रींद पोश कानी बुनाई की कला कश्मीर में मुगल काल से है। यह कला मुगल सम्राटों द्वारा प्रोत्साहित की गई थी, खासकर अकबर के शासनकाल में। यह तब से कश्मीरी संस्कृति का अहम हिस्सा है।
एक रींद पोश कानी शॉल को बनाने में 6 महीने से लेकर 2 साल तक का समय लग सकता है, क्योंकि हर धागा और रंग एक विशेष डिजाइन के अनुरूप बुना जाता है।
"रींद" का मतलब जटिल पैटर्न या डिजाइन होता है, और "पोश" का अर्थ होता है कपड़ा। कश्मीरी भाषा में "कानी" का अर्थ है छोटे लकड़ी के टुकड़े या स्पूल, जिनका उपयोग बुनाई में किया जाता है।
कानी शॉल में पारंपरिक कश्मीरी पैटर्न जैसे बूटे, फूल और पेड़-पौधों की आकृतियाँ होती हैं, जिसे बुनाई में उतारना बहुत कठिन होता है, क्योंकि इसके डिजाइन बहुत कठीन और विस्तृत होते हैं।
रींद पोश कानी शॉल की कीमत बहुत अधिक होती है, क्योंकि इसे बनाने की प्रक्रिया कठिन और समय-साध्य है। इसे बनाना किसी मास्टरपीस को तैयार करने जैसा है, इसलिए इसका आर्थिक महत्व अधिक है।
रींद पोश कानी शॉल की बुनाई को दुनिया के सबसे कठिन क्राफ्ट में से एक माना जाता है, क्योंकि इसे पूरी तरह से हाथों से बुना जाता है और डिजeइन को बेहद ध्यान से धागों में ढाला जाता है।
आज के समय में कानी शॉल की मांग फिर से बढ़ी है, लेकिन इसे बनाना इतना कठिन है कि बहुत कम लोग इसे करना जानते हैं। यह कला अब विलुप्ति की कगार पर है।