25 जुलाई 1978 को पहली ऐसी बच्ची का जन्म हुआ था, जो आईवीएफ यानी कि इन विट्रो फर्टिलाइजेशन से हुई थी। इसके बाद हर साल 25 जुलाई को ही आईवीएफ डे मनाया जाने लगा।
आईवीएफ डे को लेकर लोगों के कई सारे मिथक हैं उन्हीं को दूर करने के लिए वर्ल्ड आईवीएफ डे मनाया जाता है, ताकि लोगों को आईवीएफ के बारे में जागरूक किया जा सके।
आईवीएफ की प्रोसेस में महिलाओं के एग्स में पुरुष का स्पर्म डालकर उसे लैब में मैच्योर होने तक रखा जाता है और उसके बाद फिर महिला के गर्भ में इंप्लांट किया जाता है।
ये आईवीएफ में भ्रूण के इंप्लांटेशन से पहले की एक प्रक्रिया है जिसमें जेनेटिक डिसऑर्डर की जांच की जाती है। यह टेस्ट बच्चों में जन्मजात बीमारी और आनुवंशिक डिसऑर्डर का पता लगाता है।
अनुवांशिक विकार किसी बच्चे में डीएनए की असमानताओं के कारण हो सकते हैं। जिसमें सिस्टिक फाइब्रोसिस, हंटिंगटन रोग, टे-सैक्स रोग और सिकल सेल एनीमिया शामिल हैं।
इस टेस्ट से IVF की सफलता दर और बच्चों को अनुवांशिक विकार से बचाने के रास्ते खुल जाते हैं, इसलिए महिला के भ्रूण में बच्चों को इंप्लांट करने से पहले यह टेस्ट जरूरी है।
PGT-A (एनीप्लोइडीज के लिए प्रीइम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग), PGT-M (मोनोजेनिक विकारों के लिए प्रीइम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग), PGT-SR (स्ट्रक्चर रिअरेंजमेंट के लिए)
ये टेस्ट माता-पिता को IVF को चुनने में मदद करता है। जेनेटिक से जुड़ी जानकारी देता है। इसके लिए विशेषज्ञों की जरूरत है, ताकि अनुवांशिक समस्याओं का समय रहते पता लगाया जा सकें।