सिंदूर का इतिहास हजारों साल पुराना है। वैदिक काल में पूजा-पाठ और धार्मिक कामों में इसका इस्तेमाल किया जाता है। इस देवी-देवताओं को चढ़ाया जाता था।
रामायण में सीता मईया सिंदूर को अपने माथे पर लगाती थी। एक बार जब हनुमान ने माता सीता से पूछा कि आप सिंदूर क्यों लगाती हैं। तो उन्होंने बताया कि यह इससे राम प्रसन्न होते हैं।
वहीं कहा जाता है कि माता पार्वती भी भगवान शिव को बुरी शक्तियों से बचाने के लिए सिंदूर धारण करती थीं।
महाभारत में द्रौपदी के सिंदूर लगाने का जिक्र है। जिसके बाद इसे सुहाग की निशानी मानी जानी लगी। शादीशुदा महिलाएं सिंदूर लगाए बैगर नहीं रहती हैं।
विवाह तभी पूरा होता है जब दूल्हा दुल्हन के मांग में सिंदूर भरता है। इसके बाद महिलाएं कभी अपनी मांग से इसे नहीं हटाती हैं।
कहा जाता है कि सिंदूर लगाने से पति की उम्र लंबी होती है। शादीशुदा जिंदगी हमेशा खुशहाल बनी रहती है।
सिंदूर का लाल रंग शक्ति, समर्पण और प्यार का प्रतीक माना जाता है। यह महिला के जीवन में उसके पति की उपस्थिति और उनके रिश्ते की पवित्रता तो दिखाता है।
सिंदूर में पारा और हल्दी का मिश्रण होता है। आयुर्वेद की मानें तो पारा शरीर में ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करता है और मेंटल पीस देता है। माथे के बीच में लगाने से ब्रेन बैलेस रहता है।