आलता को भाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। कुंवारी लड़कियों से लेकर शादीशुदा महिलाएं अपने पैरों में लगाती हैं।
नवविवाहित महिलाएं और दुल्हनें अपने पैरों में आलता लगाकर इसे सुहाग का प्रतीक मानती हैं। शादी और पर्व त्योहार में इसे लगाया जाता है। कुंवारी कन्या भी इसे लगाती हैं।
देवी लक्ष्मी और दुर्गा के चरणों में भी लाल रंग की छवि होती है, इसलिए इसे स्त्रियों के सौभाग्य से जोड़ा जाता है। हालांकि आलता कब से लगाना शुरू किया इसकी कोई सटीक जानकारी नहीं।
आलता का जिक्र पौराणिक कथाओं में किया गया है। श्रीकृष्ण राधा रानी का श्रृंगार करते वक्त उनके पैरों में आलता लगाते थे। इसका इतिहास महाभारत काल से चला आ रहा है।
लाल रंग पवित्रता और दिव्य स्त्री ऊर्जा का प्रतीक है। शादी में, पूजापाठ में बिना आलता महिलाएं बैठती नहीं हैं। शादीशुदा महिलाओं के लिए आलता लगाना जरूरी माना गया है।
आलता में एंटीसेप्टिक गुण होते हैं, जो पैरों को फंगल इंफेक्शन और खुजली जैसी समस्याओं से बचाते हैं।गर्मी में आलता लगाने से पैरों को ठंडक मिलती है।मेंटल पीस भी आलता लगाने से मिलता है।
सबसे पहले पैरों को अच्छे से धोकर सुखा लें। एक ब्रश या कॉटन बॉल की मदद से आलता को पैरों के किनारे और ऊपरी हिस्से में लगाएं। तस्वीरों में कुछ डिजाइंस आप देख सकते हैं।