में जब बसपा ने प्रचार की शुरुआत की सबसे पहले सतीश चंद्र मिश्रा ने बिकरु कांड के मामले में जेल में बंद खुशी दुबे की वकालत की। सतीश चंद्र मिश्रा के बयान के बाद ब्राह्मण पॉलिटिक्स में खुशी दुबे का मामला तूल पकड़ता चला गया। सतीश चंद्र मिश्रा ने यहां तक कहा कि अगर परिवार कहेगा तो हम उनका केस भी लड़ेंगे। हालांकि, अभी खुशी दुबे बाराबंकी जेल में बंद है। चुनाव बीत गया है। उसके बाद किसी ने कोई सुध नहीं ली।
बसपा की सरकार बनवाने में निभाई थी अहम भूमिका
सतीश चंद्र मिश्रा ने योगी सरकार को घेरते हुए सबसे ज्यादा ब्राह्मणों की हत्या का मामला उठाया था। 2007 में बीएसपी की सरकार बनवाने के लिए सोशल इंजीनियरिंग फार्मूला उन्होंने ही पहली बार यूपी में सफल करवाया था। पहली बार उत्तर प्रदेश में 2007 की बहुजन समाज पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी। जिसका सबसे ज्यादा श्रेय सतीश चंद्र मिश्रा को दिया गया था।
बार कौंसिल के चुनाव से रखा राजनीति में कदम
सतीश चंद्र मिश्र का जन्म 9 नवंबर 1952 को उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम जस्टिस त्रिवेणी सहाय मिश्रा और मां का नाम शकुंतला मिश्रा है। सतीश चंद्र मिश्रा ने कानपुर के पीपीएन कॉलेज से पढ़ाई की है। उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन और उसके बाद एलएलबी किया।
सतीश चंद्र मिश्र की शादी 4 दिसंबर 1980 को कल्पना मिश्रा के साथ हुई थी। उनके 5 बच्चे हैं। इनमें एक बेटा और 4 बेटियां हैं। विवाह के बाद लंबे समय तक सतीश चंद्र मिश्रा वकालत की प्रैक्टिस करते रहे। इसके बाद वह बार काउंसिल की राजनीति में सक्रिय हुए। जिसके तहत सतीश चंद्र मिश्रा को 1998 में पहली बार बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश का अध्यक्ष चुना गया। वह 1999 तक इस पद पर थे। मई 2002 से लेकर सितंबर 2003 तक वह उत्तर प्रदेश के एडवोकेट जनरल थे।
बार काउंसिल की राजनीति के बसपा का दामन थामा
बार काउंसिल की राजनीति करने के बाद सतीश चंद्र मिश्रा ने बसपा का दामन थाम लिया था। वह 2004 में पहली बार बसपा की तरफ से उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए नामित किए गए। साथ ही 2004 में बसपा ने उन्हें पार्टी का अखिल भारतीय महासचिव नियुक्त किया। 2006 में उन्हें युवा संसदीय मंच का सदस्य भी चुना गया।
2010 में सतीश चंद्र मिश्र दूसरी बार राज्यसभा के लिए चुने गए
2010 में सतीश चंद्र मिश्र दूसरी बार राज्यसभा के लिए चुने गए। इस दौरान राज्यसभा की कई समितियों के सदस्य भी रहे। 2016 में वह तीसरी बार राज्यसभा के लिए चुने गए हैं। वह वर्तमान में भी बसपा के अखिल भारतीय महासचिव हैं। इसके साथ ही वह यूपी में मायावती सरकार के दौरान ताकतवर कैबिनेट मंत्री भी रहे।