होली का त्योहार ऐसा है जब हर घर में मीठी और टेस्टी गुजिया बनाई जाती है। क्योंकि बिना गुजिया के होली अधूरी सी मानी जाती है। लेकिन गुजिया की परंपरा होली के मौके पर ही क्यों होती है?
होली पर गुजिया बनाने की परंपरा सदियों पुरानी है। यह मिठाई भारतीय नहीं है बल्कि तुर्की से आई है। तुर्की की फेमस मिठाई बकलावा को देखकर ही भारतीयों ने गुजिया की परंपरा शुरू की थी।
भारत में गुजिया पहली बार 16वीं शताब्दी बनाई गई थी। इसे सबसे पहले उत्तर प्रदेश राज्य के बुंदेलखंड शहर में बनाया गया। आज यह मिठाई पूरे देश में प्रसिद्ध है।
तुर्की में बकलावा को सिर्फ शाही परिवारों के लिए ही बनाया जाता था। बकलावा को बनाने के लिए मैदे की कई परतें बनाई जाती हैं, इनमें ड्राई फ्रूट्स, चीनी और शहद फिलिंग करते हैं।
माना जाता है कि होली के मौके पर गुजिया बनाने की परंपरा वृंदावन के राधा रमण मंदिर से शुरू हुई है। साल 1542 में बना यह मंदिर देश के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है।
मान्यताओं के मुताबिक फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को बुंदेलखंड के निवासियों ने भगवान कृष्ण को आटे की लोई में चाश्नी डालकर भोग लगाया था। तभी से होली पर गुजिया की परंपरा शुरु हुई।
ऐसा भी माना जाता है कि भगवान कृष्ण को गुजिया बेहद पसंद थी, जिसके चलते मथुरा और वृंदावन के लोग भगवान कृष्ण को इसका भोग लगाते थे।