संत - महात्मा और पशुओं को दिल से प्यार करने वाले लोग अक्सर मांसाहार की जगह अनाज खाने को प्रिफर करते हैं।
जानकार लोग भी दालों में सबसे ज्याद प्रोटीन बताते हुए इसे मांसाहार के विकल्प के रूप में एडवाइज करते हैं।
मसूर दाल से हमारे घरों में चीला, पकौड़े और कबाब जैसे स्वादिष्ट व्यंजन बनाए जाते हैं। खड़ी मूसर तो खिचड़ी बनाने में इस्तेमाल की जाती हैं।
लेकिन क्या आप जानते है कि खेतों में उगने वाली एक दाल को भी मांसाहार के बराबर माना गया है।
आप अक्सर मसूर की दाल खरीद कर लाए होंगे, लेकिन हिंदू पुराणों के मुताबिक इसे मांसाहारी बताया गया है।
लेखों के मुताबिक भगवान विष्णु ने स्वरभानु दैत्य पर सुदर्शन चक्र चलाया था। जिससे उसका धड़ औऱ सिर अलग हो गया था, इस दौरान जो रक्त गिरा उससे ये मसूर दाल उत्पन्न हुई थी।
किवदंतियों के मुताबिक ये भी कहा जाता है राजा सहस्त्रबाहु के बाणों से कामधेनु गाय घायल हो गई थी, उसका जहां- जहां रक्त गिरा वहां मसूर की दाल पैदा हुई ।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार मसूर की दाल पूजन आदि में वर्जित है। वहीं ब्राम्हण और इसका दान लेना भी स्वीकार नहीं करते हैं। संत- महात्मा ने इसे तामसिक प्रवृत्ति वाला बताया है।
मसूर की दाल खेतों में पैदा होती है, ये भी समान्य अनाज है, यहां हमारी मंशा केवल मान्यताओं और किवदंतियों के मुताबिक जानकारी देना है। हमारा मकसद अंधविश्वास फैलाना नहीं है।