कांजीवरम साड़ी इंडिया की पहचान हैं। इसे खास अवसरों पर पहना जाता है। बात अगर ऑरिजनल कांजीवरम की करें तो इसकी बुनाई में गोल्ड और सिल्वर का इस्तेमाल होता है।
कांजीवरम साड़ी में सोने और चांदी के तारों का उपयोग प्राचीन समय से ही होता आ रहा है। इन तारों का इस्तेमाल साड़ी की बॉर्डर, पल्लू, और बीच के बूटे या आर्टवर्क में किया जाता है।
कांजीवरम साड़ी के बॉर्डर और पल्लू की बुनाई के दौरान सोने और चांदी के तारों का इस्तेमाल किया जाता है। जिससे वह भव्य और अट्रैक्टिव नजर आती हैं।
कांजीवरम साड़ी के बीच में भी सोने और चांदी के तारों से डिजाइंस और बूटे बनाए जाते हैं। इन डिज़ाइनों में फूलों, पत्तियों, और अन्य पारंपरिक पैटर्न्स होता है।
कांजीवरम साड़ी में सोने और चांदी के तारों का इस्तेमाल कारीगर की शैली और डिमांड पर निर्भर होता है। साड़ी में 100-200 मीटर तक चांदी या गोल्ड के तार लगते हैं।
हालांकि आज के दौर में बन रही कांजीवरम साड़ी हल्की और भारी दोनों होती है। इसकी बुनाई में कम से कम 40 प्रतिशत चांदी और 0.5 प्रतिशत सोना होता है। साड़ी का वजन 1 किलो सकता है।
कांजीवरम साड़ी बनाने की शुरुआत कांचीपुरम में हुई थी। कांचीपुरम में बुनाई की इस परंपरा को ऋषि मार्कण्डेय के वंशजों ने शुरू किया था। कांजीवरम साड़ी को कांचीपुरम साड़ी भी कहा जाता है।