भारत के विज्ञापन जगत में अगर किसी ने आम लोगों की भाषा को भावनाओं में बदला, तो वो थे पीयूष पांडे। उन्होंने ऐसे शब्द गढ़े जो सिर्फ विज्ञापन नहीं बने, बल्कि लोगों के दिलों में बस गए।
पीयूष पांडे की बनाई टैगलाइनें आज भी चाय की दुकानों से लेकर टीवी स्क्रीन तक गूंजती हैं। जानिए उनके 5 सबसे यादगार और अमर स्लोगन, जिन्होंने भारत के विज्ञापन इतिहास को बदल दिया।
इस एक लाइन ने चॉकलेट को बच्चों से निकालकर हर उम्र की खुशी का हिस्सा बना दिया। पीयूष पांडे ने दिखाया कि चॉकलेट सिर्फ स्वाद नहीं, जज्बात हैं, जो कुछ खास होने का अहसास दिला जाते हैं।
पीयूष पांडे ने इस ब्रांड को सिर्फ गोंद नहीं रहने दिया, बल्कि रिश्तों का प्रतीक बना दिया। उनके एड गांव की बसों, ट्रकों और आम जिंदगी के मजेदार लम्हों से जुड़े।
राजनीतिक इतिहास का शायद सबसे असरदार नारा, जो एक अभियान से बढ़कर आंदोलन बन गया। पीयूष पांडे के इस स्लोगन ने सरल शब्दों में ऐसा रिदम बनाया कि वो हर जुबान पर चढ़ गया।
इस टैगलाइन से पीयूष पांडे ने दिखाया कि घर सिर्फ दीवारों का ढांचा नहीं होता, बल्कि हर दीवार के पीछे एक कहानी छिपी होती है। इस लाइन ने Asian Paints को लोगों की भावनाओं से जोड़ दिया।
इस विज्ञापन ने मरम्मत को रिश्तों को जोड़ने की भावना से जोड़ा। पीयूष पांडे ने सिखाया कि विज्ञापन सिर्फ प्रोडक्ट बेचने के लिए नहीं होते, वो दिलों को जोड़ने का जरिया भी बन सकते हैं।
उन्होंने साबित किया कि बेहतरीन विज्ञापन वो होता है, जो दिल को छू जाए, दिमाग पर जोर न डाले। उनके शब्दों ने सिखाया कि दिल से निकले शब्द, सीधा दिल में उतरते हैं।