असली बनारसी सिल्क साड़ियां हाथ से बुनी जाती हैं और इन पर बारीक कढ़ाई होती है।साड़ी को पलटकर देखें अगर पीछे की तरफ तैरते हुए धागे दिखें, तो यह असली हाथ से बुनी हुई साड़ी है।
असली बनारसी सिल्क साड़ी थोड़ी भारी होती है, क्योंकि इनमें खालिस सिल्क धागे और असली ज़री (सोने-चांदी की कढ़ाई) का काम होता है। अगर कोई साड़ी बहुत हल्की हो तो वह नकली हो सकती है।
असली बनारसी साड़ियों में खालिस सोने-चांदी की ज़री का इस्तेमाल किया जाता है, जबकि नई बनारसी साड़ियों में नकली ज़री का उपयोग किया जाता है। इसे पहचानने के लिए ज़री को हल्का सा रगड़ें।
अगर अंदर से लाल या चांदी जैसा धागा निकले, तो ज़री असली है। अगर सफेद या प्लास्टिक का धागा निकले तो यह नकली जरी है।
साड़ी के एक हिस्से को छोटी अंगूठी से गुजारें। अगर यह बिना अटके आसानी से निकल जाए तो असली सिल्क साड़ी है। अगर फंस जाए या मुड़ने लगे तो यह मिलावटी सिल्क हो सकती है।
असली बनारसी साड़ियों में फ्लोरल फोलिएज, बेल आम्र, अंबी और मुगल डिजाइन होते हैं, जो उनकी खास पहचान है।
हर असली बनारसी सिल्क साड़ी में GI टैग होता है, जो इस बात की गारंटी देता है कि यह साड़ी वाराणसी, भारत में बनी है। खरीदते समय हमेशा इस प्रमाणपत्र की जांच करें।
असली बनारसी सिल्क साड़ी महंगी होती है, क्योंकि इसे हाथ से बुना और कढ़ाई किया जाता है।