जब फेफड़ों में कोशिकाएं नियंत्रण से बाहर हो जाती है, तो यह धीरे-धीरे कैंसर का रूप ले लेती हैं। जिसका प्रमुख कारण धूम्रपान बताया जाता है।
जिन लोगों के परिवार में लंग कैंसर की फैमिली हिस्ट्री होती है, उनमें इसके होने के चांसेस ज्यादा होते हैं। भले ही परिवार के अन्य सदस्य स्मोकिंग करते हो या नहीं।
सेकंड हैंड स्मोकिंग मतलब जो लोग ऐसे लोगों के साथ रहते हैं जो धूम्रपान करते हैं वह तंबाकू के धुएं में मौजूद कार्सिनोजेन्स को सांस के जरिए अंदर ले लेते हैं।
रेडॉन एक नेचुरल रूप से पाई जाने वाली रेडियोधर्मी गैस है, जो घरों के अंदर तक घुस जाती है। रेडॉन के संपर्क में लंबे समय तक रहने से फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
कुछ व्यावसायिक खतरे जैसे- एस्बेस्टस, आर्सेनिक, क्रोमियम, निकेल और अन्य कार्सिनोजेन के संपर्क में आने से फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।
पार्टिकुलेट मैटर और अन्य वायु प्रदूषण के लंबे समय तक संपर्क में रहने से फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। खासकर दिल्ली जैसी जगह में जहरीली हवा लंग कैंसर को बढ़ावा दे सकती है।
फेफड़ों की कुछ बीमारियां जैसे क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) और पल्मोनरी फाइब्रोसिस, फेफड़ों के कैंसर के खतरे को बढ़ा सकती हैं।
कुछ लोग सिगरेट स्मोकिंग तो छोड़ देते हैं। लेकिन इसकी जगह वेपिंग, निकोटीन या ई-सिगरेट का यूज करते हैं। यह भी लंग कैंसर के खतरे का बढ़ाती है।
कई रिपोर्ट में सामने आ चुका है कि जो लोग चूल्हे पर खाना बनाते हैं उसके स्मोक से भी लंग कैंसर का खतरा बढ़ जाता है, क्योंकि हानिकारक धुआं शरीर के अंदर चला जाता है।