देश में इन दिनों एक देश, एक चुनाव का मुद्दा चर्चा में है। सरकार चाहती है कि अब देश में केंद्र और राज्यों के चुनाव साथ हों। इसके लिए एक समिति गठित की गई है।
केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति गठित की है, जो जल्द ही अपनी रिपोर्ट सौंपेगी।
इसके बाद सरकार सितंबर में होने वाले संसद के विशेष सत्र के दौरान ‘एक देश, एक चुनाव’ मुद्दे पर चर्चा कर बिल ला सकती है।
बता दें कि भारत में केंद्र और अलग-अलग राज्यों में होने वाले चुनाव पर काफी खर्च आता है, जिसका बोझ कहीं न कहीं आम आदमी पर ही पड़ता है।
सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के मुताबिक, 2019 में हुए आम चुनाव पर 55,000 करोड़ रुपये का खर्च आया था। ये रकम 2016 में अमेरिका में हुए राष्ट्रपति चुनावों से भी कहीं ज्यादा है।
पिछले लोकसभा चुनावों में हर एक वोटर पर करीब 8 डॉलर यानी 664 रुपए का खर्च आया था, जबकि देश में आधी से ज्यादा आबादी रोजाना 3 डॉलर यानी 250 रुपए से भी कम पर गुजारा करने को मजबूर है।
सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के मुताबिक 1998 से 2019 के बीच चुनावी खर्च में 6 गुना इजाफा हुआ है। 1998 में ये रकम जहां 9000 करोड़ रुपये थी, वहीं 2019 में 55,000 करोड़ रुपये पहुंच गई।
2022 में चुनाव आयोग ने पांच राज्यों पंजाब, मणिपुर, उत्तर प्रदेश, गोवा और उत्तराखंड में हुए विधानसभा चुनावों में हुए खर्च के आंकड़े जारी किए थे।
इसके मुताबिक, BJP ने इन 5 राज्यों में चुनाव प्रचार पर जहां 340 करोड़ रुपये खर्च किए, वहीं कांग्रेस ने 190 करोड़ रुपये लुटा दिए। ये वो आंकड़े हैं जो पार्टियों ने चुनाव आयोग को दिए।