अपनी तरह के पहले स्टडी में वैज्ञानिकों ने इंसान के पीनस में माइक्रोप्लास्टिक की खोज की है। स्टडी में 6 में से 5 पीनस के टिश्यू सैंपल में माइक्रोप्लास्टिक पाया गया।
इससे पुरुष प्रजनन स्वास्थ्य विशेष रूप से ED (Erectile Dysfunction) पर इसके असर को लेकर सवाल उठ रहे हैं। इससे पहले टेस्टिकल्स और सीमन में माइक्रोप्लास्टिक मिले थे।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इम्पोटेंस रिसर्च में प्रकाशित स्टडी से पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक का इंसान की सेहत पर कितना व्यापक असर पड़ रहा है।
शोधकर्ताओं की टीम ने मियामी यूनिवर्सिटी में अगस्त और सितंबर 2023 के बीच इरेक्टाइल डिसफंक्शन से संबंधित सर्जरी करवाने वाले छह पुरुषों से ऊतक के नमूने लिए।
वैज्ञानिकों ने केमिकल इमेजिंग का उपयोग कर नमूनों का विश्लेषण किया। इस दौरान उन्हें पांच नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक्स मिले।
वैज्ञानिकों ने बताया कि पीनस के ऊतकों में सात प्रकार के माइक्रोप्लास्टिक पाए गए। इनमें पॉलीइथिलीन टेरेफ्थेलेट और पॉलीप्रोपाइलीन सबसे अधिक थे।
पॉलीइथिलीन टेरेफ्थेलेट का इस्तेमाल प्लास्टिक की बोतलों और फूड पैकेजिंग में होता है। पॉलीप्रोपाइलीन आमतौर पर प्लास्टिक की बोतल के ढक्कनों में पाया जाता है।
शोध का नेतृत्व करने वाले डॉ. रंजीत रामासामी ने बताया कि जिस एक व्यक्ति के सैंपल में माइक्रोप्लास्टिक नहीं पाया गया वह प्लास्टिक का इस्तेमाल बहुत कम करता है।
माइक्रोप्लास्टिक 0.2 इंच से छोटे प्लास्टिक होते हैं। ये खाने, पीने, सांस लेने और यहां तक कि शारीरिक संपर्क से भी शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।
एक स्टडी के अनुसार इरेक्शन के दौरान बहुत अधिक खून के प्रवाह के कारण मानव पीनस अतिसंवेदनशील हो सकता है।
वैज्ञानिकों को संदेह है कि इरेक्शन के दौरान रक्त वाहिकाओं के फैलाव से ऐसा वातावरण बन सकता है जहां शरीर में खून के साथ घूम रहे माइक्रोप्लास्टिक आपस में जुड़ सकते हैं।
ऐसा होने पर ये पीनस के ऊतकों में जमा हो सकते हैं। रामासामी ने कहा है कि इसे पूरी तरह से समझने के लिए अभी और रिसर्च किया जाना बाकी है।
यह पता लगाने की जरूरत है कि क्या माइक्रोप्लास्टिक्स का संबंध ED से है। क्या कोई स्तर है जिसके बाद यह ED की वजह बन सकता है। किस प्रकार के माइक्रोप्लास्टिक्स ऐसा करते हैं।